रूस ने एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत अपने चार मुस्लिम बहुल प्रांतों तातारस्तान बश्कोर्तोस्तान, चेचन्या और दागिस्तान (Tatarstan Bashkortostan, Chechnya and Dagestan) में इस्लामिक बैंक के परिचालन की अनुमति दे दी है। कई विशेषज्ञ इसके पीछे आर्थिक के साथ-साथ एक बड़ी कूटनीतिक कदम भी मान रहे हैं। तुर्किए के सरकारी समाचार चैनल टीआरटी वर्ल्ड को दिए गए इंटरव्यू में आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक के पूर्व सलाहकार तोरेक फराहदी ने कहा कि रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए हमले ने भी रूस में इस्लामिक बैंकों के लिए रास्ते खोलने का काम किया है, क्योंकि हमलों के बाद से कई रूसी उद्योगपतियों और अरबपतियों ने अपनी कारोबारी गतिविधियों को प्रतिबंधों के कारण यूरोप के बजाय खाड़ी देशों की ओर मोड़ दिया है। जिसके कारण इस्लामिक बैंकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है।
अगर अन्य वजहों पर गौर किया जाए तो इसके पीछे रूस की एक सधी हुई कूटनीतिक चाल (diplomatic step) भी लगती है ,क्योंकि मॉस्को इस्लामिक बैंकों को मान्यता देकर इस्लामिक, middle East और खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों को कूटनीतिक और आर्थिक दोनों आधार पर मजबूत करना चाहता है जिसका सबसे पहला सबूत तब देखने को मिलता है जब Bank of Russia ने वर्ष 2016 में Islamic Development Bank के साथ सहयोग के लिए एक MOU (Memorandum of Understanding) हस्ताक्षर किया था।
- रूस के मुख्य व्यापारिक साझेदार इस्लामिक और मध्य पूर्व के देश हैं जो मुख्य तौर पर रूस से कृषि और फर्टिलाइजर का निर्यात करते हैं।
- इस्लामिक बैंक 1.99 ट्रिलियन डॉलर के पूंजीगत मूल्य के साथ 14% वार्षिक विकास दर के साथ तेजी से बढ़ रहे हैं।
- रूस इस्लामिक बैंकों को मान्यता देकर खाड़ी और इस्लामिक राष्ट्रों से अधिक से अधिक निवेश और फाइनेंस बढ़ाना चाहता है जो यूक्रेन पर किए गए हमले के कारण पश्चिम के लगाए गए प्रतिबंधों से कम हो गए हैं।
आखिर क्या वजह है सिर्फ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इस्लामिक बैंकों को शुरु करने की
1) मुस्लिम बहुल क्षेत्रों Tatarstan, Bashkortostan, Chechnya and Dagestan में पहले से इस्लामिक वित्तीय प्रणाली मौजूद है।
2) इसके माध्यम से रूस देश की मुस्लिम बहुल आबादी को एक सकारात्मक संदेश देकर अपने पक्ष में बनाए रखना चाहता है।
3) Autonomous मुस्लिम बहुल क्षेत्र चेचन्या की एक बड़ी आबादी को अपने पक्ष में करना चाहता है क्योंकि यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रूसी शासन के खिलाफ विद्रोही रुख रखता रहा है और अभी मौजूदा चेचेन राष्ट्रपति इस्माइल कादीरोव रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के समर्थक माने जाते हैं यही वजह है कि उन्होंने अपने लड़ाकों को रूस की तरफ से लड़ने के लिए यूक्रेन युद्ध में भेज दिया है।
क्या होते हैं इस्लामिक बैंक और किस प्रकार से करते हैं काम
