फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट- इसके अंतर्गत बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट, कंपनी डिपॉजिट, पोस्ट ऑफिस के स्मॉल सेविंग प्रोडक्ट्स और बॉण्ड्स जैसे निवेश विकल्प आते हैं। इन विकल्पों में एक तय रिटर्न मिलता है। इनकी मैच्योरिटी की तिथि पहले से तय होती है। इसमें निवेश तभी करना चाहिए जब आपकी जरूरतें निकट भविष्य में तय और सीमित हो। साथ ही आप अपने निवेश पर बिल्कुल जोखिम लेना न चाहते हों। इन विकल्पों में निवेश की गई राशि सुरक्षित होती है। इस कारण इनमें अमूमन महंगाई को मात देने वाले रिटर्न नहीं मिल पाते। यह निवेश विकल्प घर की मासिक जरूरतों को पूरा करने के लिए काम आती है क्योंकि इनमें नियमित राशि मितली है।
मार्केट लिंक्ड इंवेस्टमेंट- म्युचुअल फंड, यूलिप, ELSS जैसे निवेश विकल्प इसके अंतर्गत आते हैं। जब किसी निवेश विकल्प पर मिलने वाला रिटर्न शेयर बाजार या डेट मार्केट की चाल पर निर्भर करता है तो ऐसे इंवेस्टमेंट को मार्केट लिंक्ड इंवेस्टमेंट कहते हैं। इनमें रिटर्न न तय होता और न ही निश्चित। यह हाई रिस्क प्रोडक्ट होते हैं इसलिए इनमें रिटर्न मिलने की संभावना भी ज्यादा होती है।
रिटर्न और टैक्सेशन की अहम भूमिका
रिटर्न
लंबी अवधि में मार्केट लिंक्ड इंवेस्टमेंट में फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट से ज्यादा रिटर्न मिलता है। ऐसे में अगर निवेशक लंबी अवधि के लिए नियमित या एक बार में निवेश करना चाहते हैं तो उन्हे निश्चित तौर पर मार्केट लिंक्ड इंवेस्टमेंट का रुझान करना चाहिए। रिटायरमेंट प्लानिंग, बच्चों की पढ़ाई या शादी जैसे लक्ष्यों के लिए अगर आप निवेश कर रहे हैं तो म्युचुअल फंड्स जैसे विकल्प आपके लिए सबसे बेहतर साबित हो सकते हैं। हालांकि अगर निवेशक किसी कारणवश जोखिम लेने की स्थिति में नहीं है या उसको छोटी अवधि में ही पैसों की जरूरत पड़ सकती है तो निश्चित तौर उसको फिक्स्ड इनकम इंवेस्टमेंट का रुझान करना चाहिए। जोखिम लेने की सीमा आयु, निकट भविष्य में पैसे की जरूरत आदि चीजों पर निर्भर करती है।
टैक्सेशन–
निवेश विकल्प का चयन करते समय उसपर लगने वाले टैक्स का भी ध्यान रखें। फिक्स्ड इनकम निवेश जैसे कि बैंक डिपॉजिट, पोस्ट ऑफिस के टाइम डिपॉजिट, NSC, KVP और बॉण्ड व्यक्ति की आय के आधार पर करयोग्य होती है। टैक्स कटने के बाद रिटर्न बेहद कम हो जाता है। हालांकि ब्याज कर योग्य होता है, लेकिन इनकम टैक्स एक्ट 1961 के सेक्शन 80 सी के तहत पांच साल के टैक्स सेविंग बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट और पोस्ट ऑफिस की पांच वर्षीय टर्म डिपॉजिट पर टैक्स नहीं देना होता है। PPF और टैक्स फ्री बॉण्ड पर टैक्स फ्री रिटर्न मिलता है।
इक्विटी में किया गया निवेश जैसे कि इक्विटी म्युचुअल फंड्स, ULIPs और NPS टैक्स फ्रैंडली होते हैं। लंबे समय तक इन्हें रखने के बाद यह NPS को छोड़कर सभी टैक्स फ्री हो जाते हैं। इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ELSS) का रिटर्न कर छूट के दायरे में आता है। ULIP में लाइफ इंश्योरेंस के तहत सुरक्षा दी जाती है।
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