नई दिल्ली। न्यू ईयर पर कारों की कीमत बढ़ने से पहले अपनी पहली कार खरीदने के लिए कार्तिक काफी उत्सुक हैं। वे पिछले 15 दिनों से रोज अखबार और वेबसाइट खंगाल रहे थे। उन्होंने अपने बजट और स्पेसिफिकेशंस के आधार पर एक कार तय की। जब वे उस कार को फाइनल करने के लिए शोरूम पहुंचे, तो उन्हें उस कार की कीमत सुनकर झटका लगा। वे जिस कीमत के आधार पर अपना बजट तय कर रहे थे, कार की वास्तविक कीमत उससे 15 फीसदी ज्यादा थी।
असल में कार्तिक अभी तक विज्ञापनों में सिर्फ एक्स शोरूम कीमत ही देख रहे थे, जबकि उन्हें टैक्स, इंश्योरेंस और आरटीओ फीस जोड़कर ऑन रोड प्राइस पर अपना बजट तय करना था। कार्तिक जैसी गलती हममें से बहुत से लोग करते हैं, क्योंकि हमें एक्स शोरूम और ऑनरोड प्राइस में अन्तर नहीं समझ पाते। इंडिया टीवी पैसा की टीम आपको इसी अंतर के बारे में जानकारी देते हुए बताने जा रहा है कि वे कौन से खर्चे हैं, आपको अपनी कार या बाइक घर लाने से पहले कीमत में जोड़ लेने चाहिए।
यह भी पढ़ें- ये हैं 2016 में भारतीय सड़कों पर उतरने वाली 16 शानदार कारें, जो बनीं मार्केट की गेम चेंजर
तस्वीरों में देखिए कन्वर्टिबल मिनी कूपर के एक्सटीरियर और इंटीरियर
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
mini cooper convertible
क्या होता है कार का एक्स फैक्टरी प्राइज
देश में कार की कीमतें हर राज्य में अलग अलग होती है। एक गाड़ी में जो कारक कीमतों को प्रभावित करते हैं वो है- एक्स शोरुम प्राइज, एक्स फैक्टरी रेट और एक्स रोड रेट। कार के एक्स फैक्टरी प्राइज वो कीमत होती है जो मैन्युफैक्चरर कार डीलर को गाड़ी उठाने के लिए देता है। मसलन वो कीमत जिसपर मैन्युफैक्चरर गाड़ी बेचता है। एक्स प्राइज शब्दावली आजकल ज्यादा इस्तेमाल नहीं होती क्योंकि ये डीलर और मैन्युफैक्चरर के बीच होती है।
यह भी पढ़ें- रॉयल एनफील्ड ने क्लासिक-350 मॉडल की रेडडिच श्रृंखला पेश की
एक्स शोरूम प्राइज- ये वो कीमत होती है जिसपर कार डीलर रिटेल कस्टमर को कार बेचता है। इसमें डीलर का मार्जिन, ट्रांस्पोर्टेशन चार्जेस, एक्साइज, राज्य कर और ऑक्ट्रॉय चार्जेस शामिल होते है। राज्य सरकार गाड़ी पर एक्साइज ड्यूटी भी लेती है। इसे गाड़ी का सप्लाई प्राइज भी कहा जाता है। कुछ राज्यों और शहरों में एक्स शोरूम प्राइज में ऑक्ट्रॉय टैक्स भी सामिल होता है। ये वो टैक्स होता है जो लोकल ऑथॉरिटी बाहर से चीजें मंगवाने के लिए देती है। हर राज्य में ये अलग होता है। एक्स शोरुम प्राइज मूल कीमत होती है जिसमें किसी भी तरह के रजिस्ट्रेशन, इंश्योरेंस ये लोडिंग के चार्जेस शामिल नहीं होते।
ऑन रोड प्राइज- ये वो कीमत होती है जो ग्राहक कार डीलर को देता है और इसे इंवॉयस वैल्यू ऑफ द कार भी कहा जाता है। इसमें राज्य के रजिस्ट्रेशन चार्जेस, लाइफटाइम रोड टैक्स पेमेंट, अनिवार्य इंश्योरेंस और डीलर हैंडलिंग चार्ज या लॉगिस्टिक चार्ज शामिल होते है। साथ ही इसमें ऑपरेशनल कोस्ट शामिल हेती है जैसे कि एक्सेसरीज कोस्ट और एडिशनल ऑप्शनल वारंटी कवरेज। जो भी छूट होती है वो नेट ऑन रोड प्राइज में ही काट दिए जाते हैं। एक्स रोड प्राइज असल में वो कीमत होती है जिसपर खरीदार गाड़ी को घर लेकर जाता है।
रजिस्ट्रेशन चार्जेस– जितने भी मोटराइजड वाहन होते है भारत में उनपर रजिस्ट्रेशन या फिर लाइसेंस नंबर होता है। लाइसेंस या फिर नंबर प्लेट राज्य का डिस्ट्रिक्ट लेवल का रीजनल ट्रांस्पोर्ट ऑफिस (आरटीओ) देता है। ये हर राज्य में तो अलग होती ही है बल्कि एक ही राज्य में कार की कीमत और कार के प्रकार यानि कि डीजल ओर पेट्रोल पर निर्भर करता है।
लाइफटाइम रोड टैक्स– ये राज्य सरकार के नियम और ट्रैफिक रेगुलेशन्स के तहत लगाया जाता है। इसलिए हर राज्य में ये अलग होता है। साथ ही एक ही राज्य में ये कीमत वाहन के प्रकार और कीमत पर निर्भर करती है। ये एक राज्य में जीवनभर के लिए एक ही बार दिया जाता है और इसलिए इसे लाइफटाइम रोड टैक्स कहा जाता है। अगर आप एक राज्य से दूसरे राज्य में शिफ्ट होते हैं तो आपको फिर से रजिस्टर कराना पड़ता है और नए राज्य के आरटीओ की ओर से डेप्रिशियेटेड कीमत के आधार पर दोबारा टैक्स देना पड़ता है। साल दर साल वाहन की कीमत घटती रहती है।
व्हीकल इंश्योरेंस- इसे ऑटो इंश्योरेंस भी पहते है। सामान्य तौर पर इसे कराने का मकसद वाहन को किसी भी तरह की जैसे कि फिजिकल डेमेज या फिर शरीर पर चोट लगने पर आर्थिक सुरक्षा देने के लिए कराया जाता है। कानून के तहत सभी चार पहिया व्हीकल्स के लिए इंश्योरेंस प्लान अनिवार्य है। यह इंश्योरेंस हर साल वाहन की वैल्यू के अनुसार तय होता है। वाहन ज्यादा पुराना होने पर उसकी वैल्यू का स्थिर रख कर थर्ड पार्टी इंश्योरेंस ही करवाया जाता है।
डीलर हैंडलिंग चार्ज या लॉगिस्टिक चार्ज- कई डीलर ये कीमत आपसे गाड़ी को वेयरहाउस से शोरूम तक लाने के नाम पर लेता है। डीलर ये कीमत आपसे गाड़ी को वेयरहाउस से शोरूम तक लाने के नाम पर, बेसिक फ्यूल, नंबर प्लेट के चार्जेस, गाड़ी की साफ सफाई और डिलिवरी चार्जेस के नाम पर लेता है। ये कीमत थोड़ी ज्यादा होती है जैसे कि हैचबैक के लिए 6000 रुपए और लग्जरी सेगमेंट कार में 25 हजार तक का होता है।