इस्लामिक बैंक आम वाणिज्यिक बैंकों से कई प्रकार से अलग होते हैं जो मुख्य रूप से इस्लाम के सिद्धांतों के आधार पर ही किसी भी प्रकार की वित्तीय गतिविधि और कार्यों में शामिल होते हैं इस्लामिक बैंक मुख्य रूप से इन सिद्धांतों पर आधारित होते हैं। ब्याज मुक्त ऋण – जिस प्रकार से इस्लाम में ब्याज को हराम माना गया है इस्लामिक बैंक भी इसका पालन करते हुए लेनदारों से किसी भी प्रकार का ऋण पर ब्याज नहीं लेते हैं बल्कि वो ब्याज के बदले अधिकतर मुनाफे पर ही निर्भर होते हैं
कर्जदार नहीं साझेदार – अगर आप किसी इस्लामिक बैंक से कर्ज लेते हैं तो बैंक आपके साथ कर्जदार के बजाय साझेदार के तौर पर पेश आएगी यानी कि अगर आपको किसी भी प्रकार का लाभ या हानि होती है तो बैंक उसमें साझेदार के तौर पर दोनों में सहभागी होगा।
Islamic banks and financial institutions के तरह-तरह के contract
1) मुदारबा (Mudaraba) – यह दो लोगों को के बीच एक प्रकार से पार्टनरशिप कॉन्ट्रैक्ट की तरह होता है l जिसमें किसी भी कारोबारी गतिविधि के लिए एक व्यक्ति पूंजी लगाता है जिसे रब–अल–माल कहा जाता है तो दूसरा व्यक्ति अपनी क्षमता जिसे ‘मुदारिब’ कहा जाता है यानी उसे पूंजी पर मुनाफा होता है जिसे दोनों लोग एक तय अनुपात में मिलकर बांट लेते हैं और अगर हानि होती है तो उसकी जिम्मेदारी पूंजी लगाने वाले यानी रब–अल–माल की होती है।
2) मुशारका (Musharaka) – यह एक प्रकार से जॉइंट पार्टनरशिप स्ट्रक्चर की तरह होता है जिसमें अगर आप पार्टनरशिप में कोई कारोबार करना चाहते हैं और अगर उसमें दो से अधिक पार्टनर हैं तो इसमें सभी पार्टनर को दो टीमों में बांट दिया जाएगा और सभी टीम को अपनी पूंजी और क्षमता (capital + skill ) दोनों लगानी पड़ेगी।
अगर कारोबार में फायदा होता है तो मुनाफा पहले से तय अनुपात में सभी पार्टनर्स आपस में बांट लेंगे और अगर हानि होती है तो पूंजीगत अनुपात ( capital ratio )में बंट जाएगा।
3) सुकुक (sukuk)
यह एक प्रकार का इस्लामिक बॉन्ड होता है जिसमें निवेशक को रिटर्न ब्याज के रूप में नहीं बल्कि मुनाफे के रूप में मिलता है क्योंकि इस्लाम में ब्याज लेना और देना दोनों वर्जित है इसलिए इस्लामिक मान्यताओं को बनाए रखने के लिए इस प्रकार के बॉन्ड जारी किए जाते हैं।
जब किसी भी निवेशक को सुकुक बॉन्ड जारी किए जाते हैं तो उसके साथ-साथ निवेशक को बिजनेस और उसकी संपत्ति में मालिकाना अधिकार भी प्राप्त हो जाते हैं l
सुकुक बॉन्ड से प्राप्त राशि का इस्तेमाल कंपनी सिर्फ अपने बिजनेस में मूर्त परिसंपाति ( tangible assets) को खरीदने के लिए कर सकती है और उस assets का इस्तेमाल करके कंपनी को जो लाभ या हानि होगी उसका भागीदार निवेशक भी होगा।
4) इज़ारा (Ijara)
यह एक प्रकार का lease contract होता है आमतौर पर लीज कॉन्ट्रैक्ट में मूलधन (principal) के साथ बयाज़ जोड़ा जाता है लेकिन इज़ारा कॉन्ट्रैक्ट में पट्टा दाता (lessor) अपनी संपत्ति (asset ) के इस्तेमाल की इजाजत पट्टेदार (lesse) को तय की गई किराया राशि (rental fee) पर एक निश्चित समय सीमा तक के लिए देता है।
समय सीमा खत्म होने के बाद पट्टेदार या तो उस संपत्ति को लौटा सकता है या तो lessor को तय राशि देकर उससे वह संपत्ति खरीद सकता है। संपत्ति के रखरखाव के खर्च के वहन कि जिम्मेदारी lessor की होती है।
