मंदी और महंगाई की मार झेल रहे अमेरिका को थोड़ी राहत मिली है। ईंधन की कीमतों में नरमी आने से जुलाई महीने में मुद्रास्फीति घटकर 6.3 प्रतिशत रह गई। वाणिज्य विभाग की तरफ से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई में उपभोक्ता कीमतें एक साल पहले की तुलना में 6.3 प्रतिशत बढ़ीं। इसके पहले जून में उपभोक्ता महंगाई दर 6.8 प्रतिशत रही थी जो 1982 के बाद का सर्वाधिक स्तर था।
माना जा रहा है कि महंगाई घटने से अमेरिकी फेडरल रिजर्व आगामी बैठक में ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला टाल दे। फेडरल रिजर्व इस साल दो बार में ब्याज दरों में डेढ़ फीसदी की वृद्धि कर चुका है। यदि अमेरिका में ब्याज दरें स्थिर रहती हैं तो यह भारत के लिए भी अच्छी खबर होगी। संभव है कि अक्टूबर में होने वाली रिजर्व बैंक की बैठक में भी ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला टाल दिया जाए।
तेल की घटी कीमतों का फायदा
मुद्रास्फीति में नरमी आने की बड़ी वजह ईंधन की कीमतों में आई गिरावट रही। जून में ऊंचे स्तर पर रहे ईंधन के दाम जुलाई में गिर गए। पिछले महीने में प्रमुख मुद्रास्फीति सालाना आधार पर 4.6 प्रतिशत रही जबकि जून में यह 4.8 प्रतिशत बढ़ी थी। वाणिज्य विभाग ने कहा कि मासिक आधार पर उपभोक्ता कीमतें जून की तुलना में जुलाई में 0.1 प्रतिशत गिर गईं। इसके पहले श्रम विभाग भी जुलाई में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में गिरावट की जानकारी दे चुका है। इन दोनों आंकड़ों से यही संकेत मिलता है कि आने वाले समय में मुद्रास्फीति-जनित दबावों में थोड़ी नरमी आ सकती है।
क्या फेड नहीं बढ़ाएगा ब्याज दरें
अगर ऐसा होता है तो नीतिगत ब्याज दर में बढ़ोतरी के सिलसिले पर भी थोड़ा विराम लग सकता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बढ़ती मुद्रास्फीति पर काबू पाने की मंशा से नीतिगत दर में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी की है। वैसे श्रम विभाग का आंकड़ा वाणिज्य विभाग के मुद्रास्फीति आंकड़े की तुलना में कहीं अधिक चर्चित है। लेकिन फेडरल रिजर्व अपने नीतिगत फैसले लेते समय वाणिज्य विभाग के आंकड़े को अधिक तवज्जो देता है। अमेरिका में मुद्रास्फीति का बढ़ना वर्ष 2021 के अंतिम महीनों में शुरू हुआ था। यूक्रेन-रूस युद्ध शुरू होने के बाद इसमें और तेजी आ गई।