नई दिल्ली। आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में और तेजी देखने को मिल सकती है। दरअसल कच्चे तेल की कीमतों में आज लगातार पांचवे दिन बढ़त देखने को मिल रही है, जिसके साथ ब्रेंट क्रूड 80 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के करीब पहुंच गया है। कोरोना संकट का असर कम होने के साथ-साथ कच्चे तेल की मांग बढ़ने के संकेतों के बीच सप्लाई को लेकर आ रही दिक्कतों की वजह से कीमतों में तेजी देखने को मिल रही है। भारत में भी रिफायनरी के द्वारा काम तेज किये जाने से अगस्त के महीने में कच्चे तेल का आयात 3 महीने के ऊपरी स्तरों पर पहुंच गया है।
80 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के करीब ब्रेंट
नवंबर 2021 कॉन्ट्रैक्ट के लिये ब्रेंट क्रूड की कीमत 79 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गयी है। वहीं डब्लूटीआई क्रूड 75 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के पार पहुंच गया है। एक महीने पहले ब्रेंट क्रूड 71 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर था। यानि इस दौरान कच्चे तेल की कीमतों में 11 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की जा चुकी है। भारत की क्रूड ऑयल बॉस्केट में अधिकांश हिस्सा ब्रेंट क्रूड का होता है। कच्चे तेल की कीमतों में बढ़त मांग के मुकाबले सप्लाई में कमी की वजह से देखने को मिली है।
क्यों बढ़ रही है कच्चे तेल की कीमत
कोविड से रिकवरी के साथ औद्योगिक गतिविधियों में तेजी से कच्चे तेल की मांग भी बढ़ रही है, हालांकि दूसरी तरफ उत्पादन अभी भी महामारी के असर से बाहर नहीं निकल सका है। महामारी के दौरान निवेश की कमी और मेंटीनेंस में देरी से सप्लाई को सामान्य होने में वक्त लग रहा है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में एएनजेड रिसर्च के हवाले से कहा गया है कि दुनिया भर के हर हिस्से में सप्लाई में असर की वजह से कच्चे तेल की इन्वेंटरी में गिरावट देखने को मिली है, साथ ही प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़त का असर भी कच्चे तेल की मांग को बढ़ा रहा है, क्योंकि बिजली उत्पादन में तेल का इस्तेमाल फिलहाल गैस के इस्तेमाल से सस्ता पड़ रहा है।
पेट्रोल और डीजल पर असर बढ़ने की आशंका
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़त का असर पेट्रोल और डीजल पर पड़ने की आशंका बनी हुई है। कीमतों को तय करने में कच्चे तेल की कीमतें और इसपर लगने वाले शुल्क की भूमिका होती है। सरकार पहले ही संकेत दे चुकी है कि कोविड की वजह से आय में नुकसान और बढ़ते खर्च के कारण शुल्क में कटौती के लिये फिलहाल जगह नहीं है, ऐसे में पेट्रोल डीजल की कीमत सीधे तौर पर कच्चे तेल की कीमतों की दिशा से तय होगी। यानि बढ़त के साथ अगर तेल कंपनियां इसका बोझ खुद नहीं उठाती तो तेजी का असर ग्राहकों की जेब पर पड़ेगा।
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