भारत में अमीर और अमीर क्यों होते जा रहे हैं? वहीं, गरीबों की जिन्दगी में बड़ा बदलाव नहीं आ रहा है। आखिर, इसके पीछे क्या वजह है? अब इस सवाल का जवाब मिल गया है। स्विस ब्रोकरेज फर्म यूबीएस इंडिया ने मंगलवार को कहा कि भारत के कंजम्पशन सनेरिओ में 'क्रिटिकल डिविजन' है और इसका K-सेप की प्रवृत्ति निकट भविष्य में भी जारी रहने की आशंका है। K-सेप वाले दौर में समाज का एक समूह अमीर होता जाता है जबकि निचली पायदान पर मौजूद समूह इस वृद्धि से उतना लाभांवित नहीं हो पाता है। इसलिए देश के अमीर की संपत्ति बढ़ती जा रही है। वहीं, कमजोर आय वर्ग को इसका फायदा नहीं मिल रहा है।
खर्च करने के तौर-तरीके में काफी विरोधाभास
यूबीएस इंडिया की अर्थशास्त्री तन्वी गुप्ता जैन ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत की उपभोग कहानी एक महत्वपूर्ण विभाजन को दर्शाती है जो एक जुझारू अर्थव्यवस्था से संचालित है। लेकिन खर्च करने के तौर-तरीके में काफी विरोधाभास है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘समृद्ध और व्यापक आधार वाली घरेलू मांग के बीच फासला बना हुआ है। इसे आय असमानता, उपभोक्ता ऋण तक पहुंच में वृद्धि और घरेलू बचत में गिरावट जैसे कारकों से प्रोत्साहन मिला है।’’ ब्रोकरेज फर्म का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2024-25 में परिवारों की खपत वृद्धि चार-पांच प्रतिशत दर के साथ ‘धीमी’ बनी रहेगी। यह पिछले वर्षों में नजर आए रुझान से कम है।
परिवारों की खपत लगभग दोगुनी हुई
कोविड-19 महामारी के बाद देश में असमानता की खाई बढ़ने को लेकर विशेषज्ञ के-आकार वाले सुधार पर चिंता जताते रहे हैं। हालांकि कुछ अर्थशास्त्री इससे सहमत नहीं हैं और उन्होंने असमानताएं कम करने के लिए महामारी को 'समतलकारी' भी कहा है। यूबीएस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में परिवारों की खपत पिछले दशक में लगभग दोगुनी होकर वर्ष 2023 में सालाना आधार पर 7.2 प्रतिशत बढ़कर 2.1 लाख करोड़ डॉलर हो गई। हालांकि पिछले दो वर्षों में परिवारों की खपत सुस्त रफ्तार से बढ़ी है और अमीर तबके की तरफ से आने वाली मांग में ही उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
महंगे घर और महंगी गाड़ियों की बिक्री बढ़ी
ब्रोकरेज फर्म ने उपभोग वृद्धि में पुनरुद्धार को ‘असमान’ बताते हुए कहा कि प्रीमियम कारों, एक करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले घरों, 25,000 रुपये से अधिक कीमत वाले स्मार्टफोन की बिक्री तेजी से बढ़ी है। इसके उलट प्रवेश स्तर और बड़े बाजार वाले उत्पादों की बिक्री रफ्तार महामारी के बाद धीमी ही रही है। यूबीएस इंडिया ने निचले स्तर पर रहने वाले लोगों की संदिग्ध आय निरंतरता, कमजोर वर्गों के लिए सीमित राजकोषीय सहायता और कम आमदनी की वजह से घरेलू बचत में कमी जैसे कारकों को उपभोग में इस विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया।
कोरोना के बाद से लगातार जारी
ब्रोकरेज फर्म ने कहा कि 'K-सेप' का खपत रुझान महामारी के बाद भी जारी है और शहरी अर्थव्यवस्था अब भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रही है। इस उपभोग विभाजन के बावजूद भारत वर्ष 2026 तक दुनिया का तीसरा बड़ा उपभोक्ता बाजार बनने की राह पर है।