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सर्किल रेट में बदलाव डालता है आपकी जेब पर असर, जानिए इससे जुड़ा पूरा गणित

सर्किल रेट प्रॉपर्टी की वह न्यूनतम वैल्यूू होती है, जिसपर उसे नए मालिक के नाम पर रजिस्टर किया जाता है। इस रेट को राज्‍य सरकार तय करती है और समय-समय पर इसमें संशोधन करती है।

Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Published on: July 17, 2016 10:06 IST
नई दिल्‍ली। जून के आखिरी हफ्ते में हरियाणा सरकार के राजस्व विभाग ने गुड़गांव में सर्किल रेट घटा दिए हैं। नए रेट्स शहर में हर जगह 15 फीसदी तक कम हुए हैं। ऐसा रेजिडेंशियल और कमर्शियल दोनों प्रॉपर्टी के लिए किया गया है। इससे पहले जनवरी में उत्तराखंंड सरकार ने देहरादून के कई इलाकों में सर्किल रेट घटाए थे। यहां तक की शहर के कई जगहों पर तो रेट आधे कर दिए गए हैं।

आमतौर पर सर्किल रेट बढ़ते हैं। बहुत कम ऐसा होता है जब इसमें कटौती की जाती है। इसलिए देश की अधिकांश रियल एस्टेट मार्केट पिछले कुछ वर्षों से ठहरी हुई हैं और आए दिन कीमतों में गिरावट झेल रही हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि गुड़गांव में बाजार की जरूरतों को देखते हुए सर्किल रेट घटाए गए हैं। उनका यह भी मानना है कि आने वाले कुछ समय में अन्य राज्य व शहर भी अपने-अपने सर्किल रेट में कटौती करेंगे।

क्या होता है सर्किल रेट?

सर्किल रेट प्रॉपर्टी की वह न्यूनतम वैल्यूू होती है, जिसपर उसे नए मालिक के नाम पर रजिस्टर किया जाता है। इस रेट को राज्‍य सरकार तय करती है और समय-समय पर इसमें संशोधन करती है। जेएलएल इंडिया के चेयरमैन व कंट्री हेड अनुज पुरी का कहना है कि सर्किल रेट बढ़ाना या घटाना प्रशासनिक कार्य होता है ताकि प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशंंस की मदद से राजस्व इकट्ठा किया जा सके और साथ ही कमजोर बाजारों को बढ़ावा दिया जा सके। सर्किल रेट्स एक ही राज्य के अलग-अलग शहरों में भिन्‍न-भिन्‍न हो सकते हैं और यहां तक की एक ही शहर में भी अलग-अलग जगहों के लिए इसमें अंतर हो सकता है।

अनुकूल हालातों में इसकी मदद से कालेधन पर लगाम लगाने का प्रयास किया जाता है और ऊंचे टैक्‍स से बचने के लिए किसी भी प्रॉपर्टी की कीमत को कम करके नहीं आंंका जा सकता है। सर्किल रेट किसी भी जगह के उचित मूल्य को दर्शाता है। यह सबसे ज्यादा काम तब आता है जब एक प्रॉपर्टी का मालिकाना हक एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति को ट्रांसफर किया जाता है। रजिस्‍ट्रेशन के समय, एक सर्किल में प्रत्‍येक प्रॉपर्टी की वैल्‍यू वास्‍तविक ट्रांजैक्‍शन वैल्‍यू के आधार पर आंंकी जाती है। हालांकि, यदि ट्रांजैक्‍शन वैल्‍यू सर्किल रेट से कम है तो इस पर लगने वालेे टैक्‍स की गणना सर्किल रेट वैल्‍यू पर की जाएगी, न कि वास्‍तविक ट्रांजैक्‍शन वैल्‍यू पर।

अगर प्रॉपर्टी की असली कीमत सर्किल रेट से कम होती है तो इससे खरीदार पर अतिरिक्‍त बोझ पड़ सकता है।  इस स्थिति में खरीदार को अधिक स्‍टाम्‍प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस का भुगतान करना पड़ता है, जिसकी गणना बहुत ऊंचे सर्किल रेट पर की जाती है।

उदाहरण के लिए गुड़गांव के शहरी इलाकों में प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन शुल्‍क प्रॉपर्टी की असली कीमत का 8 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में 6 फीसदी है। यदि रजिस्‍ट्रेशन महिला के नाम पर होता है तो 2 फीसदी की छूट मिलती है। इसी तरह मुंबई नगर निगम में प्रॉपर्टी रजिस्‍ट्रेशन के लिए 5 फीसदी स्‍टाम्‍प ड्यूटी लगती है। 1 करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी के लिए गुड़गांव में रहने वाले व्यक्ति को 8 लाख रुपए, जबकि मुंबई में रहने वाले व्यक्ति को 5 लाख रुपए स्‍टाम्‍प ड्यूटी का भुगतान करना होता है।

सर्किल रेट्स की क्‍यों है जरूरत?

