गया सप्ताह शेयर बाजार के लिए बेहतर रहा। उतार चढ़ाव के बीच शेयर बाजार ने शुक्रवार को तेजी के साथ कारोबार बंद किया। बीते सप्ताह बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 772.01 अंक या 1.25 प्रतिशत के लाभ में रहा। आने वाले हफ्ते में यदि आप भी शेयर बाजार में निवेश करने की तैयारी कर रहे हैं तो आपको बाजार के कुछ महत्वपूर्ण संकेतों और ट्रिगर्स को पहचानना होगा। कारोबार के जानकारों के अनुसार स्थानीय शेयर बाजारों की दिशा इस सप्ताह वृहद आर्थिक आंकड़ों, वाहन बिक्री के मासिक आंकड़ों, एफआईआई के प्रवाह और वैश्विक रुझानों से तय होगी। अमेरिका के ऋण समझौते तथा संस्थागत प्रवाह पर भी सभी की निगाह रहेगी।
अमेरिका पर होगी निगाहें
स्वस्तिका इन्वेस्टमार्ट लि.के शोध प्रमुख संतोष मीणा ने कहा, ‘‘इस सप्ताह बाजार भागीदार संस्थागत प्रवाह पर करीबी नजर रखेंगे, क्योंकि माना जाता है जब विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) और घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) दोनों शुद्ध लिवाल हो जाते हैं, तो बाजार में कुछ मुनाफावसूली की संभावना बन जाती है।’’ मीणा ने कहा कि वैश्विक मोर्चे पर अमेरिका में ऋण सीमा को लेकर गतिविधियां महत्वपूर्ण रहेंगी। इसके अलावा अमेरिका के वृहद आर्थिक आंकड़ों, बॉन्ड पर प्रतिफल, डॉलर सूचकांक की चाल और कच्चे तेल के दाम पर भी भागीदारों की निगाह रहेगी। उन्होंने कहा, ‘‘घरेलू मोर्चे पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आंकड़े और वाहन बिक्री के आंकड़े महत्वपूर्ण रहेंगे।’’
आर्थिक आंकड़ों और कंपनी के नतीजे तय करेंगे दिशा
रेलिगेयर ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष-शोध अजित मिश्रा ने कहा, ‘‘इस सप्ताह नए महीने की शुरुआत होगी। ऐसे में बाजार भागीदारों की निगाह वाहन बिक्री, विनिर्माण पीएमआई और सेवा पीएमआई आंकड़ों पर होगी। इससे पहले 31 मई को जीडीपी के आंकड़े आने हैं।’’ विनिर्माण क्षेत्र के पीएमआई आंकड़े बृहस्पतिवार को आएंगे। उन्होंने कहा कि इन सब कारकों के अलावा बाजार भागीदारों की निगाह अमेरिकी बाजार के प्रदर्शन पर रहेगी। बीते सप्ताह बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 772.01 अंक या 1.25 प्रतिशत के लाभ में रहा।
ग्लोबल मंदी की बढ़ी चिंता
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा, ‘‘बीते सप्ताह घरेलू बाजारों का प्रदर्शन वैश्विक घटनाक्रमों से प्रभावित रहा। इनमें अमेरिका में ऋण सीमा बढ़ाने को लेकर गतिरोध, जर्मनी में मंदी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अधिकारियों की टिप्पणियां शामिल हैं।’’ जर्मनी जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था का मंदी में जाना काफी चिंताजनक है। ब्रिटेन के हालात कुछ जरूर सुधरे हैं लेकिन अभी भी संकट के बादल पूरी तरह से छटे नहीं हैं।