एक दौर था जब भारतीय शेयर बाजार (Stock Market) की दशा और दिशा विदेशी निवेशक तय करते हैं। अगर विदेशी निवेशकों ने खरीदारी की तो बाजार में तेजी आती थी। अगर उन्होंने बिकवाली कर दी तो बाजार औंधे मुंह गिर जाता था। लेकिन अब ये बातें इतिहास की हो गई है। अब भारतीय बाजार को विदेशी नहीं बल्कि घरेलू निवेशक चला रहे हैं। शायद इसलिए ही अब उनके बिकवाली का भारतीय बाजार पर ज्यादा असर नहीं हो रहा है। ताजा आंकड़ा तो यही कह रहे हैं। आपको बता दूं कि इक्विटी बाजारों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की भारी बिकवाली के असर को घरेलू फंड और खुदरा निवेशक बेअसर कर रहे हैं।
शेयर मार्केट के जानकारों का कहना है कि इसका भारतीय बाजार पर अच्छा असर देखने को मिलेगा। बाजार में जो पहले बड़ी गिरावट आती थी वो आगे शायद देखने को नहीं मिले। इससे छोटे निवेशकों को नुकसान होने की संभावना कम होगी। भारतीय स्टॉक मार्केट अपने दायरे में कारोबार करेगा। वह विदेशी निवेशकों के भरोसे नहीं चलेगा।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली का असर नहीं
एफपीआई ने अप्रैल में अबतक भारतीय पूंजी बाजार में 6,304 करोड़ रुपये की इक्विटी बेची। इस दौरान नकदी बाजार में इक्विटी बिक्री 20,525 करोड़ रुपये रही। डेट मार्केट में भी नए सिरे से बिकवाली का चलन है। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी.के. विजयकुमार का कहना है कि अप्रैल में डेट बिक्री 10,640 करोड़ रुपये रही। उन्होंने कहा कि अमेरिका में बॉन्ड पर ब्याज दर बढ़ने से इक्विटी और डेट दोनों में एफपीआई एक बार फिर बिकवाल हो गये हैं। दस साल के बॉन्ड पर ब्याज अब लगभग 4.7 प्रतिशत है जो विदेशी निवेशकों के लिए बेहद आकर्षक है।
इसलिए भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे एफपीआई
विजयकुमार ने कहा कि नवीनतम आंकड़ों में अमेरिका में गैर-खाद्य खुदरा महंगाई बढ़कर 3.7 प्रतिशत हो गई जबकि विशेषज्ञ 3.4 प्रतिशत की उम्मीद कर रहे थे। इसका मतलब है कि फेड द्वारा दरों में जल्द कटौती की संभावनाएं कम होती जा रही हैं। इससे बॉन्ड पर ब्याज ऊंची बनी रहेगी जिससे इक्विटी और डेट दोनों में एफपीआई बिकवाल रहेंगे।
उन्होंने कहा, “सकारात्मक कारक यह है कि इक्विटी बाजारों में सभी एफपीआई की बिक्री के प्रभाव को घरेलू संस्थागत निवेशक, धनाढ्य व्यक्तिगत निवेशक और खुदरा निवेशक कम कर रहे हैं। यही एकमात्र कारक है जो एफपीआई की बिकवाली पर हावी हो सकता है।''
इनपुट: आईएएनएस