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वसीयत बनाना है बहुत जरूरी, जानिए इसके बारे में यहां सबकुछ

सही ढंग से न बनी Will के अभाव में भविष्‍य में कुछ रास्‍ते मुश्किल ही नहीं बल्कि पेंचीदा भी हो सकते हैं। उदाहरण बिड़ला, रैनबैक्सी और अंबानी परिवार का है।

Surbhi Jain
Updated : August 18, 2016 10:21 IST
नई दिल्‍ली। पुरानी कहावत है जहां चाह, वहां राह। सही ढंग से न बनी वसीयत (Will) के अभाव में भविष्‍य में कुछ रास्‍ते मुश्किल ही नहीं बल्कि बहुत पेंचीदा भी हो सकते हैं। आपके सामने बिड़ला, रैनबैक्सी और अंबानी परिवार का उदाहरण है। इनके परिवारों में भी वसीयत न होने की वजह से संपत्ति को लेकर विवाद हुए हैं और बंटवारे में दिक्‍कत आई है। भारत में मुश्किल से वित्तीय प्रबंधन में वसीयत बनाने की योजना देखने को मिलती है। वसीयत की महत्वता और इसके प्रबंधन के बारे में जानने से पहले हम यह जानते हैं कि वसीयत वास्‍तव में है क्‍या।

क्या होती है वसीयत

यह एक कानूनी दस्तावेज होता है जिसमें संपत्ति के मालिक की मृत्यु के बाद पूंजी और पद के हकदार के लिए एक या एक से ज्यादा लोगों के नाम होते हैं। संपत्ति रखने वाला व्यक्ति अपने जीवनकाल में कभी भी अपनी वसीयत को वापस ले सकता है और उसमें बदलाव भी कर सकता है।

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वसीयत बनाना क्यों है जरुरी

वसीयत बनाना इसलिए जरुरी है क्योंकि व्यक्ति की मृत्यु के बाद यह दस्तावेज सुनिश्चित करता है कि उसकी संपत्ति सुरक्षित हाथों में रखेगी। एक साफ और अच्छी लिखी वसीयत उसके असली वारिस को आपसी झगड़े से बचाती है। यदि व्यक्ति अपनी वसीयत को अपने वारीस को देने के बजाए किसी और को देना चाहता है तो ऐसी स्थिती में वह वसीयत उत्तम अहमियत रखता है।

कौन बना सकता है वसीयत

कोई भी बालिग व्यक्ति जिसकी मानसिक स्थिति स्वस्थ हो वह वसीयत बना सकता है। मूक बधिर और नेत्रहीन व्यक्ति भी वसीयत बनवा सकते हैं। मानसिक तौर पर कमजोर लोग वसीयत नहीं बना सकते हैं।

वसीयत का पंजीकरण

वसीयत का पंजिकृत होना जरूरी नहीं है। किसी भी सफेद कागज पर लिखी वसीयत का रजिस्टर्ड वसीयत जितना ही महत्व होता है। लेकिन किसी भी प्रकार का संदेह या अविश्वसनियता को दूर रखने के लिए बेहतर है कि इसका पंजीकरण कराएं। वसीयत का पंजीकरण कराने के लिए गवाहों के साथ सब-रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर संबंधित व्यक्ति से रजिस्टर कराएं।

कानूनी प्रमाण

वसीयत के पंजीकरण के बाद यह एक कानूनी प्रमाण बन जाता है। इसमें लिखित में यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि वसीयत बनाने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ है और वह अपनी मर्जी से इसे बनवा रहा है। वसीयत पर निर्वाहक के हस्ताक्षर के बाद इसे दो गवाहों से अटेस्ट कराना होता है। आपको बात दें कि वसीयत पर कोई स्टाम्प ड्यूटी नही देनी होती है।

वसीयत के प्रकार

वसीयत दो प्रकार की होती है, विशेषाधिकार प्राप्त (privileged) और आम (unprivileged) वसीयत। विशेषाधिकार प्राप्त वसीयत अनौपचारिक वसीयत होती है जो कि सैनिक, विमानक और जल सैनिक के लिए होती है। इसके अवाला अन्य सभी वसीयत आम कहलाती है। विशेषाधिकार प्राप्त वसीयत में व्यक्ति आअपनी मृत्यु के चंद घंटों पहले लिखित या मौखिक वर्णन के आदार पर वसीयत बनवा सकता है, जबकि आम वसीयत में पहले औपचारिकताओं का पालन करना होता है।

वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर

आम वसीयत में वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं। यदि वसीयतकर्ता शारीरिक रुप से अस्व्स्थ है तो वसीयतकर्ता की मौजूदगी में कोई और उनकी जगह हस्ताक्षर कर सकता है। बाद में होने वाले किसी भी विवाद से बचने के लिए बेहतर है कि पहले से वसीयतकर्ता को हस्ताक्षर करा कर रख ले। आम वसीयत में दो गवाहों की मौजूदगी में एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिए।

वसीयत की सुरक्षा

भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत वसीयत की सुरक्षा का प्रावधान है। सिलबंद कवर के ऊपर वसीयतकर्ता के नाम के साथ किसी भी रजिस्ट्रार के पास सुरक्षित रखवाया जा सकता है। वसीयत को प्रामाणिक बनाने के लिए उत्तराधिकारी गवाह के रुप में नहीं होना चाहिए।

वसीयत का खण्डन

वसीयत का खण्डन स्वैच्छिक या अनैच्छिक हो सकता है। अनैच्छिक खण्डन कानून के तहत होता है। शादी के बाद वसीयतकर्ता की वसीयत रद्द हो जाती है। साथ ही अगर वह दूसरी सादी करता है तो पहली शादी के दौरान बनाई गई वसीयत अपने आप रद्द हो जाती है। वसीयतकर्ता अपने जीवन काल में जितनी चाहे उतनी वसीयत बना सकता है, लेकिन मृत्यु से पहले आखिरी बनाई गई वसीयत ही वैध मानी जाती है।

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