किसी व्यक्ति को कर्ज देने से पहले सभी वित्तीय संस्थान उसकी वापसी सुनिश्चित करने की पूरी व्यवस्था करते हैं। इसलिए वह सीमित साख वाले लोगों से लोन देने से पहले गारंटर की मांग करते हैं। कई मामलों में अच्छी साख वाले लोगों से भी गारंटर की मांग की जाती है। आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘जमानत’ कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति कर्ज का भुगतान करने में असफल रहता है तो बैंक जमानती से पूरी रकम की वसूली कर सकता है। गारंटर की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति बेचकर कर्ज की वसूली की जा सकती है। ऐसे में अपने मित्रों की मदद करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन किसी व्यक्ति के गारंटर बन रहे हैं तो पूरी तरह सोच-समझ कर ही कदम उठाएं।
क्या है व्यवस्था
प्राय: लोग समझते हैं कि किसी कर्ज लेने वाले व्यक्ति के अच्छे चरित्र के बारे में जानकारी देना अथवा पुष्टि करना भर ही जमानती का काम होता है। ज्यादातर मामलों में गारंटर को यह पता नहीं होता है कि कर्जदार के लोन न चुकाने की स्थिति में वह बैंक को ऋण चुकता करने के लिए कानूनी तौर पर बाध्य होता है। इस भ्रम में गारंटर किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लिए जाने वाले कर्ज को चुकाने के लिए सहमति दे देता है। यही नहीं, कर्ज लेने वाले व्यक्ति के समय पर भुगतान न करने की स्थिति में गारंटर अपनी संपत्ति बेचकर ऋण वापस करने के लिए जमानत के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करता है। जब कर्ज लेने वाला व्यक्ति डिफाल्टर हो जाता है तो तब जाकर पूरे माजरे का पता चलता है।
कौन बन सकता है
कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसकी उम्र 18 साल से ज्यादा हो और वह दिवालिया न हो, किसी कर्ज लेने वाले व्यक्ति का गारंटर बन सकता हैं। गारंटर बनाने के लिए कोई व्यक्ति किसी पर दबाव नहीं बना सकता। गारंटी लेने से पूर्व बैंक गारंटर की आमदनी, संपत्ति और आईडी और एड्रेस प्रूफ का पूरा ब्योरा मांगते हैं। आमतौर पर नियमित आमदनी वाले व्यक्ति को ही बैंक गारंटर के रूप में स्वीकार करते हैं। आमतौर पर वित्तीय संस्थान अच्छी साख वाले व्यक्ति को ही गारंटर के रूप में स्वीकार करते हैं।
गारंटर का दायित्व
आमतौर पर लोग गारंटर बनने के दस्तावेजों पर बिना पढ़े और समझे ही हस्ताक्षर कर देते हैं जबकि उसके बड़े जोखिम भरे दायित्व होते हैं। गारंटर बनने के बाद व्यक्ति को उन सभी नियमों का पालन करना होता है जिस पर उसने हस्ताक्षर किए हैं। यदि कोई व्यक्ति कर्ज वापस नहीं कर पा रहा है तो बैंक गारंटर से वसूली कर सकता है। गारंटर का यही सबसे अहम दायित्व होता है। कर्ज लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद गारंटर की जिम्मेदारी समाप्त नहीं होती है बल्कि इस हालात में कर्ज लेने वाले व्यक्ति का खाता फ्रीज कर दिया जाता है और खाते में बची हुई राशि तक जमानती की जिम्मेदारी ऋणी की मृत्यु के बाद भी बनी रहती है। इसके अलावा बैंक ऋणी और जमानती यानी दोनों के विरुद्ध एक साथ वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई कर सकता है। यह आवश्यक नहीं है कि पहले ऋणी के विरुद्ध ही कार्रवाई की जाए।
कैसे लें फैसला
यदि आप गारंटर बन रहे हैं तो अच्छी तरह से सोच लें कि क्या इसके लिए दिल से तैयार हैं और क्या आप ऋणी द्वारा भुगतान न करने की स्थिति में बकाया राशि चुकाने में सक्षम हैं। इसीलिए एक बात की गांठ बांध लें कि किसी के भी दबाव में आकर गारंटर कतई न बनें भले ही वह आपका नजदीकी रिश्तेदार या परिवार का सदस्य ही क्यों न हो। यदि आपके मन में कर्ज लेने वाले व्यक्ति की सामथ्र्य और निष्ठा के बारे में जरा भी संदेह है तो आप उसकी गारंटी हरगिज न लें। दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने से पहले उसके बारे में पूरी पड़ताल कर लें। यदि आप गारंटर के कागजों की भाषा नहीं समझते हैं तो आप अपनी भाषा में इसका अनुवाद मांग सकते हैं। इसके अलावा अपने किसी विास पात्र व्यक्ति द्वारा इन कागजों को समझ सकते हैं। आप किसी भी समय ऋण के खाते के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए बैंक से आग्रह कर सकते हैं।
जोखिम का आकलन
यदि किसी कर्ज के एक से अधिक गारंटर हैं तो यह जरूरी नहीं कि सभी गारंटरों से बराबर-बराबर राशि वसूली जाएगी। बैंक किसी भी समर्थ जमानती से पूरी राशि वसूल कर सकता है। जमानती की मृत्यु के बाद भी उसकी संपत्ति से ऋण राशि वसूली जा सकती है। जमानत वापस लेने के लिए बैंक की सहमति होना जरूरी है। आप अपनी पत्नी/पति या बच्चे के लिए जमानत दे सकते हैं। यदि कोई व्यक्ति ऋण चुकता करने में असफल रहता है तो ऋणी के साथ-साथ जमानती का भी सिबिल रिकार्ड खराब हो जाता है। ऐसे में तमाम जोखिमों का आकलन करने के बाद ही कर्ज के लिए किसी व्यक्ति की जमानत लें।