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RBI के रेट कट से म्‍यूचुअल फंड निवेशकों को होगा फायदा, नया निवेश करने का है बेहतर अवसर

यूचुअल फंड हाउस मैनेजर्स का मानना है कि ये फंड जिस तरह से यील्ड टू मैच्योरिटी (वाईटीएम) और रेपो रेट के बीच फैले होते हैं, उससे रेपो रेट घटने के समय एक आकर्षक प्रवेश का अवसर पैदा होता है

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: June 18, 2019 12:57 IST
Mutual Fund investors will be benefitted from RBI's rate cut- India TV Paisa
Photo:MUTUAL FUND INVESTORS

Mutual Fund investors will be benefitted from RBI's rate cut

मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रेपो रेट में 25 आधार अंक की कटौती कर म्यूचुअल फंड निवेशकों को भी बेहतर तोहफा दिया है। आंकड़े बताते हैं कि जब भी दरों में कटौती हुई है, निवेशकों को अच्छा रिटर्न मिला है। म्यूचुअल फंड मैनेजर ऐसे समय में क्रेडिट और अक्रुअल स्कीमों में अवसर देखते हैं।

म्‍यूचुअल फंड हाउस मैनेजर्स का मानना है कि ये फंड जिस तरह से यील्ड टू मैच्योरिटी (वाईटीएम) और रेपो रेट के बीच फैले होते हैं, उससे रेपो रेट घटने के समय एक आकर्षक प्रवेश का अवसर पैदा होता है, जिससे अक्रूअल और क्रेडिट रिस्क खरीदने के लिए सही समय होता है।

उदाहरण के तौर पर आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड की क्रेडिट और अक्रुअल स्कीमें ऐसे समय में निवेशकों को अच्छा रिस्क एडजस्टेड रिटर्न दी हैं। 31 जुलाई 2013 से फरवरी 2014 के बीच जब औसत रेपो रेट 7.70 प्रतिशत था, तब औसत वाईटीएम 11.30 प्रतिशत था तथा दोनों के बीच फैलाव (स्प्रेड) 3.60 प्रतिशत था औऱ आईप्रू के क्रेडिट रिस्क फंड ने इस फेज में 11.1 प्रतिशत का रिटर्न दिया था। दूसरे चरण में 30 जून 2015 से 31 अक्टूबर 2016 में जब रेपो रेट 6.70 प्रतिशत था तब वाईटीएम 10.10 प्रतिशत था एवं स्प्रेड 3.40 प्रतिशत था और तब इसके मीडियम टर्म बांड फंड ने 9.6 प्रतिशत रिटर्न दिया था। इसका अर्थ यह हुआ कि जब भी रेपो रेट और वाईटीएम के बीच स्कीम का स्प्रेड ज्यादा होता है, तब रिटर्न ज्यादा मिलता है।

विश्लेषकों के मुताबिक बॉन्ड की यील्ड और इसके मूल्य में उल्टा संबंध होता है। इसलिए ब्याज दरों में गिरावट का माहौल डेट म्यूचुअल फंडों के लिए अच्छा माना जाता है। जब ब्याज दरें घटती हैं तो बॉन्ड के मूल्य बढ़ते हैं। जब भी इस तरह की स्थिति आती है, तब क्रेडिट रिस्क और अक्रूअल फंड की स्कीमें बेहतर प्रदर्शन करती हैं। म्यूचुअल फंड मैनेजरों का मानना है कि जब भी यील्ड ढांचागत रूप से ऊपर नहीं जाती हैं, मूल्यों में गिरावट आती है। यदि रेपो रेट में कमी आगे पास होती है तो हम प्रतिभूतियों के मूल्य में अच्छा सुधार देख सकते हैं, जो निवेशकों के लिए एक अच्छा अवसर होगा।  

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