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किसी कंपनी या उद्योगपति के दिवालिया होने पर निवेशकों के पास क्या होता है विकल्प? देश पर कैसे पड़ता है असर, जानें सबकुछ

अगर भारत में कोई बैंक दिवालिया हो जाता है तो आपके 5 लाख रुपये सुरक्षित रहेंगे। दरअसल, आरबीआई द्वारा बैंकों में रखे गए पैसे का इंश्योरेंस किया जाता है। इसे डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) के तहत मुहैया कराया जाता है। इसके तहत हर निवेशक को अधिकतम 5 लाख रुपये तक का बीमा मिलता है।

Written By: Alok Kumar @alocksone
Updated on: April 13, 2023 18:12 IST
दिवालिया - India TV Paisa
Photo:FILE दिवालिया

दुनियाभर में मंदी की चिंता मडरा रही है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने बुधवार को कहा कि इस साल दुनियाभर में मंदी आएगी। ऐसे में डर है कि आने वाले दिनों में कई कंपनियां, बैंक और उद्योगपति दिवालिया हो सकते हैं। इसकी शुरुआत अमेरिका और यूरोप के बैंक से हो चुकी है। कई बैंक दिवालिया हो चुके हैं। वहीं, कुछ पर खतरा मडरा रहा है। ऐसे में बड़ सवाल कि अगर कोई कंपनी या उद्योगपति दिवालिया होता है तो उसका असर उस देश पर क्या पड़ता है? उस कंपनी में निवेश करने वाले निवेशकों का क्या होता है? अगर आपके मन में दिवालिया से लेकर कोई भी सवाल उठ रहें हैं तो हम उनके जवाब यहां दे रहें हैं।

कोई उ्दयोगपति या कंपनी कब दिवालिया घोषित होती है?

आपको बता दें कि किसी कंपनी या उद्योगपति को दिवालिया तभी माना जाता है जब उसे कानूनी रूप से दिवालिया घोषित कर दिया जाए। यह नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) द्वारा किया जाता है। किसी भी व्यक्ति को दिवालिया तभी माना जाता है, जब कानूनी तौर पर उसे दिवालिया घोषित किया जाता है। इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत यह किया जाता है। आपको बता दें कि दिवालियापन एक वित्तीय स्थिति होती है, जब कोई शख्स या कंपनी अपने उधार और देनदारियों को चुकाने या वापस भुगतान करने में असमर्थ होता है तो वह खुद को दिवालिया घोषित कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति 500 रुपये भी चुकाने में असमर्थ तो उसे देश के कानून के तहत दिवालिया घोषित किया जा सकता है। हालांकि, इसकी प्रक्रिया काफी पेचीदा है।

क्या है बैंकरप्सी कानून

लंबे समय से कंपनियों या व्यक्तियों के बैंकरप्ट होने पर एक बेहतर कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इसी को देखते हुए भारत सरकार ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 पेश किया। इसके तहत पुराने कानूनों को बदल दिया गया। इसमें व्यक्तियों, कंपनियों, सीमित देयता भागीदारी और साझेदारी फर्मों को भी शामिल किया गया। इसके लागू होने के बाद दिवालिया प्रक्रिया सरल और बेहतर हो गई। आपको बता दें कि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के आने के बाद ये इंडिविजुअल और पर्टनरशिप फर्मों के लिए फैसला करता है। वहीं, राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण कंपनियों और लिमिटेड लाएबिलिटी पार्टनरशिप के मामलों में फैसला करता है।

दिवालिया घोषित होने पर क्या होता है?

जब कंपनी दिवालिया घोषित हो जाती है तो नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एन.सी.एल.टी ) के द्वारा इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल नियुक्त किया जाता है जिसे 180 दिन का समय दिया जाता है। वो 180 दिन के भीतर कंपनी की स्थिति को सुधार करने का प्रयास करता है तथा कंपनी फिर से सामान्य स्थिति में आ जाती है। अगर कंपनी 180 दिन की अवधि में सामान्य स्थिति में नहीं आती है तो फिर दिवालिया मानकर आगे की कारवाही की जाती है।

दिवालिया होने पर निवेशकों के पास क्या होता है विकल्प?

दिवालिया होने के बाद कंपनी अपनी कुल एसेट्स को बेच कर क्रेडिटर्स का कर्जा चूका देती है। किन्तु इस स्तिथि में निवेशको को नुकसान उठाना पड़ता है। इसकी वजह यह है कि अगर किसी कंपनी ने निवेशकों से 5 करोड़ रुपये उठाया है और दिवालिया होने के बाद उसकी कुल संपत्ति 50 लाख बची है तो निवेशकों को 50 लाख ही मिलेंग। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि दो निवेशकों नें 100 -100 रुपये निवेश कर रखा है और दिवालिया होने के बाद कंपनी की वैल्यूएशन 20 रुपये रह गयी तो निवेशकों में 10 -10 रुपये बराबर बांटदिया जायेगा। जिसमे निवेशको को 90-90 रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा।

अगर बैंक हो जाए दिवालिया तो क्या?

अगर भारत में कोई बैंक दिवालिया हो जाता है तो आपके 5 लाख रुपये सुरक्षित रहेंगे। दरअसल, आरबीआई द्वारा बैंकों में रखे गए पैसे का इंश्योरेंस किया जाता है। इसे डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (DICGC) के तहत मुहैया कराया जाता है। इसके तहत हर निवेशक को अधिकतम 5 लाख रुपये तक का बीमा मिलता है।

बिल्डर हो गया दिवालिया तो क्या करें?

रियल एस्टेट विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोई डेवलपर्स दिवालिया हो जाता है तो रकम वापसी की मांग की जा सकती है। हालांकि, यह कंपनी की रीस्ट्रक्चरिंग पूरी होने तक संभव नहीं है। पैसों की रिकवरी की प्रक्रिया रिवाइवल प्लान फेल होने पर ही हो सकती है। खरीदार अथॉरिटी पर रिकवरी के लिए दबाव बना सकते हैं या ग्राहक घर बनवाने की मांग भी रख सकते हैं। घर खरीदारों को इंसाफ मिले, यह संबंधित अथॉरिटी की जिम्मेदारी है। मौजूदा समय में कई डेवलपर्स के प्रोजेक्ट एनसीएलटी में सुनवाई के लिए है। उसके खरीदार इंतजार कर रहेें है। कई मामले में एनसीएलटी और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद निर्माण शुरू भी हुआ है।

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