कोरोना काल में सोने की कीमतें तेजी से ऊपर चढ़ी हैं। कोविड-19 की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर पैदा हुई अनिश्चितताओं ने सोने की कीमतों में और तेजी ला दी है। लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे अर्थव्यवस्थाओं के खुलने से सोने की कीमतों हुई बढ़ोतरी कुछ कम हो सकती है। ऐसे में कई लोग यह चिंता जता रहे हैं कि मौजूदा आर्थिक माहौल में सोने में निवेश करना जोखिम भरा साबित हो सकता है। सबसे पहले एक एसेट क्लास के तौर पर गोल्ड में निवेश के फायदे और नुकसान और इसमें निवेश के अलग-अलग जरियों के बारे में चर्चा कर लेते हैं।
गोल्ड में निवेश के मजबूत पहलू
एक एसेट क्लास के तौर पर इक्विटी और गोल्ड के बीच में विपरीत संबंध है। जब भी इक्विटी मार्केट में गिरावट का ट्रेंड होता है तब आमतौर पर गोल्ड में ऊंचे रिटर्न मिलते हैं। इसके अलावा, ऊंची महंगाई दर, आर्थिक झटकों और भूराजनैतिक तनाव से भी गोल्ड की कीमतें मजबूत होती हैं। यही विपरीत संबंध सोने को उतार-चढ़ाव भरी इक्विटीज के खिलाफ हेजिंग का काम करता है।
सोने की मांग कई अलग-अलग फैक्टरों की वजह से कायम रहती है। इनमें ज्वैलरी के तौर पर होने वाली खपत, केंद्रीय बैंकों द्वारा गोल्ड को अपने रिजर्व एसेट के तौर पर रखने और मार्केट, महंगाई और करेंसी के जोखिमों के खिलाफ हेजिंग के साधन के तौर पर इस्तेमाल करने जैसी चीजें शामिल हैं। ये अलग-अलग फैक्टर सभी तरह की आर्थिक स्थितियों में गोल्ड की मांग को कायम रखते हैं और इस तरह से गोल्ड निवेश के एक सुरक्षित ठिकाने के तौर पर काम करता है।
इसके खिलाफ क्या चीजें जाती हैं
बाकी की कमोडिटीज की तरह से ही पारंपरिक तरीकों से गोल्ड की भी वैल्यूएशन को तय करना या इससे मिलने वाले रिटर्न का अंदाजा लगाना मुमकिन नहीं है। गोल्ड की कीमतें पूरी तरह से मांग और आपूर्ति के फैक्टर पर टिकी होती हैं। ऐसे में शेयरों के उलट गोल्ड को लेकर निवेश के फैसले इसकी स्वाभाविक वैल्यूएशन के आधार पर तय नहीं होते हैं।
गोल्ड ज्वैलरी और सिक्कों के जरिए सोने में पैसा लगाने वालों को इन्हें घरों या बैंक लॉकर में सुरक्षित रखने की अतिरिक्त कीमत देनी पड़ती है। ये खर्च गोल्ड निवेश की यील्ड पर बुरा असर डाल सकते हैं। गोल्ड की कीमतों के साथ एक और बड़ा जोखिम आर्थिक और भूराजनैतिक स्थिरता के साथ इसका विपरीत संबंध होना है।
जब भी आर्थिक और भूराजनैतिक हालात स्थिर होना शुरू होते हैं, गोल्ड की कीमतें नीचे आने लगती हैं। ऐसे में ऊंचे भाव पर खरीदा गया सोना मैक्रोइकनॉमिक स्थितियों में सुधार के साथ नुकसान दे सकता है।
सोने से जुड़े निवेश विकल्प
फिजिकल गोल्ड
ज्वैलरी और सोने के सिक्के खरीदना गोल्ड में निवेश के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। लेकिन, सोने को फिजिकल रूप में रखने के दो मुख्य नुकसान हैं। इसे सुरक्षित रखने पर होने वाले अतिरिक्त खर्च के अलावा फिजिकल गोल्ड के साथ इसकी शुद्धता संबंधी चिंताएं भी होती हैं। इसके अलावा, किसी राजनीतिक संकट या प्राकृतिक आपदा के वक्त बैंक लॉकर में रखे गोल्ड को निकालना या इसे बेचना मुश्किलभरा साबित हो सकता है।
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड को RBI स्टॉक एक्सचेंज, बैंकों और पोस्ट ऑफिस आदि के जरिए किश्तों में जारी करता है। इसके जरिए कोई शख्स एक फाइनेंशियल ईयर में न्यूनतम 1 ग्राम और अधिकतम 4 किलो तक के सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड खरीद सकता है।
कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना के साथ ही सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड निवेशकों को 2.5 फीसदी सालाना का ब्याज भी मिलता है जिसका भुगतान हर छमाही में होता है। हालांकि, इंटरेस्ट इनकम निवेशक के टैक्स स्लैब पर लगने वाले टैक्स पर आधारित होती है, लेकिन एसजीबी के रिडेंप्शन के जरिए होने वाले कैपिटल गेन्स पर कोई टैक्स नहीं लगता है।
किसी अन्य शख्स को इन बॉन्ड्स के ट्रांसफर पर होने वाले लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स पर इंडेक्सेशन बेनेफिट लागू होते हैं। एसजीबी का एक और बड़ा फायदा यह है कि इसे बैंक लोन लेने के लिए कोलेट्रल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड का सबसे बड़ा फायदा इसकी लिक्विडिटी का कम होना है। एसजीबी 8 साल के टेन्योर के साथ आते हैं और इसमें प्रीमैच्योर रिडेंप्शन निवेश के पांचवें साल के बाद ही मुमकिन हो पाता है। हालांकि, एसजीबी को स्टॉक एक्सचेंजों पर खरीदा या बेचा जा सकता है, लेकिन इसके कम ट्रेड वॉल्यूम इसकी लिक्विडिटी को सीमित रखते हैं।
गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स
गोल्ड ETF फिजिकल गोल्ड की कीमतों को नजदीकी से ट्रैक करने वाले फंड होते हैं। इन्हें बहुत ज्यादा सक्रियता से मैनेज नहीं किया जाता है। किसी भी दूसरे ईटीएफ की तरह से ही गोल्ड फंड्स की यूनिट्स को स्टॉक एक्सचेंजों पर खरीदा या बेचा जा सकता है।
ETF के साथ नुकसान यह है कि इनमें ब्रोकरेज और सालाना मेंटेनेंस चार्ज के तौर पर आपको अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ते हैं। गोल्ड ईटीएफ के साथ लिक्विडिटी एक बड़ा मसला हो सकती है क्योंकि आमतौर पर एक्सचेंजों पर इनकी बेहद कम खरीद-फरोख्त होती है।
गोल्ड फंड ऑफ फंड्स
ये ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड्स होते हैं जो कि मूल रूप में गोल्ड ETF में निवेश करते हैं। किसी भी दूसरे म्यूचुअल फंड्स की तरह से ही गोल्ड स्कीमों को एनएवी पर खरीदा या रिडीम किया जा सकता है। साथ ही इनमें एसआईपी/एसटीपी जरियों से भी पैसा लगाया जा सकता है।
गोल्ड फंड्स की दूसरे गोल्ड इनवेस्टमेंट्स के मुकाबले कहीं ज्यादा लिक्विडिटी होती है क्योंकि इन्हें किसी भी कारोबारी दिन में फंड हाउस के यहां पर सीधे रिडीम किया जा सकता है। गोल्ड फंड्स में ज्यादा लिक्विडिटी के चलते इनके इनवेस्टर्स को अपनी एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी को लागू करने में ज्यादा लचीलापन मिलता है।
क्या सोने में पैसा लगाने का ये सही वक्त है?
सोने और इक्विटीज के बीच में नकारात्मक संबंध को देखते हुए रिटेल इनवेस्टर्स को अपने निवेश पोर्टफोलियो का कम से कम 5-10 फीसदी हिस्सा इनके लिए रखना चाहिए। ऐसे में जिन लोगों का गोल्ड में पर्याप्त निवेश नहीं है उन्हें गोल्ड में पैसा लगाना शुरू करना चाहिए। हालांकि, इस निवेश में गोल्ड फंड्स को तरजीह देनी चाहिए और यह निवेश चरणबद्ध तरीके से होना चाहिए।
अगर सोने की कीमतों में आगे और गिरावट आती है तो निवेशक अपनी एसेट एलोकेशन स्ट्रैटेजी को लागू करते हुए सोने में एकमुश्त भी निवेश कर सकते हैं। इससे उनके निवेश की एवरेज लागत कम हो जाएगी और उनका एसेट-मिक्स दुरुस्त हो जाएगा।