हंबल बिजनेस टायकून के रूप में मशहूर रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे। वे 6 महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में कारोबार कर रहीं 30 कंपनियों को कंट्रोल करते थे। इसके बावजूद दुनिया के टॉप अरबपतियों की लिस्ट में कभी उनका नाम दिखाई नहीं दिया। जो व्यक्ति 6 दशकों से देश के सबसे बड़े बिजनेस घराने को चला रहा है, वह देश के टॉप-10 या टॉप-20 सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में भी न हो, यह कैसे हो सकता है? लेकिन यह सच है। इसका कारण टाटा ट्रस्ट के माध्यम से टाटा फैमिली द्वारा बड़े पैमाने पर किये जाने वाले परोपकारी कार्य भी हो सकता है।
जमशेदजी टाटा ने बनाया था यह नियम
दरअसल, टाटा फैमिली के लोग अपनी खुद की कंपनियों में बहुत अधिक हिस्सेदारी नहीं लेते हैं। जमशेदजी टाटा ने खुद यह संविधान बनाया था कि टाटा संस में जो कुछ भी कमाया जाएगा उसका अधिकांश हिस्सा टाटा ट्रस्ट को दान कर दिया जाए। बिल गेट्स जैसे लोगों के भी बहुत पहले से टाटा परिवार परोपकार के कार्यो में अग्रणी रहा है।
मजदूरों के साथ किया काम
सॉफ्टवेयर से स्पोर्ट्स तक के पोर्टफोलियो से टाटा ग्रुप को विश्वस्तर पर एक जाने-माने कारोबारी ग्रुप के रूप में पहचान दिलाने का श्रेय रतन टाटा को जाता है। रतन टाटा का बुधवार, 9 अक्टूबर 2024 को 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। रतन टाटा एक काफी शर्मीले स्टूडेंट थे। वे आर्किटेक्ट बनना चाहते थे। वे यूएस में काम कर रहे थे। तब उनकी दादी ने उन्हें घर लौटने और विशाल फैमिली बिजनेस में शामिल होने को कहा था। अपना फैमिली बिजनेस संभालने से पहले टाटा ने अप्रेंटिस के रूप में ब्लास्ट फर्नेस के पास दुकान के फर्श पर काम करते थे। वे हॉस्टल में रहते थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'उस समय यह भयानक था। लेकिन अगर मैं पीछे मुड़कर देखूं, तो यह एक बहुत ही सार्थक अनुभव रहा, क्योंकि मैंने वर्षों तक मजदूरों के साथ मिलकर काम किया था।'
साल 1991 में संभाला फैमिली बिजनेस
रतन टाटा ने साल 1991 में अपना फैमिली बिजनेस संभाला था। भारत सरकार ने उस साल रेडिकल फ्री मार्केट रिफॉर्म्स की शुरुआत की थी। जिससे टाटा को काफी फायदा हुआ। उनके 21 साल के नेतृत्व ने नमक से स्टील तक के कारोबारों में शामिल टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। टाटा ग्रुप की वैश्विक उपस्थिति का विस्तार हुआ, इसमें जैगुआर और लैंड रोवर जैसे ब्रिटिश लग्जरी ब्रांड भी शामिल हैं।