नई दिल्ली। तेजी से डिजिटल होते भारत में अभी भी चेक से भुगतान प्रचलन में है। ऐसे में कई बार सुनने में आता है कि किसी का चेक बाउंस हो गया है। कई ऐसे लोग हैं जिन्हें ये पता नहीं होता कि चेक बाउंस होने पर क्या करना है और धारा 138 का प्रयोग कब कर सकते हैं?
अगर कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि किसी से आपको पैसे लेने हैं और उनका दिया हुआ चेक बाउंस हो गया हो तो घबराने की जरूरत नहीं हैं। आज हम आपको यहां बता रहे हैं कि चेक बाउंस होने पर आपको क्या कदम उठाने चाहिए और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
क्या होता है चेक बाउंस होने का मतलब?
जब कभी हम पैसे के लेनदेन के लिए किसी को चेक काटकर देते हैं और पर्याप्त राशी खाते में नही होती तो चेक बाउंस हो जाता है। यानी की सामने वाले को सही समय पर पैसे नहीं मिलते हैं। चेक बाउंस होने पर दोनों ही पार्टी को काफी परेशानी और आर्थिक नुकसान का सामना कर पड़ सकता है। इसलिए ये बहुत जरूरी है कि चेक बाउंस होने के सारे नियम और कानून आपको पता होने चाहिए।
कुछ अहम बातें
- कोई भी चेक सिर्फ 3 महीने तक के लिए वैध होता है। तीन महीने के बाद उस चेक की कोई मान्यता नहीं रह जाती है।
- अगर आपने किसी से कोई सामान या पैसे लिए हैं तो उसकी कीमत चुकाने के लिए या पैसे लौटाने के लिए आप चेक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- किसी एनजीओ या संस्था को डोनेशन देने के लिए भी चेक दिया जा सकता है।
- सिक्योरीटी के तौर पर भी पोस्ट डेटेड चेक जमा किया जा सकता है।
- चेक बाउंस होने पर आपको बैंक द्वारा एक रसीद मिलती है जिसमें चेक और बाउंस होने के कारण के साथ पूरी जानकारी होती है।
- चेक बाउंस होने के तीस दिन के अंदर देनदार के पास नोटिस भेजना होता है। अगर कोई जवाब नहीं मिलता तो 15 दिन के बाद लेनदार चेक बाउंस के लिए देनदार को नोटिस भेज सकता है और केस दायर कर सकता है।
- चेक बाउंस होने पर दो साल की सजा होती है और बाकी पैसा देनदार को ब्याज के साथ चुकाना पड़ सकता है।
क्या है धारा 138?
चेक बाउंस होने के बाद अगर 1 महीने तक भी देनदार पेमेंट नहीं देता और लीगल नोटिस भेजने के बाद भी भुगतान नहीं करता तो लेनदार अपने वकील की मदद से केस दर्ज करा सकता है। निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 ( Negotiable Instruments Act, 1881) के सेक्शन 138 के अंतर्गत लेनदार अपना केस दर्ज करा सकता है। पेमेंट सही समय पर वापस नहीं करने पर वो एक अपराधिक शिकायत के तौर पर दर्ज होगा। याद रखें कि किसी भी तरह के कर्ज या बकाया पैसों के लीगल रिकवरी के पूरा नहीं होने पर या फिर दो पार्टियों के बीच किसी भी लेन-देन या बिजनेस होने पर जब पेमेंट नही मिले और चेक बाउंस हो जाए तो 138 सेक्शन के तहत कानूनी मामला दर्ज किया जा सकता है।
साथ ही दोस्त या किसी को भी उधार दिए गए पैसे वाला चेक बाउंस होने पर सेक्शन 138 के तहत केस हो सकता है। किसी लोन के डिस्चार्ज होने के लिए दिया गया चेक अगर बाउंस होता है तो उसपर भी धारा 138 का केस लग सकता है। इस धारा के अंतर्गत दो साल की सजा और ब्याज के साथ दोगुनी रकम देनी पड़ सकती है। सिविल केस उसी शहर में फाइल किया जा सकता है जहां आपका चेक बाउंस हुआ है और जहां आप रहते हैं।
संखला एंड एसोसिएट्स के मैनेजिंग पार्टनर कपिल संखला का कहना है कि भारत कैशलेस इकोनॉमी की तरफ जा रहा है ऐसे में चेक बाउंस के केस के लिए स्पेशल कोर्ट का गठन होना चाहिए, जहां जल्द से जल्द फास्टट्रेक कोर्ट के जरिये फैसला सुनाया जा सके। ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार के लेन-देन करने से पहले दिए गए चेक को हमेशा अच्छी तरह से जांच लें। साथ ही ये जरूर सुनिश्चित कर लें कि आपके एकाउंट में पर्याप्त रकम मौजूद हो।