जिस वक्त रियल एस्टेट का बाजार तेजी से बढ़ रहा था उस वक्त सर्किल रेट और मार्केट रेट के बीच काफी ज्यादा अंतर आ गया था। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि सरकार के सर्किल रेट संशोधित करने की गति की तुलना में बाजार के दम तेजी से बढ़ रहे थे।

जब रियल एस्‍टेट मार्केट में मंदी आई तो बहुत से शहरों में वास्‍तविक रेट और सर्किल रेट के बीच अंतर कम हो गया। लेकिन कुछ इलाकों में कम मांग के बावजूद सर्किल रेट नियमित तौर पर बढ़ते रहे। इस वजह से गुड़गांव जैसे शहरों में सर्किल रेट वहां के मार्केट रेट से ज्‍यादा हो गए।

सर्किल रेट और मार्केट रेट के बीच का फासला खरीदार और विक्रेता दोनों को प्रभावित करता है। खरीदार को अधिक स्‍टाम्‍प ड्यूटी और विक्रेता को अधिक कैपिटल गेन टैक्स का भुगतान करना पड़ता है।

उदाहरण से समझें-

कार्तिक ने 2 करोड़ रुपए में प्रॉपर्टी खरीदी थी और अब वह उसे बेचना चाहता है। प्रॉपर्टी की मौजूदा मार्केट वैल्‍यू 4 करोड़ रुपए है, लेकिन सर्किल रेट की वजह से उसकी वैल्‍यू केवल 5 करोड़ या उससे ज्यादा हो सकती है। भले ही यह प्रॉपर्टी 4 करोड़ रुपए में बेची गई हो लेकिन खरीदार को 5 करोड़ रुपए पर स्‍टाम्‍प ड्यूटी देनी होगी, वहीं विक्रेता को कैपिटल गेन टैक्‍स का भुगतान 5 करोड़ रुपए पर ही करना होगा, भले ही उसे इस बिक्री से केवल चार करोड़ रुपए मिले हों।

सर्किल रेट्स का असर-

सर्किल रेट्स में बदलाव मार्केट प्राइस पर तुरंत असर नहीं डालते, जो कि मांग और आपूर्ति से चलती है। पिछले कुछ समय में देखा गया है कि जब भी सर्किल रेट बढ़ते हैं तो प्रॉपर्टी के दाम भी मामूलीरूप से बढ़ जाते हैं और जब मार्केट रेट बढ़ते हैं तो सरकार सर्किल रेट बढ़ा देती है, जिससे बढ़ती कीमतों के साथ तालमेल बनाया जा सके। बहुत से इलाकों में इस वजह से एक ऐसा चक्र बन गया कि डेवेलपर्स और प्रॉपर्टी मालिक अपनी प्रॉपर्टी की कीमत बढ़ाने के लिए नियमित तौर पर सर्किल रेट बढ़वाने लगे।

जिन बाजारों में मांग कम है वहां सर्किल रेट मार्केट रेट पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं डालते हैं। बाजार के मौजूदा हालात में जहां प्रॉपर्टी की कीमतें कम मांग के कारण पहले से ही दबाव में हैं, वहां सर्किल रेट में कटौती से कीमतों में गिरावट देखी जा सकती है।

जब सर्किल रेट में बदलाव होता है तो यह निर्माणाधीन प्रोजेक्‍ट्स पर ज्‍यादा असर नहीं डालेगा, लेकिन यह आने वाले नए प्रोजेक्‍ट्स पर कुछ असर डाल सकता है क्‍योंकि डेवेलपर्स द्वारा भुगतान किए जाने वाले कई शुल्‍क सर्किल रेट से जुड़े होते हैं।

पूरेे शहर में मार्केट रेट और सर्किल रेट के बीच अंतर हो सकता है। जिन जगहों पर मार्केट रेट पहले से ही कम हैं, वहां सर्किल रेट घटने से सैकेंडरी मार्केट की कीमतों पर ज्‍यादा कोई असर नहीं पड़ता है। संशोधित रेट मार्केट और सर्किल रेट के बीच अंतर को निश्चित तौर पर कम करेगा और इनके बीच संतुलन बनाए रखेगाा, इससे खरीदार और विक्रेता को स्‍पष्‍ट और उचित सौदा करने में मदद मिलेगी।

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