जैसे मान लीजिए आप एक पचास लाख रुपए की कीमत का घर खरीदना चाहते हैं और आपके पास उतने पैसे नहीं है कि आप एकमुस्त राशि देकर खरीद पाए इसलिए जब आप एक इस्लामिक बैंक के पास जाते हैं तो इस्लामिक बैंक वह घर उतनी ही कीमत पर अपने नाम पर खरीद लेगा और आपको एक निश्चित rental fee पर जैसे साल के 6 लाख रुपए वार्षिक दर पर आप उस घर का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगले 5 सालों तक 5 साल की समय अवधि पूरी होते ही आपको वह घर बैंक को वापस करना पड़ेगा नहीं तो बैंक आपको वह घर कीमत बढ़ाकर बेच देगा अब तक दी गई किराया राशि को घटाकर।
₹ 50 लाख पुरानी कीमत
₹ 6 लाख rental fee
₹ 60 लाख बैंक द्वारा घर की लगाई गई कीमत
5 years – लीज का time period
₹ 6 lakh * 5 = ₹ 30 लाख
अब तक 5 सालों में लीज पीरियड खत्म होने तक दी गई total rental fee
लीज पीरियड खत्म होने के बाद या तो बैंक को आपको वह घर वापस करना पड़ेगा या तो बैंक से आपको खरीदना पड़ेगा । बैंक आपको इस तरह से घर बेचेगा अगर आप खरीद देते हैं तो..
₹ 60 लाख बैंक द्वारा लगाई गई घर की कीमत
₹ 30 लाख बैंक को अब तक दी गई rental fee
60 – 30 (in ₹ lakhs ) = ₹ 30 lakh अब आप बैंक को इतनी राशि का भुगतान कर घर अपने नाम करवा सकते हैं।
5)मुरहबा ( Murahaba)
मुरहबा एक प्रकार का क्रेडिट सेल होता है जिसमें अगर आप कोई असेट्स खरीदना चाहते हैं तो बैंक वो असेट्स आपके तरफ से खरीदेगी और cost और profit जोड़कर आपको बेच देगा । जिसका भुगतान आप deffered payment settlement के आधार पर installment में कर सकते हैं।
उदाहरण – अगर आप दस लाख रुपए के कीमत की कार खरीदना चाहते हैं, और आपके पास इतने पैसे नहीं है कि एकमुस्त भुगतान कर आप वो खरीद पाए । अगर आप इस्लामिक बैंक के पास उधार के लिए जाते हैं तो बैंक आपकी तरफ से वह कार खरीद लेगा और आपको वही 10 लाख की कार 13 लख रुपए में बेच देगा यानी बैंक अपना मुनाफा भी उसमें जोड़ देगा । जिसका भुगतान आपको बाद में एक निश्चित इंस्टॉलमेंट राशि में करना पड़ेगा।
क्या भारत में भी शुरू हो सकते हैं इस्लामिक बैंक?
सन 2006 कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर बैंकों में मुसलमानों की हिस्सेदारी क्रमशः 12.2% और 11.3% है जिससे फाइनेंशियल इंक्लूजन का लाभ मुसलमान तक नहीं पहुंच पा रहा है l इसलिए उन मुसलमान को देखते हुए जो मुसलमान धार्मिक वजहों से बैंकिंग सेवाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं उनके लिए भारत में इस्लामिक बैंकों की शुरुआत की जानी चाहिए।
2) सन 2013 में आरबीआई द्वारा गठित रघुराम राजन कमेटी ने इंटरेस्ट फ्री बैंकिंग यानी ब्याज मुक्त बैंकिंग की शुरुआत करने का सुझाव दिया था।
3) बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 की धाराएं सिर्फ ब्याज युक्त बैंकिंग को ही मान्यता देती है ना की ब्याज मुक्त बैंकिंग को. इसलिए इस प्रकार की बैंकिंग सेवाओं को चालू करने के लिए बैंकिंग और वित्तीय कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी।
(लेखक आशुतोष ओझा, आईआईएमसी से पीजी डिप्लोमा कर अभी इंडिया टीवी में ट्रेनी एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।)