अमेरिका में मंदी की आहट से ग्लोबल शेयर मार्केट में उथल-पुथल मची हुई है। अमेरिका के प्रमुख सूचकांकों- नैस्डैक, एसएंडपी 500, और डॉव जोन्स और प्रमुख यूरोपीय बाजारों, जिनमें यूके का एफटीएसई, फ्रांस का सीएसी 40 और जर्मनी का डीएएक्स शामिल हैं में भारी गिरावट देखने को मिल रही है।भारतीय शेयर बाजार के बेंचमार्क-सेंसेक्स और निफ्टी50 में भी सोमवार को भारी गिरावट रही। भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट के कारण निवेशकों को एक ही सत्र में करीब ₹15 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। इस बीच सवाल उठता है कि क्या अमेरिका में मंदी का डर सच में है? अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी के कुछ संकेत हैं। हालांकि, यह सोचना जल्दबाजी होगी कि अमेरिका को जल्द ही मंदी का सामना करना पड़ेगा। परंपरागत रूप से, अगर किसी अर्थव्यवस्था का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) लगातार दो तिमाहियों तक नकारात्मक रहता है, तो उसे मंदी का सामना करना पड़ता है।
अमेरिकी आर्थिक विश्लेषण ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल अप्रैल से जून तिमाही के दौरान अमेरिकी जीडीपी 2.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी। अमेरिकी विकास दर इतनी जल्दी नकारात्मक में जाने की संभावना नहीं है। यानी अमेरिका में अभी मंदी का डर जितना बाजार पर हावी है, वास्तविक में उतना है नहीं।
भारतीय शेयर बाजार के निवेशकों को क्या करना चाहिए?
मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि आने वाले कुछ सत्रों में वैश्विक स्तर पर बाजार स्थिर हो जाएंगे। कई लोग इस करेक्शन को भारतीय बाजार के लिए स्वस्थ मानते हैं, जो हाई वैल्यूएशन को लेकर चिंतित थे। वहीं, दूसरी ओर वैश्विक आर्थिक मंदी से भारत को लाभ मिलता है। पश्चिमी देशों में आर्थिक मंदी के कारण तेल की कीमतें गिरती हैं। चूंकि भारत वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट इसकी अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक है क्योंकि इससे विनिमय दर और विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार होता है और राजकोषीय घाटे में कमी आती है।
निवेशकों को चिंता करने की जरूरत नहीं
मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि भारतीय निवेशकों को अमेरिकी मंदी के बारे में बहुत अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए। अच्छे स्टॉक में निवेशित रहना चाहिए। वहीं, अच्छे स्टॉक में गिरावट पर निवेश करना चाहिए। ऐसा इसलिए कि जब भी अमेरिका में मंदी का डर होता है तो तेल की कीमतें बुरी तरह से गिरती हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार के लिए एक बड़ा सकारात्मक पहलू है। आर्थिक संकेतक महत्वपूर्ण हैं, लेकिन बाजार में अक्सर तरलता और मूल्यांकन की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया जाता है। वैश्विक बाजारों में इस गिरावट के पीछे सबसे बड़ा कारण उच्च मूल्यांकन और तरलता तथा बाजार पूंजीकरण के बीच बेमेल है। चीनी बाजारों को छोड़कर, दुनिया के बाकी प्रमुख बाजार उच्च मूल्यांकन पर हैं।