शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों का रॉयल्टी भुगतान एक दशक में दोगुना से भी ज्यादा हो गया है। वित्त वर्ष 2022-23 में 233 कंपनियों ने रॉयल्टी के रूप में 10,779 करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो वित्त वर्ष 2013-14 में 4955 करोड़ रुपये था। शेयर मार्केट रेगुलेटर सेबी की एक स्टडी में ये सामने आया है। स्टडी में मालूम चला कि लिस्टेड कंपनियों में चार में से एक मामले में अपने संबंधित पक्षों को नेट प्रॉफिट के 20 प्रतिशत से ज्यादा रॉयल्टी का भुगतान किया। इसके अलावा, दो में से एक बार, रॉयल्टी का भुगतान करने वाली लिस्टेड कंपनियों ने डिविडेंड का भुगतान नहीं किया या शेयरधारकों को भुगतान किए गए डिविडेंड की तुलना में संबंधित पक्षों को ज्यादा रॉयल्टी का भुगतान किया।
रॉयल्टी का भुगतान कब करती हैं कंपनियां
ये स्टडी देश के सभी सेक्टरों में 233 लिस्टेड कंपनियों से जुड़ी सालाना रिपोर्ट, कंपनी-स्तरीय जानकारी पर आधारित है। इन कंपनियों ने वित्त वर्ष 2013-14 से वित्त वर्ष 2022-23 तक 10 साल की अवधि के दौरान अपने संबंधित पक्षों को रॉयल्टी भुगतान किया है, वह कारोबार का 5 प्रतिशत से भी कम है। आमतौर पर किसी कंपनी द्वारा रॉयल्टी का भुगतान टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एग्रीमेंट या किसी अन्य कंपनी के साथ किए गए सहयोग या अन्य कंपनी के ट्रेडमार्क/ब्रांड के नाम के इस्तेमाल के लिए किया जाता है।
भारत के संदर्भ में, लिस्टेड कंपनियां अपनी होल्डिंग कंपनियों या होल्डिंग कंपनी से जुड़ी सब्सिडरी कंपनियों को ब्रांड के इस्तेमाल, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर आदि के लिए रॉयल्टी भुगतान करती हैं। स्टडी के अनुसार, 2013-14 से 2022-23 के दौरान, 233 लिस्टेड कंपनियों ने कंपनी के कारोबार के 5 प्रतिशत के अंदर रॉयल्टी का भुगतान किया। ऐसे मामलों की संख्या 1538 थी।
रॉयल्टी के भुगतान को लेकर सही तरह से जानकारी नहीं दे रही कंपनियां
सेबी ने अपने स्टडी में संबंधित पक्षों को किए गए रॉयल्टी के भुगतान के संबंध में कंपनियों के स्तर पर खुलासे की कमी के साथ-साथ खुलासे को लेकर एकरूपता के अभाव को लेकर चिंता जताई है। सेबी ने कहा, ‘‘लिस्टेड कंपनियां अपनी सालाना रिपोर्ट में रॉयल्टी भुगतान के औचित्य और दर के संबंध में उचित खुलासे नहीं कर रही हैं। इसके अलावा, कंपनियां ये खुलासा भी नहीं कर रही हैं कि रॉयल्टी का भुगतान ब्रांड के इस्तेमाल के लिए दिया जा रहा है या फिर टेक्नोलॉजी के लिए।’’