Highlights
- अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक मुद्रा
- Britain की महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर
- कमजोरी रुपये में नहीं आई बल्कि डॉलर में मजबूती आई है
Finance Minister Nirmala Sitharaman: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस वर्ष भारतीय मुद्रा रुपये में आई आठ फीसदी की गिरावट को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि कमजोरी रुपये में नहीं आई बल्कि डॉलर में मजबूती आई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की सालाना बैठकों में शामिल होने के बाद सीतारमण ने शनिवार को यहां संवाददाताओं से बातचीत में भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत बताते हुए कहा कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के बावजूद भारतीय रुपया में स्थिरता बनी हुई है।
क्या कहा वित्त मंत्री Nirmala Sitharaman ने?
रुपये में गिरावट आने से जुड़े एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा कि सबसे पहली बात, मैं इसे इस तरह नहीं देखूंगी कि रुपया फिसल रहा है बल्कि मैं यह कहना चाहूंगी कि रुपये में मजबूती आई है। डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मजबूत हो रहे डॉलर के सामने अन्य मुद्राओं का प्रदर्शन भी खराब रहा है, लेकिन मेरा ख्याल है कि अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया ने बेहतर प्रदर्शन किया है।’’ शुक्रवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 82.35 के भाव पर बंद हुआ था। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सात अक्टूबर 2022 तक 532.87 अरब डॉलर था जो एक साल पहले के 642.45 अरब डॉलर से कहीं कम है। सीतारमण ने कहा कि भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की मुख्य वजह अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण मूल्यांकन में बदलाव आना है। भारतीय रिजर्व बैंक भी इस बात से सहमति रखता है।
विदेशी करेंसी में भी दिख रही कमजोरी
आज से ठीक दो महीने पहले यानि 10 अगस्त के करीब एक पाउंड की कीमत 1.22 डॉलर हुआ करती थी जो 10 सितंबर को गिरकर 1.16 डॉलर प्रति पाउंड हो गई थी। आज यानि 15 अक्टूबर को 1.12 डॉलर प्रति पाउंड हो गई है। यूरो भी दो महीने में 1.03 डॉलर प्रति यूरो से कमजोर होकर आज 0.97 डॉलर पर आ गया है। इसका फायदा भारत को मिल रहा है और भारतीय रुपया पाउंड और यूरो के मुकाबले लगातार मजबूत हो रहा है। इसके पीछे की एक वजह यह भी है कि इस समय भारत की स्थिति बेहतर है और एक्सपर्ट का कहना है कि भारत में मंदी आने की कोई संभावना नहीं है।
पाउंड की तुलना में रुपया कितना हुआ है मजबूत
इस समय 1 पाउंड की कीमत 92.07 रुपये के बराबर है जो दो महीने पहले 5 अगस्त को 95.91 रुपये प्रति पाउंड थी। एक महीने में भारतीय रुपया पाउंड के मुकाबले में 3.84 रुपया मजबूत हुआ है। दो महीना पहले एक यूरो की कीमत 82.17 रुपये हुआ करती थी जो आज गिरकर 80.12 रुपये प्रति यूरो हो गई है।
यूरो अपने सबसे बुरे दौर में कैसे पहुंचा
यूरोप और लगभग पूरी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण यूरोप के कई देश महंगाई का सामना कर रहे हैं। खासकर ऊर्जा क्षेत्र में रूस के तरफ से हाल ही में लिए गए नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन को पूरी तरह से बंद करने के निर्णय ने स्थिति को और भयावह बना दिया है। इस आदेश के बाद से यूरोप में गैस और तेल जैसे ऊर्जा स्रोतों की लागत में बढ़ोतरी आई है, जो EURO की वैल्यू को कम करने में एक महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहे हैं। यूरोपीय संघ की सांख्यिकी एजेंसी द्वारा जारी किए जाने वाले आंकड़ों के अनुसार यूरोज़ोन की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर जुलाई में बढ़कर 8.9% हो जाएगी, जो जून में 8.6% थी। बता दें, इस समय प्रति यूरो जो डॉलर की कीमत है वो पिछले 20 सालों का सबसे न्यूनतम स्तर है। अगर ये गिरावट जारी रही तो जल्द ही एक यूरो की कीमत डॉलर के बराबर हो जाएगी।
15 जुलाई 2002 को डॉलर के बराबर था यूरो
1 जनवरी 1999 को लॉन्च होने के तुरंत बाद यूरोपीय मुद्रा 1.18 डॉलर प्रति यूरो के अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन ज्यादा दिनों तक यह टिक नहीं सकी। फरवरी 2000 में यूरो की कीमत 1 डॉलर से भी कम हो गई और अक्टूबर आते-आते में 82.30 सेंट के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई थी। फिर धीरे-धीरे स्थिति में सुधार हुआ और 15 जुलाई 2002 को यूरो एक डॉलर के बराबर पहुंच गई। उसके बाद से यूरो में इतनी गिरावट नहीं देखी गई जो आज देखी जा रही है।
पाउंड की हालत इतनी खराब क्यों?
