Thursday, January 09, 2025
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किराना की पारंपरिक दुकानें होने लगीं हैं बंद! ऑनलाइन मार्केट के बाद अब क्विक कॉमर्स बन रही वजह

मौजूदा समय में हालांकि सबसे ज्यादा असर अभी बड़े शहरों पर देखा जा रहा है। रोजमर्रा की वस्तुओं के वितरकों का प्रतिनिधित्व करने वाले ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (एआईसीपीडीएफ) के मुताबिक, पिछले साल लगभग 2,00,000 किराना स्टोर बंद हो गए हैं।

Edited By: Sourabha Suman @sourabhasuman
Published : Jan 09, 2025 9:04 IST, Updated : Jan 09, 2025 9:09 IST
आईटीसी या हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियां थोक विक्रेताओं और वितरकों को भी हटाकर सीधे बिक्री के पक्
Photo:ANI आईटीसी या हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियां थोक विक्रेताओं और वितरकों को भी हटाकर सीधे बिक्री के पक्ष में हैं।

ऑनलाइन मार्केट के बाद अब क्विक कॉमर्स बाजार में इस कदर अपनी प्रभुत्व बढ़ाते जा रहे हैं कि पारंपरिक किराना दुकानों पर बंद होने का खतरा मंडराने लगा है। जोमैटो, जेप्टो और स्विगी की भूमिका आज क्विक कॉमर्स मार्केट में जोरदार है, जबकि बिग बास्केट, अमेजन और दूसरी कई कंपनियां इसमें अपनी जगह बनाने की कोशिश में हैं। ये क्विक कॉमर्स कंपनियां लोगों के घरों दफ्तरों तक सीधे और जल्दी सामान पहुंचा दे रही हैं। दैनिक किराने के सामान से लेकर आईफोन तक हर चीज की 10-15 मिनट के भीतर होम डिलिवरी होने लगी है। लोगों को पड़ोस की किराना दुकान या बाजार जाने की भी जरूरत नहीं है। मिंट की खबर के मुताबिक, भारत में समग्र खुदरा बिक्री में किराना का घटता महत्व आंकड़ों में भी दिखाई देने लगा है।

व्यापार क्षेत्र के आंकड़े क्या बता रहे

हाउइंडियालाइव्स की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2015-16 तक, व्यापार क्षेत्र (खुदरा और थोक व्यापार सहित) ने करीब 13 ट्रिलियन डॉलर का सकल घरेलू उत्पाद जेनरेट किया है। इसमें से 34 प्रतिशत हिस्सा अनिगमित उद्यमों या किराना का था, यह हिस्सा 2010-11 से 4 प्रतिशत अंक बढ़ गया था, लेकिन 2023-24 तक यह हिस्सेदारी तेजी से गिरकर 22 प्रतिशत के आसपास पहुंच गई। ऐसे में यह कहना कि भारत में किराना दुकानें खत्म हो रही हैं? यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। हालांकि किराना दुकानों में गिरावट भी देखने को मिल रही है।

बड़ी कंपनियां सीधे सामान बेचने को हैं तैयार

आज बड़ी निर्माता कंपनियां भी सीधे सामान बेचने को तैयार हैं। ऐसे में सप्लाई या डिस्ट्रीब्यूशन का काम करने वाली अलग-अलग कंपनियों की जरूरत ही खत्म हो जाएगी। मिंट की खबर के मुताबिक,  न सिर्फ पारंपरिक खुदरा विक्रेताओं को, बल्कि थोक विक्रेताओं और वितरकों को भी हटाकर आईटीसी या हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियां सीधे बिक्री के पक्ष में हैं। ऐसे में बीच में कमाई करने वालों या एजेंटों की जरूरत ही नहीं रहेगी। इसका एक नुकसान यह भी होगा कि पारंपरिक खुदरा किराना दुकानों से भी कम कीमत में बड़ी कंपनियां अपना सामान सीधे ग्राहकों तक पहुंचा देंगी। अब जब पारंपरिक दुकानों पर कमाई नहीं होगी, तो लोग ऑनलाइन माध्यमों पर ही निर्भर हो जाएंगे।

असर हो रहा ऐसे

ई-कॉमर्स ने भारत में खुदरा बाजार को किस तरह प्रभावित किया है, इसका संकेत इस बात से मिलता है कि आईटीसी जैसी बड़ी एफएमसीजी कंपनियों का लगभग 31 प्रतिशत सामान डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये बिकने लगा है। उदाहरण के लिए ब्लिंकिट के अधिग्रहण पर आधारित जोमैटो के क्विक कॉमर्स व्यवसाय में इसके औसत मासिक लेनदेन वाले ग्राहक 2022- 23 में 29 लाख से बढ़कर 2023-24 में 51 लाख हो गए हैं। 2023-24 में इसके हर डार्क स्टोर का औसत सकल ऑर्डर मूल्य लगभग 8 लाख रुपये प्रतिदिन था। 16 शहरों में 4,500 ग्राहकों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 31 प्रतिशत शहरी भारतीय अपनी प्राथमिक किराने की खरीदारी के लिए क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने लगे हैं।

पिछले साल लगभग 2,00,000 किराना स्टोर बंद हो गए

खबर के मुताबिक, मौजूदा समय में हालांकि सबसे ज्यादा असर अभी बड़े शहरों पर देखा जा रहा है। रोजमर्रा की वस्तुओं के वितरकों का प्रतिनिधित्व करने वाले ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (एआईसीपीडीएफ) के मुताबिक, पिछले साल लगभग 2,00,000 किराना स्टोर बंद हो गए हैं। करीब 45 प्रतिशत किराना दुकानें मेट्रो शहरों में और 30 प्रतिशत दूकानें टियर वन शहरों में बंद हुई हैं। 2015-16 और 2022-23 के बीच शहरी क्षेत्रों में किराना दुकानों की संख्या में 9.4 प्रतिशत या 11.50 लाख की गिरावट आई है। 2010-11 और 2015- 16 के बीच, शहरी क्षेत्रों में ऐसे आउटलेट लगभग 20 प्रतिशत बढ़े थे। दिलचस्प बात यह है कि 2022-23 में ग्रामीण इलाकों में किराना दुकानों की संख्या एक साल पहले की तुलना में लगभग 56,000 कम हो गई।

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