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अमेरिका-जर्मनी पर मंदी का संकट, चीन खस्ताहाल और भारत बनने जा रहा दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी

Indian economy News : अमेरिका पर इस समय मंदी के काले बादल मंडरा रहे हैं। जर्मनी भी मंदी की चपेट में है। वहीं, भारत दुनिया की तीसरे बड़ी इकोनॉमी बनने की तरफ अग्रसर है।

Written By: Pawan Jayaswal
Updated on: August 07, 2024 17:07 IST
भारतीय अर्थव्यवस्था- India TV Paisa
Photo:FILE भारतीय अर्थव्यवस्था

दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका पर मंदी के काले बादल मंडरा रहे हैं। बढ़ती बेरोजगारी से ये चिंताएं व्यापक हो गई हैं। वहीं, यूरोप की सबसे बड़ी और अमेरिका, चीन के बाद दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी जर्मनी भी मंदी के कगार पर है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था में दूसरी तिमाही में अप्रत्याशित गिरावट देखने को मिली है। उधर चीन की हालत भी कुछ ज्यादा ठीक नहीं है। चीनी अर्थव्यवस्था कई मोर्चों पर संघर्ष कर रही है। जापान की इकोनॉमी पर भी इस समय कई संकट हैं। इन सब के बीच भारत सबसे तेज रफ्तार से ग्रोथ करता जा रहा है।

जल्द भारत बनेगा तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी

इस समय भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है। भारत से ऊपर जापान, जर्मनी, चीन और अमेरिका हैं। जापान और जर्मनी के खस्ताहाल को देखते हुए भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। पीएम मोदी ने हाल ही में कहा था कि भारत उनके तीसरे कार्यकाल में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बन जाएगा। अब उपराष्ट्रपति ने भी कुछ ऐसा ही कहा है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि भारत की प्रगति को रोका नहीं जा सकता और देश दो साल में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘ हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हम दो साल या उससे भी कम समय में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे।’’ 

उपराष्ट्रपति ने की आर्थिक राष्ट्रवाद की वकालत

उपराष्ट्रपति ने 10वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में विश्वास व्यक्त किया कि यदि हम जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सोचें, तो हथकरघा को बढ़ावा देने के लिए इसका इष्टतम उपयोग किया जाएगा, जो समय की मांग है, देश की तथा पृथ्वी की जरूरत है। धनखड़ ने कहा कि प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल’ आह्वान के मूल में आर्थिक स्वतंत्रता है। हथकरघा उत्पाद इसके प्रमुख तत्वों में से एक हैं। आर्थिक राष्ट्रवाद की जोरदार वकालत करते हुए धनखड़ ने कहा कि यह देश की ‘‘आधारभूत आर्थिक वृद्धि’’ के लिए मौलिक है। इससे विदेशी मुद्रा की बचत, रोजगार सृजन तथा उद्यमिता को बढ़ावा सहित तीन प्रमुख प्रभाव होंगे।

आर्थिक राष्ट्रवाद का त्याग नहीं कर सकते

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि हर कोई राष्ट्रीय हित का सम्मान करे। क्या हम केवल राजकोषीय लाभ के लिए आर्थिक राष्ट्रवाद का त्याग कर सकते हैं?’’ धनखड़ ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है और आज कोई भी यह कह सकता कि हमारा संभावनाओं से भरा राष्ट्र हैं, क्योंकि हम प्रगति कर रहे हैं। उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि वे साड़ी, कुर्ते, शॉल आदि हथकरघा उत्पाद खरीदने की आदत बनाने का संकल्प लें, ताकि यह एक ‘फैशन स्टेटमेंट’, एक ब्रांड बन जाए और इसकी बिक्री बढ़े।

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