नई दिल्ली। देश के पूंजी बाजार में पार्टिसिपेटरी नोट (पी-नोट) के जरिये निवेश लगातार घट रहा है। दिसंबर 2019 तक यह घटकर 64,537 करोड़ रुपए पर आ गया, जो 11 साल का न्यूनतम स्तर है। पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) उन विदेशी निवेशकों को पी-नोट जारी करते हैं जो सीधे तौर पर पंजीकृत हुए बिन भारतीय शेयर बाजार का हिस्सा बनना चाहते हैं। हालांकि उन्हें जांच-पड़ताल की प्रक्रिया से गुजरना होता है।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के आंकड़े के अनुसार भारतीय बाजार में पी-नोट निवेश का कुल मूल्य दिसंबर तक घटकर 64,537 करोड़ रुपए पर आ गया। इससे पहले नवंबर में यह 13 महीने के न्यूनतम स्तर 69,670 करोड़ रुपए पर आ गया था। ये निवेश शेयर, बांड और डेरिवेटिव में किए गए।
पी-नोट के जरिये पूंजी प्रवाह दिसंबर में फरवरी 2009 के बाद सबसे कम है। उस समय इसके माध्यम से निवेश 60,948 करोड़ रुपए था। नवंबर तक किए गए कुल निवेश में से 52,486 करोड़ रुपए शेयरों में, 11,415 करोड़ रुपए बांड में और 636 करोड़ रुपए डेरिवेटिव खंड में निवेश किए गए।
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि सेबी द्वारा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए नियमों को उदार किए जाने से पी-नोट के जरिये निवेश प्रभावित हो रहा है। इससे पहले, सेबी ने एफपीआई के लिए केवाईसी जरूरतों और नियमन प्रक्रिया को सरल किया है। इसके अलावा ऐसे निवेशकों का वर्गीकरण किया गया है। नए नियमों के तहत एफपीआई को दो श्रेणियों में बांटा गया है और 80 प्रतिशत श्रेणी-1 के दायरे में आते है। जो निवेशक इसके दायरे में आते हैं, उन्हें सरल आवेदन फॉर्म भरने की जरूरत होती है।