नई दिल्ली। अगर आप नौकरीपेशा हैं तो आपके लिए मई के महीने का महत्व भी पता होगा। बहुत सी कंपनियों में अप्रैल में ही इंक्रीमेंट की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। ऐसे में मई में पहली बार आपको बढ़ी हुई सैलरी मिलती है। दूसरी ओर अप्रैल और मई में ही कंपनी के एचआर एनुअल इंवेस्टमेंट डिक्लेरेशन की डिमांड करते हैं। साल की शुरुआत में आप टैक्स सेविंग के लिए अपनी ओर से किए जाने वाले इंवेस्टमेंट की घोषणा करते हैं। इसी आधार पर आपकी सैलरी से टैक्स डिडक्शन एट सोर्स (टीडीएस) का कैलकुलेशन किया जाता है। बहुत से लोग इसे भर चुके होंगे। वहीं कई भरने की तैयारी में होंगे। कई लोग जल्दबाजी में बिना समझे-बूझे एचआर को अपना डिक्लेरेशन फॉर्म सौंप देते हैं। लेकिन आपकी यह लापरवाही आप पर साल के अंत में भारी पड़ सकती है। इंडिया टीवी पैसा की टीम आज आपको इसी डिक्लेरेशन की बारीकियां बताने जा रहा है। जिससे आप न सिर्फ साल के अंत में होने वाली मुसीबत से बचें वहीं ज्यादा टैक्स कटवाने और रिटर्न पाने के झंझट से भी बचे रहें।
इंवेस्टमेंट डिक्लेरेशन में न बरतें लापरवाही
आपके द्वारा कंपनी में जमा किया गया इंवेस्टमेंट डिक्लेरेशन आपकी साल भर की इन हैंड सैलरी और साल के अंत में टीडीएस का फैसला करता है। अगर आप वर्ष के दौरान अपने इनवेस्टमेंट से अधिक राशि का निवेश डिक्लेयर करते हैं, तो साल के अंत में आपको टीडीएस के तौर पर बड़ी रकम कटवानी होगी। कम डिक्लेयर करने से आपकी टेक-होम सैलरी में कटौती होगी और आपको टैक्स रिफंड हासिल करने के लिए एक साल का इंतजार करना होगा।
तस्वीरों में जानिए टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स के बारे में
TAX SAVING PRODUCTS
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
IndiaTV Paisa
मई से बनाएं अपने साल भर की निवेश रणनीति
इन्वेस्टमेंट डिक्लेरेशन से जहां आपकी कंपनी का एचआर आपकी इन हैंड सैलरी की सही गणना कर पाता है, वहीं यह आपके लिए भी अपने साल भर की निवेश रणनीति बनाने का अच्छा मौका होता है। इसका बेहतर इस्तेमाल करने से आपको फायदा होगा। इसकी शुरुआत अपनी एनुअल इनकम कैलकुलेट करने के साथ करें। अगर आपको केवल सैलरी से इनकम होती है तो यह काफी आसान है। वहीं अगर आपको अन्य सोर्सेज से भी इनकम होती है तो इंटरेस्ट, रेंट, फ्रीलांस वर्क से मिलने वाली पेमेंट जैसे सोर्सेज को इनकम में शामिल करना न भूलें। सही इनकम तक पहुंचना महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे आपकी कुल टैक्स देनदारी तय होगी।
इस तरह करें टैक्स का कैल्कुलेशन
टेक्सेबल इनकम का पता लगाने के लिए आपको ग्रॉस इनकम पता करना जरूरी है। ग्रॉस इनकम पर पहुंचने के बाद आपको इसमें से ईपीएफ कंट्रीब्यूशन, एचआरए (अगर आप किराए के घर में रहते हैं), रिइंबर्समेंट्स और एलटीए, कन्वेंस और टेलीफोन बिल जैसे भत्तों को घटाएं।टैक्सेबल इनकम पर पहुंचने के बाद उन टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट्स की लिस्ट बनाएं, जिनमें आपने पहले से इनवेस्ट किया हुआ है और नए फाइनेंशियल ईयर में भी इनवेस्टमेंट जारी रखेंगे। इनमें पीपीएफ, बच्चों की एजुकेशन के लिए ट्यूशन फीस, इंश्योरेंस पॉलिसी का प्रीमियम, होम लोन, एसआईपी, टैक्स-सेविंग म्यूचुअल फंड शामिल हो सकते हैं। ये सभी इनवेस्टमेंट्स आपकी इनवेस्टमेंट डिक्लेयरेशन का हिस्सा होंगी।
इन डिडक्शंस का भी रखें ख्याल
इनवेस्टमेंट्स के बाद आपके पास जो इनकम बचेगी, उस पर आपको टैक्स देना है। सेक्शन 87 ए के तहत डिडक्शन में बढ़ोतरी बढ़ाकर 5,000 रुपये करने से एक फाइनेंशियल ईयर में तीन लाख रुपये तक की इनकम पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। ऊपर बताई गई अधिकतर इनवेस्टमेंट्स सेक्शन 80 सी के तहत आती हैं। इस सेक्शन के तहत टैक्स बचाने के लिए 1.5 लाख रुपये तक का इनवेस्टमेंट किया जा सकता है।
टैक्सेबल इनकम ज्यादा है तो ऐसे करें टैक्स प्लानिंग
अपने इंवेस्टमेंट का कैल्कुलेशन करने के बाद आपको आपनी वास्तविक कर योग्य आय का पता चल जाएगा। यदि आपकी टैक्स देनदारी ज्यादा है तो आपको दूसरे निवेश विकल्पों को ध्यान में रखकर नए निवेश पर ध्यान देना होगा। आप एनपीएस स्कीम के लिए नए सेक्शन 80 सीसीडी (1बी) के तहत अतिरिक्त 50,000 रुपये के इनवेस्टमेंट पर डिडक्शन ले सकते हैं। हेल्थ चेक-अप पर 5,000 रुपये तक के खर्च पर भी टैक्स छूट मिलती है। अगर आपके माता-पिता के पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है तो सेक्शन 80 डी के तहत उनके मेडिकल खर्चों पर आपको 30,000 रुपये तक की डिडक्शन मिलेगी।