सेबी ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया है, जिसके बाद स्टॉक मार्केट में कई नियामकीय बदलाव होने वाले हैं। ये बदलाव निवेशकों के हित में हो सकते हैं, लेकिन ब्रोकरेज फर्मों के लिए अच्छी खबर बिल्कुल नहीं हैं। सर्कुलर में स्टॉक एक्सचेंज, क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और डिपॉजिटरी समेत मार्केट इन्फ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशंस (MII) को 1 अक्टूबर से लेनदेन पर एक समान शुल्क लगाने का निर्देश दिया गया है। स्टॉक एक्सचेंजों में एक स्लैब-वार स्ट्रक्चर होता है, जहां वे ब्रोकरेज फर्मों से हाई वॉल्यूम के लेनदेन के लिए कम शुल्क लेते हैं। लेकिन ब्रोकरेज फर्म्स इस मासिक परिचालन खर्च को निवेशकों से उच्चतम स्लैब रेट पर वसूलती हैं, जिससे उन्हें मुनाफा होता है। नए नियमों का उद्देश्य पारदर्शिता को बढ़ावा देना है और ग्राहकों द्वारा भुगतान किए जाने वाले लेनदेन शुल्क को कम करना है।
ब्रोकरेज फर्म्स के लिए एक और बुरी खबर
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ने ब्रोकरेज फर्म्स द्वारा अपने कस्टमर बेस का विस्तार करने के लिए उपयोग किए जाने वाले रेफरल प्रोग्राम्स पर लगाम लगा दी है। इसने ब्रोकरेज फर्म्स को रेफरल प्रोत्साहन का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया है, जब तक कि इंडिविजुअल को एक्सचेंज के साथ एक अधिकृत इंडिविजुअल के रूप में रजिस्टर नहीं किया जाता है। इस कदम का उद्देश्य प्रेरित ट्रेडिंग को कम करना है, जहां निवेशकों को जोखिम भरी रेफरल एक्टिविटीज या अनधिकृत निवेश योजनाओं में भाग लेने के लिए बहलाया जा सकता है। यह नया नियम ऑनलाइन ब्रोकरेज फर्म्स को काफी प्रभावित कर सकता है, क्योंकि पारंपरिक ब्रोकरेज फर्मों के विपरीत, उनके पास सब-ब्रोकर या फ्रेंचाइजी नहीं हैं, जो पहले से ही अधिकृत संस्थाएं हों।
सरकार ने बढ़ाया टैक्स
सरकार ने बजट में फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) ट्रेड्स पर सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स (STT) 0.01% से बढ़ाकर 0.02% कर दिया है। यह भी 1 अक्टूबर से प्रभावी होगा। ट्रेड्स पर टैक्स दोगुना होने से लेनदेन का वॉल्यूम कम हो सकता है। दूसरी ओर, उच्च टैक्स निवेशकों की लाभ सीमा भी बढ़ाएंगे, जिससे संभावित रूप से उन्हें अधिक जोखिम लेने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
क्यों किये जा रहे ये बदलाव?
निवेशकों के हितों की रक्षा करने और स्टॉक मार्केट में सट्टेबाजी को कम करने के लिए सेबी ने ये कदम उठाए हैं। सेबी का कहना है कि साल 2024 में लगभग 91 फीसदी F&O ट्रेडर्स ने जोखिम भरे ट्रेड्स में कुल ₹75,000 करोड़ का नुकसान उठाया है। इसके अलावा, लिक्विडिटी की बाढ़ और खुदरा निवेशकों का उत्साह दुनिया के सबसे महंगे इक्विटी मार्केट के लिए घातक संयोजन बन रहा है। इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स इन बदलावों को देश में एक स्थायी निवेश परिदृश्य के साथ-साथ पूंजी बाजार के संतुलित और व्यवस्थित विकास के लिए आवश्यक मानते हैं।
ब्रोकरेज फर्म्स का क्या होगा?
ट्रांजेक्शन कॉस्ट गेन्स और रेफरल इेन्सेंटिव्स ब्रोकरेज फर्म्स के मुख्य रेवेन्यू सोर्स रहे हैं, जिनकी कमाई में गिरावट आ सकती है। भारत की प्रमुख ऑनलाइन ब्रोकरेज फर्म्स में से एक, जेरोधा के सह-संस्थापक और सीईओ नितिन कामथ के अनुसार, इस साल के अंत में फर्म राजस्व में 10% की गिरावट की उम्मीद कर रही है। ऐसे में ब्रोकरेज फर्म्स द्वारा इक्विटी डिलीवरी इन्वेस्टमेंट पर ब्रोकरेज शुल्क पेश किया जा सकता है, जो वर्तमान में मुफ्त है। वहीं, F&O ट्रेडिंग शुल्क में भी वृद्धि हो सकती है।