Algo Trading : शेयर बाजार के निवेशकों की संख्या भारत में काफी तेजी से बढ़ी है। कुछ लोग यहां इन्वेस्टेमेंट करते हैं तो कुछ ट्रेडिंग। हम-सब जानते हैं कि इन्वेस्टमेंट या ट्रेडिंग के फैसले लेने से पहले हमें शेयर के बारे में काफी रिसर्च करनी होती है। चार्ट पैटर्न देखने होते हैं और मौके को भुनाने के लिए तैयार रहना होता है। समय के साथ-साथ बाजार में निवेश के तरीके भी बदल रहे हैं। ऐसा ही एक तरीका है एल्गो ट्रेडिंग। लेकिन मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) इसे लेकर थोड़ा परेशान है। सेबी एल्गो ट्रेडिंग से जुड़े नियमों को सख्त करना चाहता है। अब सेबी को एल्गो ट्रेडिंग से क्या समस्या है, इससे पहले यह जानना जरूरी है कि एल्गो ट्रेडिंग आखिर होती क्या है।
क्या होती है एल्गो ट्रेडिंग?
कैसा रहे कि आपकी जगह एक सॉफ्टवेयर शेयर पर पूरी नजर रखे और मौका आते ही बाय या सेल ऑर्डर लगा दे। एल्गो ट्रेडिंग में ऐसा ही होता है। एल्गो शब्द एल्गोरिदम से आया है। एल्गो ट्रेडिंग में ट्रेडिंग सिग्नल्स जनरेट करने और ब्रोकर के साथ बाय या सेल ऑर्डर्स डालने के लिए एल्गोरिदम्स को ऑटोमेटेड यूज किया जाता है। जैसे- 'अगर एसबीआई का शेयर नया 52 वीक हाई बनाए तो 100 शेयर खरीदें।' इसके साथ कई दूसरी शर्तें भी लगाई जा सकती हैं। जैसे- 'एसबीआई का शेयर नया 52 वीक हाई बनाए और ट्रेडिंग वॉल्यूम डेली एवरेज की दोगुनी हो और बैंक निफ्टी इंडेक्स पिछले क्लोजिंग लेवल से कम से कम 0.5 फीसदी ऊपर हो, तो एसबीआई के 100 शेयर खरीदें।'
क्या हैं नियम?
इस समय ग्राहकों को एल्गो ट्रेडिंग ऑफर करने के लिए ब्रोकर्स को एक्सचेजों का अप्रूवल लेना होता है। उन्हें एल्गो स्ट्रैटेजी और इसमें होने वाले बदलावों के बारे में एक्सचेंजों को बताना होता है। सभी एल्गो ऑर्डर्स भारत में मौजूद ब्रोकर सर्वर्स के जरिए आने चाहिए। साथ ही सभी एल्गो ऑर्डर्स स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा उपलब्ध करायी गई यूनिक पहचान के साथ टैग होने चाहिए, जिससे जरूरत पड़ने पर ऑडिट करना सरल हो सके। इससे एक्सचेंज को यह भी पता लगता है कि उसके पास आया ऑर्डर एल्गोरिदम वाला है या गैर एल्गोरिदम।
API यूज करते हैं ट्रेडर्स
लेकिन रिटेल ट्रेडर्स ब्रोकर्स द्वारा अपने क्लाइंट्स को ऑफर किये गए ओपन एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस का यूज करके बायपास कर जाते हैं। एपीआई प्रोग्रामिंग कोड्स का एक सेट होता है, जो डेटा का विश्लेषण करता है और एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म से दूसरे के बीच इंस्ट्रक्शंस भेजता है। इस मामले में यह ब्रोकर के सॉफ्टवेयर के बीच रहता है और क्लाइंट द्वारा यूज हो रहा होता है। जब क्लाइंट्स एपीआई के जरिए ऑर्डर डालते हैं, तो ना तो एक्सचेंज और ना ही ब्रोकर्स यह पहचान पाते हैं कि वे एल्गो ट्रेड्स हैं या नॉन-एल्गो ट्रेड्स।
सेबी को क्यों हो रही परेशानी?
सेबी को एल्गो ट्रेडिंग के मामले में 2 बड़ी चिंताएं हैं। पहली यह कि इनमें से कई एल्गो डेवलपर्स भोले-भाले ट्रेडर्स को ऊंचे रिटर्न का लालच देते हैं। दूसरा एल्गो डेवलपर्स रेगुलेटर द्वारा अनिवार्य किये गए रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के लिए लागू नियमों को बायपास करते हैं। एल्गो डेवलपर्स अब तक सेबी की पहुंच से बाहर रहने की कोशिश करते रहे हैं। उनका कहना है कि उन्हें रजिस्टर्ड होने की जरूरत नहीं हैं, क्यों सिग्नल्स तो सॉफ्टवेयर जनरेट करता है। वास्तव में, यह एक बहाना है, क्योंकि सॉफ्टवेयर के लिए रूल्स तो डेवलपर ही क्रिएट करता है। इसके अलावा डेवलपर अपने क्लाइंट्स से बड़े-बड़े वादे करता है, जो कि सेबी के नियमों का साफ-साफ उल्लंघन है।