Highlights
- रेपो रेट में 0.50 फीसदी की बड़ी बढ़ोत्तरी
- इस समय विश्व के कई देश मंदी की आशंका से जूझ रहे
- विदेशी निवेश में आई वृद्धि
Reserve Bank of India: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने शुक्रवार को रेपो रेट (Repo Rate) में 0.50 बेसिस प्वाइंट (Basis Point) की वृद्धि की, जिसके बाद से न्यूनतम रेपो दर 5.4 प्रतिशत हो गया। इसी रेपो रेट पर आरबीआई (RBI) देश के विभिन्न बैंको को पैसा देता है। अगर आप बिजनेस से जुड़े मामलों पर अच्छी पकड़ नहीं रखते होंगे। तो आपके मन में ये सवाल जरूर खड़ा हुआ होगा कि मामूली सी बढ़ोतरी पर इतना हंगामा क्यों खड़ा हो रहा है? आज हम आगे इन्हीं सब सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे। साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि आखिर आरबीआई को रेपो रेट बढ़ाने पर क्यों मजबूर होना पड़ा? अगर रेपो रेट नहीं बढ़ाया जाता तो किस तरह की समस्या खड़ी हो जाती?
कितने फीसदी की हुई बढ़ोतरी
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक बार फिर रेपो रेट में 0.50 फीसदी की बड़ी बढ़ोत्तरी की है। बता दें कि पिछले महीने, जून 2022 को, RBI ने Repo Rate को 40 बेसिस प्वाइंट बढ़ाकर 4.90% कर दिया था, जबकि इससे पहले 4 मई 2022 को, आरबीआई ने पॉलिसी रेपो रेट को 40 बेसिस प्वाइंट बढ़ाकर 4.40% करके सबको चौंका दिया था। तब स्थायी जमा सुविधा (SDF) दर को 4.15% और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) रेट और बैंक रेट को 4.65% पर एडजस्ट किया था।
क्यों रेपो रेट बढ़ाने पर आरबीआई हुआ मजबूर?
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देता है। जब रेपो रेट बढ़ाए जाते हैं तो ब्याज दर भी बढ़ जाता है और बैंक इसका भार आम जनता के उपर डाल देते हैं। इससे लोन और EMI बढ़ जाती है। जब आरबीआई रेपो रेट बढ़ाता है तो मार्केट में लिक्विडिटी कम हो जाती है। लिक्विडिटी का मतलब होता है कि आप जब चाहें तब आपको आसानी से बैंक से कर्ज मिल जाए। जब मार्केट में डिमांड ज्यादा हो जाती है और सप्लाई कम होता है तब महंगाई बढ़ती है। और अगर डिमांड कम हो और सप्लाई ज्यादा तो इससे हमारी अर्थव्यवस्था कमजोर होने लगती है। इसीलिए कहा जाता है कि दोनों को बैलेंस रखना बेहद जरूरी होता है। आप याद कीजिए जब कोरोना का समय था देश में डिमांड अचानक से कम हो गई थी तो बैंक ने रेपो रेट कम कर दिया था। उससे बाजार में लिक्विडिटी बढ़ गई और जो मांग में वृद्धि का कारण बना।
इस समय मांग में तेजी है। जो बढ़ती महंगाई का एक कारण है। दूसरा कारण ये है कि हमारी कंपनियों को कच्चे माल महंगे खरीदने पड़ रहे हैं, जिससे कीमतों में इजाफा हो रहा है। जो डिमांड पर भी असर डालेगा। कोरोना के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया के तमाम देशों में महंगाई बढ़ने लगी है। इस समय विश्व के कई देश मंदी की आशंका से जूझ रहे हैं, जबकि भारत में ऐसी स्थिति नहीं है।
आरबीआई का एक काम यह भी होता है कि वह मार्केट में डिमांड एवं सप्लाई को मैनेज कर रखे। आरबीआई का कहना है कि अगर महंगाई कम करनी है तो रेपो रेट बढ़ाना जरूरी है। अगर रेपो रेट नहीं बढ़ाया जाए तो महंगाई पर लगाम लाना संभव नहीं पाएगा।
आरबीआई के अनुसार, घरेलू आर्थिक गतिविधियों में महंगाई अपने अधिकतम स्तर पर बनी हुई है जिसके चलते एमपीसी ने यह विचार किया है कि महंगाई के दबावों को नियंत्रित करने के लिए आगे मौद्रिक नीति में बदलाव की आवश्यकता है। दास ने कहा कि ये निर्णय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) महंगाई के लिए मध्यम अवधि के लक्ष्य को 4 प्रतिशत तक करने के उद्देश्य से लिया गया है।
विदेशी निवेश में आई वृद्धि
दास ने यह भी कहा कि घरेलू अर्थव्यवस्था लगातार बढ रही है। वित्त वर्ष 2023 की पहली तिमाही के दौरान शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 13.6 अरब डॉलर था, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के तुलना में 11.6 अरब डॉलर से अधिक है। अप्रैल-जून 2022 के दौरान निर्यात में भी 24.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, हालांकि जुलाई में कुछ कमी देखने को मिली है। 29 जुलाई को भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 573.9 अरब डॉलर था। 2023-24 की पहली तिमाही के लिए जीडीपी विकास दर 6.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है।