नई दिल्ली। सेबी ने रविवार को साफ किया कि मल्टी कैप स्कीम को छोटी कंपनियों में तय सीमा के आधार पर निवेश रखने के लिए जरूरी नहीं है कि वो छोटी कंपनियों में निवेश बढ़ाए या फिर बड़ी कंपनियों में निवेश घटाएं। सेबी के मुताबिक उनके पास इसके अलावा अन्य विकल्प भी मौजूद हैं, जिससे वो अपनी मल्टीकैप स्कीम को उसके पोर्टफोलियो के हिसाब से दूसरी स्कीम में बदल सकते हैं या फिर उसे दूसरी स्कीम के साथ मिला सकते हैं। इन उपायों में मल्टी कैप स्कीम को लार्ज कैप स्कीम के साथ मिलाना। या फिर मल्टी कैप स्कीम को किसी और स्कीम में बदल देना, जैसे की लार्ज कैप कम मिड कैप स्कीम। इसके साथ ही यूनिट होल्डर को भी स्कीम बदलने का मौका दिया जाना चाहिए सेबी ने कहा कि फंड हाउस ऐसे ही विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे उनकी स्कीम और पोर्टफोलियो एक दूसरे के हिसाब से हो जाएं। सेबी ने कहा कि इस बारे में अगर कोई और सुझाव मिलता है, तो वो उस पर भी विचार करेंगे।
सेबी के मुताबिक मल्टीकैप स्कीम पर पिछले आदेश का उद्देश्य सिर्फ इतना था कि स्कीम और पोर्टफोलियो एक दूसरे के अनुसार ही हों। सेबी ने कहा कि ऐसे देखने में आया है कि कुछ मल्टीकैप स्कीम में 80 फीसदी तक निवेश लार्ज कैप में था, जो कि वैसे ही था जैसे लार्ज कैप स्कीम में होता है। वहीं दूसरी तरफ कुछ स्कीम में स्मॉल कैप में निवेश शून्य या फिर बेहद कम निवेश था। ऐसे में ये स्कीम मल्टी कैप स्कीम के पोर्टफोलियो के मुताबिक नहीं थी। इसे देखते हुए ही सेबी ने फैसला लिया था कि म्यूचुअल फंड्स की मल्टी कैप स्कीम में कम से कम 25-25 फीसदी हिस्सा लार्ज कैप, मिड कैप और स्मालकैप कंपनियों में होना चाहिए। नियमों के मुताबिक अगर किसी स्कीम में ज्यादातर हिस्सा लार्ज कैप और मिड कैप में है, तो पोर्टफोलियो में बदलाव करने की जगह फंड स्कीम में बदलाव कर सकते हैं जिससे निवेशकों को पता चले की स्कीम मल्टी कैप नहीं सिर्फ लार्ज कैप और मिड कैप स्कीम है।