यूके की राजनीति से लेकर यूके की अर्थव्यवस्था में इस समय अनिश्चितता का माहौल है। हाल ही में वहां चुनाव हुए हैं। नए पीएम बनाए जाएंगे। कहा जाता है कि बाजार में अगर आप मजबूती चाहते हैं तो अनिश्चितता को दूर करना होगा। इसकी दूसरी और यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलना ब्रिटेन को भारी पड़ रहा है। इसका नुकसान ब्रिटेन के व्यापारियों को उठाना पड़ रहा है। उन्हें पहले की तुलना में अधिक टैक्स देना पड़ रहा है। पहले जब ब्रिटेन EU का हिस्सा था तब यूरोपीय यूनियन में शामिल किसी भी देश से व्यापार करने के लिए टैक्स नहीं देना पड़ता था। उससे उसकी अर्थव्यवस्था को काफी फायदा मिलता था जो अब बंद हो गया है। इस समय वहां महंगाई भी चरम पर है। लोगों को रोजगार कम मिल रही है। ये समस्या सिर्फ ब्रिटेन में ही नहीं बल्कि उसके अन्य पड़ोसी देशों में भी है।
Britain की महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर
Britain की महंगाई दर जुलाई में बढ़कर 40 साल के नए उच्चतम 10.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। दरअसल, खाने-पीने के सामान के दाम बढ़ने और ऊर्जा कीमतों में बढ़ोतरी के चलते महंगाई में यह उछाल आया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (ओएनएस) ने बुधवार को कहा कि उपभोक्ता मूल्यों पर आधारित मुद्रास्फीति दो अंकों में पहुंच गई है, जो जून में 9.4 प्रतिशत से अधिक थी। यह आंकड़ा विश्लेषकों के 9.8 प्रतिशत के पूर्वानुमान से अधिक है।
डॉलर क्यों हो रहा मजबूत?
डॉलर के लगातार मजबूत होने से दुनिया भर की करेंसी पर असर दिखने लगा है। रुबेल से लेकर पाउंड और यूरो की कीमतों में भी बदलाव देखा जा रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हैं अमेरिका द्वारा लगातार अपने नीतिगत फैसलों में उलटफेर करना। हाल ही में Fed ने भी 0.75 बेसिस प्वाइंट की टैक्स रेट में वृद्धि की थी। Fed अमेरिका का केंद्रीय बैंक है। टैक्स रेट में वृद्धि करने से दुनिया भर के इन्वेस्टर को अमेरिका आकर्षित करने लगा, क्योंकि अगर आप अमेरिका में पैसा इन्वेस्ट करते हैं तो आपको पहले की तुलना में ज्यादा रिटर्न मिलेगा। दूसरी सबसे बड़ी बात यह होगी कि इन्वेस्टर को करेंसी डॉलर में कंवर्ट भी नहीं करनी पड़ेगी। किसी भी देश में जब निवेश बढ़ता है तो उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और इसका असर उस देश की करेंसी पर भी देखने को मिलता है। यही कारण है कि USD लगातार मजबूत होती जा रही है।
अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक मुद्रा
जैसा कि हम जानते हैं कि अमेरिकी डॉलर एक वैश्विक मुद्रा है। दुनिया भर केंद्रीय बैंको में जो विदेशी मुद्रा भंडार है उसका 64% अकेले अमेरिकी डॉलर है। दुनिया भर में अधिकतर देश डॉलर में व्यापार करते हैं। यही सब कारण अमेरिकी डॉलर को और मजबूत बनाता है। इस समय दनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश अमेरिका है। उसके पास 25,350 अरब डॉलर की संपत्ति है।