ओपेक+ कार्टेल द्वारा इस वर्ष उत्पादन में वृद्धि की अनुमति देने की योजना के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इस सप्ताह तेल की कीमतें 4 डॉलर प्रति बैरल से अधिक गिरकर चार महीने के निचले स्तर पर आ गई हैं, जबकि अमेरिका में कच्चे तेल के भंडार में वृद्धि ने मंदी की भावनाओं को और बढ़ा दिया है। इसका फायदा भारत को होने की पूरी गुंजाइश है। IANS की खबर के मुताबिक, अगस्त के लिए बेंचमार्क ब्रेंट ऑयल वायदा बुधवार को 77.50 डॉलर पर आ गया, जबकि डब्ल्यूटीआई (वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट) पर जुलाई के कच्चे तेल के वायदे 73.22 डॉलर पर थे।
कीमतें अब 80 डॉलर प्रति बैरल से नीचे
खबर के मुताबिक, 7 फरवरी के बाद पहली बार तेल की कीमतें अब 80 डॉलर प्रति बैरल से नीचे आ गई हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है क्योंकि देश अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है और तेल की कीमतों में किसी भी गिरावट से देश के आयात बिल में कमी आती है। इससे चालू खाता घाटा (सीएडी) कम होता है और रुपया मजबूत होता है। बाहरी संतुलन को मजबूत करने के अलावा, तेल की कीमतों में गिरावट से घरेलू बाजार में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतें भी कम होती हैं जिससे देश में मुद्रास्फीति कम होती है।
रूस अब भारत को कच्चे तेल का सबसे बड़ा सप्लायर
सरकार ने यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर पश्चिमी दबाव के बावजूद तेल कंपनियों को रियायती कीमतों पर रूसी कच्चा तेल खरीदने की अनुमति देकर देश के तेल आयात बिल को कम करने में भी मदद की है। नरेंद्र मोदी सरकार अमेरिका और यूरोप द्वारा मास्को के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने में दृढ़ रही है। रूस अब भारत को कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है, जिसने पहले इराक और सऊदी अरब की जगह ली थी, जो पहले शीर्ष स्थान पर थे। भारत वास्तव में रूस के समुद्री तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जो अप्रैल में भारत के कुल तेल आयात का लगभग 38 प्रतिशत था।
देश के तेल आयात बिल में बड़ा बचत
आईसीआरए की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस से तेल आयात की कीमत वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 के 11 महीनों में खाड़ी देशों से इसी स्तर की तुलना में क्रमशः 16.4 प्रतिशत और 15.6 प्रतिशत कम थी। रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखने की भारत की रणनीति के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2022-23 के पहले 11 महीनों के दौरान देश के तेल आयात बिल में लगभग 7.9 बिलियन डॉलर की बचत हुई है और देश को अपने चालू खाता घाटे को कम करने में भी मदद मिली है। चूंकि भारत दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, इसलिए रूसी तेल की इन बड़ी खरीदों ने विश्व बाजार में कीमतों को अधिक उचित स्तर पर रखने में भी मदद की है, जिसका लाभ अन्य देशों को भी मिला है।