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महंगाई के आगे रावण भी हारा, ततारपुर में बनने वाले पुतलों का कद हुआ छोटा

महंगाई की मार से हर कोई त्रस्‍त है। लंकापति रावण का कद भी बढ़ती महंगाई के आगे छोटा होता जा रहा है।

Shubham Shankdhar
Updated : October 29, 2015 18:32 IST
महंगाई के आगे रावण भी हारा, ततारपुर में बनने वाले पुतलों का कद हुआ छोटा
महंगाई के आगे रावण भी हारा, ततारपुर में बनने वाले पुतलों का कद हुआ छोटा

नई दिल्‍ली। महंगाई की मार से हर कोई त्रस्‍त है। लंकापति रावण का कद भी बढ़ती महंगाई के आगे छोटा होता जा रहा है। हाल में सम्पन्न हुए दशहरे के त्योहार पर दिल्ली और इसके आस पास के राज्यों में फूंके गए रावण के पुतले दिल्ली के जिस गांव में बने उसका दौरा किया था इंडियाटीवी पैसा की टीम ने। लेकिन इस बार इन पुतलों की लंबाई पिछले साल से कुछ कम दिखाई दी। ततारपुर गांव में तैयार होने वाले पुतले उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब समेत तमाम राज्यों में जलाए जाते हैं। हर साल की तरह इस साल भी इनकें खरीदारों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है, लेकिन महंगाई ने इस बार रावण के कद को जरूर घटा दिया। इस साल बाजार में तैयार पुतलों के दाम करीब 300 रुपए प्रति फुट था।

महंगाई ने घटाई रावण की लंबाई

35 साल से रावण के पुतले बनाने का काम कर रहे सुल्तान सिंह का कहना है कि पुतले बनाने में लगने वाली सामग्री जैसे बांस, धोती, कागज और मजदूरी समेत सभी चीजें महंगी हो गई हैं, जिससे लागत बढ़ गई है। रावण के पुतले बनाने में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले बांस की कीमत 1200 से 1500 रुपए कोड़ी की है। लागत बढ़ने के कारण तैयार पुतले महंगे हैं, लेकिन लोग इतने ज्यादा पैसे खर्च करना नहीं चाहते। ऐसे में पुतलों की लंबाई घटाकर ही उनको सस्ता किया जा सकता है। इसी वजह से कम लंबाई के पुतलों की डिमांड ज्यादा है। सबसे ज्यादा डिमांड 25 से 30 फुट लंबाई वाले रावण की रही।

preparation of Ravan efigy in Tataarpur

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ततारपुर में अब ज्यादा से ज्यादा 45 से 50 फुट के ही रावण बनते हैं। सुल्तान सिंह ने बताया की इससे ज्यादा बड़े पुतलों की डिमांड अब बहुत कम है। साथ ही ज्यादा बड़े पुतले बनाने के लिए कारीगरों को उसी जगह पर जाना होता है जहां पुतले जलाने का आयोजन होता है।

बीते 50 वर्षों से बन रहे हैं पुतले

बीते 40 वर्षों से रावण के पुतले बनाने के काम से जुड़े महेंन्द्र बताते हैं कि करीब 50 साल से दिल्ली के ततारपुर गांव में रावण बनाने का काम जारी है। इसकी शुरुआत 50 साल पहले रावण वाले बाबा नाम से मशहूर सुट्टन लाल ने की थी। महेंद्र बताते हैं कि उन्होने बाबा से ही रावण बनाना सीखा था।

2 महीने के लिए सैकड़ों को रोजगार

रावण बनाने के कारोबार में करीब 4 किलोमीटर में फैले ततारपुर में दर्जनभर से ज्यादा कारीगर हैं, जिनके पास 20 से 25 लेबर काम कर रही है। इस हिसाब से इन दो महीनों के लिए सैकड़ों लोगों को ततारपुर में रोजगार मिलता है। ये लोग उत्तर प्रदेश और दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों से आते हैं।

विदेशों तक जाते हैं ततारपुर के रावण

ततारपुर में बनाए जाने वाले रावण के पुतलों की डिमांड विदेशों तक है। महेंन्द्र ने बताया कि ततारपुर से लोग कनाडा, ऑस्ट्रेलिया रावण बनाने के लिए जाते हैं। पानी के जहाज से सामान भेजा जाता है और उसके बाद वीजा लगवाकर कारीगरों को वहां ले जाया जाता है। हालांकि ISIS समेत तमाम सुरक्षा कारणों की वजह से इसबार एक्सपोर्ट की मांग काफी कम रही।

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