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US Fed Rate Cut : क्या सस्ते होने वाले हैं होम, पर्सनल और ऑटो लोन? यह एक फैसला खोल सकता है खुशियों के द्वार

US Fed Rate Cut : अमेरिकी केंद्रीय बैंक प्रमुख ब्याज दर में कोई बड़ी कटौती करता है, तो आरबीआई पर भी रेपो रेट घटाने का दबाव बनेगा। आरबीआई एमपीसी की अगली बैठक 7 से 9 अक्टूबर को है।

Written By: Pawan Jayaswal
Updated on: September 18, 2024 15:03 IST
आरबीआई रेपो रेट- India TV Paisa
Photo:FILE आरबीआई रेपो रेट

होम लोन, पर्सनल लोन और ऑटो लोन सहित अन्य सभी कर्ज पर ब्याज दरें जल्द ही घटना शुरू हो सकती हैं। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा आज बुधवार को प्रमुख ब्याज दरों में कटौती करने की पूरी-पूरी उम्मीद जताई जा रही है। इससे साथ ही अन्य कई देशों के केंद्रीय बैंक भी ब्याज दर में कटौती का चक्र शुरू करेंगे। इससे आरबीआई पर भी दबाव बनेगा, जिससे वह रेपो रेट में कटौती शुरू कर सकता है। रेपो रेट घटी तो बैंक भी लोन पर ब्याज दरें कम कर देंगे। अब सवाल यह है कि क्या आरबीआई अमेरिका के तुरंत बाद ब्याज दरों में कटौती का सायकल शुरू कर देगा या थोड़ा समय लेगा। आइए समझते हैं। 

महंगाई रोकने के लिए सेंट्रल बैंकों ने बढ़ाई थीं ब्याज दरें

दरअसल, महंगाई, ब्याज दर और बांड के बीच एक रिश्ता होता है। दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों को इस रिश्ते में संतुलन बनाकर रखना होता है। कोविड के बाद जब महंगाई काफी बढ़ गई थी, तो अमेरिका सहित दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने महंगाई को थामने के लिए ब्याज दरें बढ़ाना शुरू किया था। अब आप कहेंगे कि ब्याज दरें बढ़ाने से महंगाई कैसे रुकती है? आइए जानते हैं। इकोनॉमी में डिमांड और सप्लाई के बीच बैलेंस बनाना काफी जरूरी होता है। जब डिमांड अधिक हो और सप्लाई कम रह जाए, तो महंगाई (Inflation) बढ़ने लगती है। डिमांड बढ़ने के पीछे एक कारण लिक्विडिटी का अधिक होना भी है। जब लोगों के पास अधिक मात्रा में पैसा होगा, तो वे ज्यादा खर्च करेंगे और डिमांड बढ़ेगी। एक अच्छी डिमांड जीडीपी ग्रोथ के लिए बढ़िया होती है। लेकिन जब महंगाई काफी अधिक हो जाती है, तो केंद्रीय बैंक बाजार से लिक्विडिटी को कम करने की कोशिश करते हैं। केंद्रीय बैंक प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा कर देते हैं। इसके बाद बैंकों को भी लोन पर दरें बढ़ानी होती हैं। बढ़ी हुई ब्याज दरों के चलते ग्राहक लोन लेना कम कर देते हैं। इससे बाजार में लिक्विडिटी (पैसों की आवक) कम हो जाती है और महंगाई पर काबू पाया जाता है। अब दुनिया के बड़े देशों में महंगाई पर काफी काबू पाया जा चुका है, ज्यादा समय तक ब्याज दरों को उच्च स्तरों पर रखना आर्थिक ग्रोथ के लिए अच्छा नहीं होता। इसलिए अब सेंट्रल बैंक्स रेट कट सायकल शुरू कर रहे हैं।

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7 से 9 अक्टूबर को है बैठक

अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा प्रमुख ब्याज दर को 0.25% घटाकर 5.00-5.25 फीसदी की सीमा में रखने की उम्मीद है। फेड रेट कट का मतलब है यूएस डेट इंस्ट्रूमेंट्स में कम रिटर्न और सस्ता कर्ज। इस तरह की स्थिति में भारत जैसे उभरते बाजारों में पूंजी का प्रवाह होता है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस सप्ताह कहा था कि ब्याज दर को कम करने का निर्णय किसी भी अल्पकालिक मासिक डेटा के बजाय दीर्घकालिक महंगाई के दृष्टिकोण से निर्देशित होगा। छह सदस्यीय आरबीआई मौद्रिक नीति समिति ब्याज दरों पर फैसला लेने के लिए 7 से 9 अक्टूबर को बैठक करने के लिए तैयार है। इस समय रेपो रेट 6.5 फीसदी है।

यूएस फेड रेट कट के फायदे

यदि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दर में 0.50% की बड़ी कटौती करता है और 2024-25 के दौरान ब्याज दरों में लगातार कमी करता है, तो यूएस फेड रेट और आरबीआई की रेपो दर के बीच ब्याज दर अंतर बढ़ जाएगा। इससे निवेशक अधिक रिटर्न के लिए भारत में निवेश को आकर्षित होंगे। यह भारतीय रिजर्व बैंक के लिए मौद्रिक नीति का प्रबंधन करने में चुनौतियां पैदा कर सकता है। नतीजतन, यूएस इकोनॉमी से आउटफ्लो अमेरिकी डॉलर को कमजोर कर सकता है, और भारत में डॉलर की बढ़ी हुई सप्लाई से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हो सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ जाएगा। हालांकि, हर जगह फायदा होगा ऐसा नहीं है। कई दूसरी परिस्थितियां भी उत्पन्न होंगी। अमेरिका में सुस्ती आती है, तो इसके प्रभाव बाकी दुनिया और भारत में भी देखने को मिल सकते हैं। आरबीआई को भारत में आर्थिक ग्रोथ पर भी ध्यान देना होगा। ऐसे में ग्रोथ को सपोर्ट करने के लिए ब्याज दरें घटना जरूरी हो जाएगा। 

अमेरिका में हुई बड़ी कटौती तो भारत में भी घट सकती हैं दरें

क्वेस्ट इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के सीईओ राजकुमार सिंघल ने कहा, "जब तक हम कमजोर ग्रोथ या महंगाई में तेजी से कमी के स्पष्ट संकेत नहीं देखते हैं, तब तक यह संभावना नहीं है कि आरबीआई फेड रेट कट के तुरंत बाद ब्याज दर घटाए। भले ही अमेरिकी केंद्रीय बैंक 0.50% या 1 फीसदी की रेट कट कर दे।" एक अन्य एक्सपर्ट ने कहा, "यदि यूएस फेड 0.50% की कटौती करता है, तो हमारा मानना है कि आरबीआई अपनी अगली मौद्रिक नीति में तटस्थ रुख अपना सकता है। फेड और अन्य बड़े केंद्रीय बैंकों द्वारा कोई बड़ी कटौती, आरबीआई को जल्दी रेट कट के लिए मजबूर कर सकती है, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि आरबीआई एक कैलिब्रेटेड तरीके से धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा।"

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