रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की परिस्थितियों में कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी का प्रभाव दुनियाभर में देखा जा रहा है। वहीं अमेरिका ने भी रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है और विकल्प के तौर पर वेनेजुएला से तेल खरीद सकता है। तेल के इस खेल का असर हमारे देश पर भी पड़ेगा और विश्व पर भी। बड़ा सवाल यही है कि यह प्रभाव क्यों और किस तरह बढ़ेगा। सवाल यह भी है कि क्या ये दाम तात्कालिक बढ़ेंगे या एक लंबे अंतराल तक बने रहेंगे। दाम बढ़ने पर देश की मोदी सरकार के पास इस संकट से निपटने के लिए क्या चुनौतियां रहेंगी और वे इनसे कैसे निपट सकती हैं, इन सारे सवालों के हल हम जानेंगे और आर्थिक मामलों के सीनियर विशेषज्ञ डॉ. जयंतीलाल भंडारी की राय भी समझेंगे।
जानिए इस युद्ध के कारण तेल के दाम बढ़ने की क्या हैं 3 अहम वजह?
1. जब कोई युद्ध बड़े तेल उत्पादक देशों से संबंधित होता है या फिर तेल उत्पादक क्षेत्रों में लड़ा जाता है, तो तेल का उत्पादन और तेल की आपूर्ति प्रभावित होने से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ जाती हैं।
2. इस बारे में यह बात महत्वपूर्ण है कि करीब 100 से 120 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से कच्चे तेल उत्पादन करने वाला रूस तेल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसकी वैश्विक कच्चे तेल निर्यात की जिम्मेदारी 11 से 12 फीसदी है और ऐसे में रूस के युद्ध में शामिल होने के कारण तेल की आपूर्ति प्रभावित हो रही है।
3. साथ ही ओपेक देशों ने कोविड-19 के बाद उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं की है। इसके अलावा अमेरिका में भी कच्चे तेल का भंडार घट गया है। इन सबके कारण तेल की कीमतें बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं।
तेल के दाम बढ़ जाने से विश्व स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
आर्थिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ.जयंतीलाल भंडारी बताते हैं कि तेल के दाम बढ़ जाने से दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में कमी आने की आशंका है। दुनिया में आर्थिक वृद्धि दर पर भी असर होगा। इससे लोगों की आवश्यकताओं की संतुष्टि भी कम होगी ।और लोगों की खुशियों में भी कमी आते हुए दिखाई देगी। डॉ. भंडारी बताते हैं कि निश्चित रूप से तेल के दाम युद्ध की वजह से तेजी से बढ़े हैं। यह दाम वर्ष 2008 के बाद अब इस समय सर्वाधिक ऊंचे स्तर पर करीब $139 प्रति बैरल के आसपास ऊंचाई पर पहुंचे हैं।
जल्दी राहत नहीं, 3 माह तक बढ़ी रह सकती हैं कच्चे तेल की बढ़ी कीमतें
यूक्रेन के टकराव के कारण आगामी 3 महीने तक कच्चे तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल के आसपास बनी रह सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक विश्व में तेल की मांग वर्ष 2022 में बढ़कर एक हजार लाख बैरल प्रतिदिन हो जाएगी, जो कि 2021 में करीब 950 लाख प्रति बैरल रही। वैश्विक मांग में वृद्धि होने से तथा भविष्य में कीमतें बढ़ जाने से और आपूर्ति की स्थिति से तेल की कीमतें प्रभावित होंगी।
भारत पर वैश्विक तेल के दाम बढ़ने से क्या असर पड़ेगा? दाम बढ़े तो सरकार के लिए क्या चुनौतियां रहेंगी?
भारत पर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने का बहुत अधिक असर होगा। डॉक्टर भंडारी के मुताबिक इसका कारण यह है कि देश में पेट्रोल और डीजल की जितनी मांग है, उसका 80 से 85 फीसदी आयातित कच्चे तेल पर आधारित होता है। यदि वित्त वर्ष 2022 में कच्चे तेल की कीमतें 70 से 75 डालर प्रति बैरल रहती हैं तो देश की विकास दर 8 से 8.30 फीसदी रहने का अनुमान है। लेकिन यदि यह कीमत $100 प्रति बैरल के आस पास रहती है तो वृद्धि दर घटकर 7 से 7.30 फीसदी के बीच में हो जाएगी। लिहाजा महंगाई बढ़ेगी। ब्याज दरें बढ़ेंगी।
जानिए 2 कारण युद्ध की आपदा में भारत को क्या नजर आ रहा अवसर
1. युद्ध के कारण रूस पर अमेरिका और नाटो देशों ने न केवल आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, बल्कि कई देशों ने रूस से तेल आयात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसे में भारत बड़ी छूट के साथ रूस से कच्चे तेल मंगा सकता है। तथा डॉलर में भुगतान की जगह रुपए और रूबल में भुगतान कर सकता है।
2. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के द्वारा पेट्रोल और डीजल में एथेनॉल के मिश्रण की रणनीति को तेजी से मूर्त रूप दिया जाए। साथ ही देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के तेजी से उपयोग करने की रणनीति पर आगे बढ़ा जाए।
भविष्य का बेहतर विकल्प, ई-वाहनों की बिक्री 240 फीसदी बढ़ी
जेएमके रिसर्च एंड एनालिटिक्स की एक रिपोर्ट का दावा है कि दिसंबर 2021 में पहली बार देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल की रिकॉर्ड बिक्री दर्ज की गई। दिसंबर में 50,000 से ज्यादा नए इलेक्ट्रिक व्हीकल के रजिस्ट्रेशन किए गए। इस लिहाज से दिसंबर 2021 में दिसंबर 2020 की तुलना में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 240% बढ़ी। इस आंकड़े से समझा जा सकता है कि ई-वाहन बढ़ने से तेल पर खर्च आनुपातिक रूप से भविष्य में कम होता जाएगा।