नई दिल्ली। घर-मकान खरीदने वालों के हितों की सुरक्षा के लिए बनाया गया कानून RERA आज से प्रभावी हो गया है। अभी तक 13 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इसके नियमों को अधिसूचित कर चुके हैं। इस कानून से रियल एस्टेट सेक्टर में न केवल डेवलपर्स की जवाबदेही बढ़ेगी बल्कि पारदर्शिता भी आएगी। आइए जानते हैं कि RERA में घरों के खरीदारों के लिए ऐसी कौन सी व्यवस्था की गई है और बिल्डरों पर किस तरह शिकंजा कसा गया है।
RERA के तहत राज्यों द्वारा बनाए गए रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी का काम बिल्डरों के खिलाफ आने वाली किसी भी शिकायत का निवारण करना है। 90 दिन के भीतर सभी डेवलपरों को अथॉरिटी में अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। 1 मई से डेवलपर्स प्रोजेक्ट्स की प्री-लॉन्चिंग नहीं कर पाएंगे और प्रोजेक्ट लांच करने से पहले उन्हें अथॉरिटी से अनुमति और NOC लेनी होगी।
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डेवलपर्स को घर खरीदने वालों से मिली रकम की 70 फीसदी राशि एक अलग अकाउंट में रखनी होगी जिससे प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन कॉस्ट निकलती रहे। इससे बिल्डर्स खरीदारों से मिले पैसे किसी और प्रोजेक्ट में नहीं लगा पाएंगे। इससे कंस्ट्रक्शन टाइम पर पूरा हो पाएगा।
RERA के तहत सभी डेवलपर्स के लिए प्रोजेक्ट से जुड़ी सभी जानकारियां जैसे प्रोजेक्ट प्लान, ले-आउट, सरकारी अप्रूवल्स, जमीन का स्टेटस, प्रोजेक्ट खत्म होने का शेड्यूल भी अथॉरिटी को उपलब्ध कराना होगा।
RERA के तहत सुपर बिल्ट-अप एरिया के आधार पर फ्लैट बेचने का तरीका बदलेगा। नए कानून में कारपेट एरिया को अलग से निर्धारित किया गया है। 1 मई से RERA लागू होने के बाद प्रोजेक्ट पूरा होने में देर के लिए बिल्डर को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। खरीदारों द्वारा दी गई अतिरिक्त EMI पर लगने वाला डेवलपर्स को वापस खरीदारों को चुकाना होगा।
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RERA के ट्रिब्यूनल के आदेश न मानने पर डेवलपर्स को 3 साल की सजा हो सकती है। इसके अलावा, अगर प्रोजेक्ट में कोई गलती होती है तो खरीदार पजेशन के 1 साल के भीतर डिवेलपर को लिखित में शिकायत दे आफ्टर सेल सर्विसेज की मांग कर सकता है।