Loan refinance: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने पिछले हफ्ते ही छठी बार अपना रेपो रेट बढ़ाया है। RBI जब भी अपने रेपो रेट में परिवर्तन करता है तो इसका असर लोन के इंटरेस्ट रेट (ब्याज दर) पर भी पड़ता है। दरअसल रेपो रेट वो ब्याज दर होती है, जिस पर RBI दूसरे बैंकों को कर्ज देता है। इसलिए जब आरबीई से बैंकों को महंगे ब्याज दर पर पैसा उठाना पड़ता है तो आम आदमी को भी ज्यादा रेट पर लोन मिलता है।
हाई रेट पर लोन लेने से लोगों का बजट बिगड़ जाता है और ऐसी स्थिति में कुछ लोग लोन रीफाइनेंस का विकल्प चुनते हैं। ऐसी स्थिति में लोन रीफाइनेंस एक ऐसा रास्ता है जो लोगों को कुछ हद राहत दे सकता है। आइए आज आपको विस्तार से बताते हैं कि आखिर लोन रीफाइनेंस है क्या और ये लोगों को कैसे फायदा पहुंचाता है।
क्या होता है लोन रीफाइनेंसिंग?
लोन रीफाइनेंस में लोगों को कम ब्याज दरों पर एक नया लोन मिलता है। इसे लेकर लोग पुराने लोन को क्लोज करा देते हैं। इसके बाद उन्हें कम रेट वाले नए लोन का भुगतान ही करना पड़ता है। यह लोन आपके सिबिल स्कोर को देखते हुए कोई बैंक देता है। ग्राहक के ट्रांजैक्शन को देखते हुए बैंक उसे लोन रीफाइनेंस की सुविधा दे सकते हैं।
क्या है लोन रीफाइनेंसिंग का फायदा?
चूंकि कम रेट पर लोन रीफाइनेंस कराने से आपके मासिक ब्याज में कटौती हो जाती है, इसलिए लोगों पर इसकी EMI का बोझ कम पड़ता है। आप चाहें तो इस लोन को कम अवधि में भी चुका सकते हैं। इससे आप लंबे समय तक बैंक को ब्याज देने से बच सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आपने एक निश्चित अवधि के लिए कोई लोन लिया है तो उसे रीफाइनेंस कराने के बाद आप कम समय में भी उसका भुगतान कर सकते हैं।
कब लेना चाहिए लोन रीफाइनेंसिंग?
अक्सर ग्राहक को विशेष परिस्थितियों में ही लोन रीफाइनेंसिंग का विकल्प चुनते हैं। लोन रीफाइनेंस आपके ऊपर पहले से चल रहे लोन की ब्याज दर के बोझ को कम कर सकता है। यदि आपको लगता है कि जिस बैंक या लेंडर से आपने लोन लिया है, उसकी सुविधाएं ठीक नहीं है तब भी आप लोन रीफाइनेंस करा सकते हैं। यदि बैंक आपके लिए फ्लोटिंग रेट लोन का विकल्प खुला न रखता हो, तब भी आप लोन रीफाइनेंस का रास्ता चुन सकते हैं।