पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआईडीसी) ने सिंगूर मामले में टाटा मोटर्स लिमिटेड के पक्ष में दिए गए मध्यस्थता फैसले को चुनौती दी है। डब्ल्यूबीआईडीसी ने सिंगूर में टाटा द्वारा छोड़े गए कार मैनुफैक्चरिंग प्लांट में किए गए निवेश के चलते हुए घाटे का हवाला देते हुए सोमवार को कलकत्ता हाई कोर्ट का रुख किया। डब्ल्यूबीआईडीसी ने मध्यस्थता आदेश पर रोक लगाने के लिए न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य की अदालत में अपील की थी।
डब्ल्यूबीआईडीसी ने किया ये दावा
खबर के मुताबिक, पीठ ने सोमवार को इस मामले से खुद को अलग कर लिया। मामले को किसी दूसरी पीठ के सामने नए सिरे से सूचीबद्ध करने के लिए हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जाएगा। अपनी अपील में डब्ल्यूबीआईडीसी ने दावा किया कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण के समक्ष सुनवाई के दौरान उसे अपनी बात रखने के समान अवसर से वंचित कर दिया गया था।
मामला पेश करने का पूरा मौका नहीं देने का आरोप
पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम ने कहा कि उसे तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपना मामला पेश करने का पूरा मौका नहीं दिया गया। इससे पहले मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने आदेश दिया था कि सिंगूर संयंत्र में हुए नुकसान की भरपाई के लिए पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम टाटा समूह की कंपनी को 766 करोड़ रुपये का मुआवजा दे।
साल 2008 का है मामला
टाटा मोटर्स को भूमि विवाद के चलते अक्टूबर, 2008 में अपने संयंत्र को पश्चिम बंगाल के सिंगूर से हटाकर गुजरात के साणंद ले जाना पड़ा था। कंपनी को तत्कालीन विपक्षी नेता ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस द्वारा कृषि भूमि के जबरन अधिग्रहण का आरोप लगाते हुए कड़े प्रतिरोध के बाद नैनो कार के निर्माण के लिए स्थापित सिंगूर प्लांट को छोड़ने की घोषणा करनी पड़ी थी। ममता बनर्जी ने सरकार में आते ही सिंगूर की करीब 1000 एकड़ जमीन पर उन 13 हजार किसानों को लौटाने का फैसला किया था।