म्यूचुअल फंड में SIP के जरिये निवेश करने वाले निवेशकों की संख्या लाखों में है। हालांकि, उनमें से बहुत कम को एसटीपी (Systematic Transfer Plan) के बारे में पता है। हम सभी को पता है कि SIP के जरिये नियमित अंतराल पर (अक्सर महीने में एक बार) तय तारीख पर म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश किया जाता है। वहीं, STP में निवेशक एकमुश्त अमाउंट किसी म्यूचुअल फंड स्कीम (आमतौर पर डेट फंड) में निवेश करते हैं और उसके बाद एक रेगुलर इंटरवल पर उसे इक्विटी स्कीम्स में ट्रांसफर करते हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो एसटीपी की मदद से, निवेशक कम जोखिम वाली स्कीम से ज्यादा जोखिम वाली स्कीम में पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं, जैसे कि, डेट फंड से इक्विटी फंड में। एसटीपी से निवेशकों को जोखिम का प्रबंधन करने और बेहतर रिटर्न पाने में मदद मिलती है।
दोनों के बीच प्रमुख अंतर
सिप के तहत निवेशक के बैंक खाते से सीधे म्यूचुअल फंड में पैसा जमा किया जाता है, जिससे बड़ी शुरुआती राशि की आवश्यकता के बिना अनुशासित निवेश को बढ़ावा मिलता है। इसके विपरीत, एसटीपी के तहत डेट फंड में शुरुआती एकमुश्त निवेश की आवश्यकता होती है, जिसमें से नियमित रूप से इक्विटी फंड में पैसे ट्रांसफर किए जाते हैं, जिससे समय के साथ रणनीतिक आवंटन समायोजन की अनुमति मिलती है।
दोनों के अपने-अपने फायदे
सिप रुपये की लागत औसत का लाभ प्रदान करते हैं, जिससे कीमतें कम होने पर अधिक यूनिट खरीदकर और कीमतें अधिक होने पर कम यूनिट खरीदकर बाजार में उतार-चढ़ाव के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, एसआईपी लचीले होते हैं, जिससे निवेशक सबसे कम राशि से शुरुआत कर सकते हैं और अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार योगदान को समायोजित कर सकते हैं।
एसटीपी बाजार के जोखिमों को कम करने में मदद करता है। शेयर बाजार के प्रदर्शन के आधार पर परिसंपत्तियों को आवंटित करके रिटर्न बढ़ाता है। एसटीपी खास तौर पर उन निवेशकों के लिए फायदेमंद हैं जिनके पास पर्याप्त धन है और जो धीरे-धीरे इक्विटी में फंड लगाना चाहते हैं, जिससे एकमुश्त निवेश से जुड़े बाजार में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम किया जा सके। एसटीपी से बाज़ार के उतार-चढ़ाव से निवेशक को सुरक्षा मिलती है। एसटीपी से निवेशक को रुपी कॉस्ट एवरेजिंग का फ़ायदा मिलता है। एसटीपी की मदद से, निवेशक को बाज़ार के उतार-चढ़ाव की चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती।