Budget 2024 : भारत मूल रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है। हालांकि, एग्रीकल्चर सेक्टर पर सरकारों ने उतना काम नहीं किया है, जितना करना चाहिए। हाल के लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी का उम्मीद से कमतर प्रदर्शन रहने के बाद अब किसान फोकस में आए हैं। बीते दिनों में किसानों के पक्ष में कई घोषणाएं भी हुई हैं। महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को 14,000 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी, धान उत्पादकों के लिए 1,300 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन और दूध उत्पादकों के लिए लगभग 200 करोड़ रुपये की सब्सिडी देने की घोषणा की है। इसके अलावा, तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए ऋण माफी का प्रस्ताव रखा है। इसके बाद महाराष्ट्र, झारखंड और पंजाब में भी किसान कृषि ऋण माफी की डिमांड कर रहे हैं। ये सब आकर्षक उपाय हैं, लेकिन एग्रीकल्चर इकोनॉमी को बेहतर बनाने के लिये ये कोई टिकाऊ समाधान नहीं हैं। भारत का एग्रीकल्चर सेक्टर स्ट्रगल कर रहा है और एक बार फिर बजट से बड़ी उम्मीदें लगाए बैठा है। आइए जानते हैं कि किसानों को इस बजट से क्या-क्या उम्मीदें हैं।
किसानों को मिले इनकम सपोर्ट
पीएम किसान योजना जैसी पहलें, जो देश भर में किसान परिवारों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की आय सहायता प्रदान करती है और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MPS) में वृद्धि किसान कल्याण के लिये जरूरी हैं। हालांकि, किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य अभी तक हासिल नहीं हुआ है। इसलिए 2024 के बजट से एक ऐसा टिकाऊ ढांचा चाहिए, जो किसानों की आय में लगातार वृद्धि करने में मदद करे और जिसे सरकार से बार-बार मिलने वाले धन की आवश्यकता न हो।
कर्ज और इंश्योरेंस
सरकार किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के माध्यम से किसानों को रियायती संस्थागत ऋण 4 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर प्रदान करती है। वित्तीय बजट प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए भी धनराशि आवंटित करता है और किसानों को फसल बीमा कवर प्रदान करता है। हालांकि ये नीतियां मददगार हैं, लेकिन कृषि ऋण माफी जैसे उपाय केवल ऋण संस्कृति को खराब कर सकते हैं और कृषि ऋण प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ध्यान किसानों की साख को बेहतर बनाने पर होना चाहिए, ताकि वित्तीय संस्थाएं कृषि समुदाय को ऋण देने से न कतराएं। इसके अतिरिक्त, 'Yes-tech' (टेक्नोलॉजी के माध्यम से उपज आकलन प्रणाली) के दायरे का विस्तार करने से भी फसल बीमा के लिए वित्तीय बोझ को कम करने में मदद मिल सकती है।
कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर और मशीनीकरण
देश की आधी से थोड़ी अधिक कृषि भूमि पर ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, जिस कारण अभी भी मानसून पर बहुत अधिक निर्भरता बनी हुई है। बजट में सरकार को फसल की पैदावार में होने वाले नुकसान को रोकने के लिए सबसे पहले बुनियादी ढांचे को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए। भंडारण के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाना चाहिए और नई सिंचाई परियोजनाओं को लागू करना चाहिए। कृषि क्षेत्र में ड्रोन प्रौद्योगिकी के व्यावसायिक उपयोग को प्रोत्साहित करने और बढ़ावा देने के लिए एक व्यवस्थित योजना शुरू की जानी चाहिए। गैर-कृषि गतिविधियों को भी संबोधित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे प्रति व्यक्ति कृषि आय में सुधार होगा।
आत्मनिर्भरता
भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है। हालांकि, हाल के वर्षों में हमारे आयात में वृद्धि हुई है, क्योंकि बुवाई क्षेत्र कम हो गया है। भारत खाद्य तेलों, फलों और दालों के आयात पर अत्यधिक निर्भर है, क्योंकि हमारे किसान खाद्यान्न उत्पादन की ओर अधिक झुकाव रखते हैं। फसल विविधीकरण और बहु-फसली खेती को प्रोत्साहित करने के लिए आक्रामक उपाय शुरू किए जाने चाहिए। इससे अन्य फसलों के उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाने और प्रति हेक्टेयर फसल उपज में सुधार करने में मदद मिल सकती है। साथ ही, आयात को रोकने के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध कृषि उपज के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पहल की जानी चाहिए।
खाद्य महंगाई और निर्यात
भारत चावल, कपास और चीनी का एक प्रमुख निर्यातक है। हालांकि, कई बार घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित करने और खाद्य कीमतों को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए जाते हैं, जिससे सरकार को कई वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। बजट में कृषि उत्पादक मंडियों में पारदर्शिता लाने, रसद को मजबूत करने और मूल्य निर्धारण में अनियमितताओं को खत्म करने के लिए खाद्य मुद्रास्फीति के ज्वलंत मुद्दे को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। कृषि-निर्यात भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे इच्छा मुनाफा मिलता है और किसानों की आय में सुधार होता है। भारत को खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने और वैश्विक खाद्य केंद्र बनने के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए एक स्थिर और कुशल निर्यात नीति चाहिए।
सब्सिडी खर्च कम हो
सरकारी बजट में खाद्य सब्सिडी का बड़ा हिस्सा होता है, इसके बाद उर्वरक सब्सिडी का स्थान आता है। नैनो और जैविक उर्वरकों की व्यावसायिक अनुकूलन क्षमता को बढ़ावा देने वाली नीतियां एक सकारात्मक कदम होंगी। इससे फसल की पैदावार में सुधार, उर्वरक खपत कम करने, आयात में कटौती और सब्सिडी बजट को कम करने में मदद मिलेगी।