
Tomato Price: मंडियों में नई फसल की बंपर आवक से टमाटर के भाव में भारी-भरकम गिरावट देखने को मिल रही है। टमाटर समेत कई सब्जियों के भाव में बड़ी गिरावट से जहां आम लोगों को खाद्य महंगाई से बड़ी राहत मिली है तो वहीं दूसरी ओर किसानों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश के किसान संगठनों ने राज्य सरकार से मांग की है कि वे टमाटर उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा के लिए तुरंत उचित कदम उठाएं। इन हालात में इंदौर की देवी अहिल्याबाई होलकर फल और सब्जी मंडी की गिनती सूबे की सबसे बड़ी थोक मंडियों में होती है।
फसल तुड़वाने का भी खर्च नहीं निकाल पा रहे किसान
करीब 130 किलोमीटर दूर खंडवा जिले से इंदौर की इस थोक मंडी में टमाटर बेचने आए किसान धीरज रायकवार ने बताया, ‘‘मंडी में टमाटर के थोक दाम गिरकर 2 रुपये प्रति किलो तक आ गए हैं। इस कीमत में हम खेत से फसल को तुड़वाने का खर्च भी नहीं निकाल पा रहे हैं।’’ उन्होंने दावा किया कि नौबत ये आ गई है कि किसानों को टमाटर की बिना बिकी खेप को मंडी में फेंककर जाना पड़ रहा है। रायकवार ने बताया, ‘‘पिछले साल टमाटर के ऊंचे दाम मिलने के कारण किसानों ने इस साल इसकी जमकर बुवाई की थी। इस बार बंपर पैदावार के कारण मंडी में टमाटर की भरपूर आवक हो रही है जिससे इसके भाव गिर गए हैं।’’
टमाटर किसानों को हो रहा भारी नुकसान
पड़ोस के धार जिले से इंदौर की मंडी में टमाटर बेचने आए किसान दिनेश मुवेल के मुताबिक उन्होंने 2 लाख रुपये का कर्ज लेकर दो एकड़ जमीन में टमाटर की बुवाई की थी, लेकिन इस सब्जी के भाव गिरने से उन्हें खेती में भारी घाटा हुआ है। पश्चिमी मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ अंचल में संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक रामस्वरूप मंत्री ने मांग की कि मंडियों के मौजूदा रुझान के मद्देनजर राज्य सरकार को किसानों से उचित कीमत पर टमाटर खरीदना चाहिए ताकि उन्हें नुकसान से बचाया जा सके।
टमाटर के लिए एमएसपी की मांग कर रहे किसान संगठन
उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त किसान मोर्चा लंबे समय से मांग कर रहा है कि सरकार को टमाटर जैसी सब्जियों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित करना चाहिए, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।’’ भारतीय किसान-मजदूर सेना के अध्यक्ष बबलू जाधव ने कहा कि राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में टमाटर जैसी जल्द खराब हो जाने वाली फसलों के शीत भंडारण और प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) की सुविधाओं की कमी है, नतीजतन किसानों को औने-पौने दाम पर भी अपनी फसल बेचने पर मजबूर होना पड़ता है।
पीटीआई इनपुट्स के साथ