Highlights
- आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर
- रुपये की वैल्यू को तब की केंद्र सरकार करती थी मॉनिटर
- पहली बार की आर्थिक मंदी ने रुपये की कमर तोड़ दी
Explained: भारतीय करेंसी (Indian Currency) की वैल्यू आज 79.50 रुपये प्रति डॉलर (Dollar) हो गई है। आप जब इस आर्टिकल को पढ़ रहे होंगे, तब शायद इसमें कोई बदलाव आ चुका होगा। देश आज 75वां स्वतंत्रता दिवस (Independent Day) मनाने जा रहा है। जब देश आजाद हुआ था तब रुपये की वैल्यू एक डॉलर के बराबर हुआ करती थी। इन 75 सालों में रुपये की कीमत प्रति डॉलर 80 पार कर गई है। देश की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) ने एक बार संसद में कहा था कि जब देश की करेंसी गिर रही होती है तब सिर्फ रुपये का नुकसान नहीं होता है, बल्कि उस देश की मान प्रतिष्ठा भी गिरने लगती है। ऐसे में आज हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि भारतीय मुद्रा दिनों-दिन इतना कमजोर क्यों होता गया? इसका अब तक का इतिहास (History) कैसा रहा है?
आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर
भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपये हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) थे। उनके नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपये की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये हुआ था।
रुपये की वैल्यू को तब की केंद्र सरकार करती थी मॉनिटर
1962 तक रुपये की वैल्यू में कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन जब 1962 और फिर 1965 का युद्ध भारत ने लड़ा तब देश की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा और 1966 में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपये की कीमत 6.36 रुपये प्रति डॉलर हो गई। 1967 आते-आते सरकार ने एक बार दुबारा से रुपये की कीमत को कम करने का निर्णय लिया। उसके बाद एक डॉलर की कीमत 7.50 रुपये हो गई। आपको बता दें, उस वक्त रुपये की वैल्यू को सरकार ही मॉनिटर किया करती थी कि रुपये की वैल्यू मार्केट में एक डॉलर के बराबर कितनी होगी। उसे फिक्ड एक्सचेंज रेट सिस्टम (Fixed Exchange Rate System) कहते हैं।
उसके बाद समय आया वर्ष 1974 का, जब रुपये की वैल्यू और कम होकर डॉलर के मुकाबले 8.10 रुपये तक जा पहुंची। फिर रुपये की कीमत कुछ सालों तक स्थिर बनी रही। 1983 में एक बार फिर से इसकी कीमतों में कमी की गई तब रुपया 10.1 रुपये के स्तर पर जा पहुंचा था।
पहली बार की आर्थिक मंदी ने रुपये की कमर तोड़ दी
देश के आजाद होने के बाद से पहली बार 1991 में मंदी आई। तब केंद्र में नरसिंम्हा राव (Narasimha Rao) की सरकार थी। उनकी अगुआई में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई, जिसने रुपये की कमर तोड़ दी। रिकार्ड गिरावट के साथ रुपया प्रति डॉलर 22.74 पर जा पहुंचा। दो साल बाद रुपया फिर कमजोर हुआ। तब एक डॉलर की कीमत 30.49 रुपया हुआ करती थी। उसके बाद से रुपये के कमजोर होने का सिलसिला चलता रहा है। वर्ष 1994 से लेकर 1997 तक रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। उस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 31.37 से 36.31 रुपये के बीच रहा।
मोदी सरकार में 25.39% आई रुपये में गिरावट
उसके बाद देश में अटल जी की नेतृत्व में सरकार बनी उसने भी रुपये को मजबूत करने में कोई खास कदम नहीं उठाया। वही हाल मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के सरकार में रहा। हालांकि उन्होनें 2008 में दुनिया में आई मंदी के दौरान भारत को उससे बचाए रखने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन रुपये को मजबूत करने में नाकामयाब रहे। अब 2014 के बाद से केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार है। इस दौरान रुपये की वैल्यू में 25.39% की गिरावट देखने को मिली है। आज 80 रुपये प्रति डॉलर के करीब भारतीय मुद्रा पहुंच गई है। इसमें स्थिरता कब आएगी, ये अभी कहना मुश्किल होगा।