FRBM Law for Budget: बजट 2023-24 की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। 1 फरवरी को सदन से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण देश के समझ सरकार का लेखा-जोखा पेश करेंगी। सभी लोग इस बजट से खासा राहत मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। ऐसे में आपको एफआरबीएम के बारे में जरूरी जान लेना चाहिए कि क्यों ये कानून बजट के लिए महत्वपूर्ण है?
एफआरबीएम यानी फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक एक्ट है जो वर्ष 2003 में लागू हुआ था। इसका मकसद राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार को लक्ष्य तय करने में मदद करना है। आसान शब्दों में कहें तो FRBM केंद्र व राज्य सरकारों को वित्तीय रूप से टिकाऊ बजट बनाने और उन्हें कर्ज के बोझ से बचाने के लिए लागू किया गया। आइए जानते हैं कि किस वित्त वर्ष में कितना राजकोषीय घाटा करने का लक्ष्य रखा गया।
वित्त वर्ष राजकोषीय घाटा
2011-12 5.7 फीसदी
2014-15 4.1 फीसदी
2015-16 3.9 फीसदी
2016-17 3.5 फीसदी
2017-18 3 फीसदी
जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद फरवरी 2018 में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 3.5 फीसदी से घटाकर 3.2 फीसदी कर दिया गया था. फिर 2020 के केंद्रीय बजट में लक्ष्य घटाकर 3.5 फीसदी कर दिया गया। हालांकि 2020-21 में घाटा बढ़कर 9.2 प्रतिशत हो गया। अप्रत्याशित कोविड संबंधित स्थितियों की वजह से खर्च में इजाफा हुआ और घाटा सभी अनुमानों को पार करते हुए काफी बढ़ गया। हालांकि वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी के 6.4 प्रतिशत का लक्ष्य रखा गया।
वित्त मंत्रालय ने 2022 के केंद्रीय बजट पेश करते वक्त कहा था कि, ‘भारत की आर्थिक नींव मजबूत बनी हुई है, लेकिन सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह जरूरी वित्तीय लचीलापन बनाए रखें, जिससे उभरती आपात जरूरतों के मुताबिक कदम उठाए जा सकें। एक्सपर्ट्स की मानें तो इस वित्तीय वर्ष भी मंत्रालय राजकोषीय घाटा कम करने की अपनी आंतरिक योजना पर बना रह सकता है, और आगामी केंद्रीय बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य नॉमिनल जीडीपी के 5.5 से 6 प्रतिशत के बीच रखा जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि वित्त वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.5 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा जा सकता है।
राजकीय घाटे की परिभाषा क्या है?
आसान शब्दों में कहें तो जब सरकार एक वित्त वर्ष में कमाई से ज्यादा पैसा खर्च कर देती है, तो ये राजकीय घाटा कहलाता है। इस नुकसान या अंतर की भरपाई के लिए सरकार कर्ज लेती है ताकि सभी काम प्लान अनुसार किए जा सकें। एक्सपर्ट्स की मानें तो बढ़ता घाटा सुस्त अर्थव्यवस्था को गति दे सकता है। हालांकि लंबे समय तक घाटे की आर्थिक वृद्धि और स्थिरता के लिए घातक है। एफआरबीएम एक्ट के पहले संशोधन में 2020-21 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा गया था।