Highlights
- रुचि सोया का 4,300 करोड़ रुपये का एफपीओ 24 मार्च को खुलेगा
- मूल्य दायरा 615-650 रुपये प्रति शेयर
- पतंजलि ने दिवालिया हो चुकी रुचि सोया के लिए बोली दिसंबर, 2018 में जीती थी
Ruchi Soya FPO: पतंजलि आयुर्वेद समूह के नियंत्रण वाली रुचि सोया इंडस्ट्रीज 4,300 करोड़ रुपये के अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) के साथ 24 मार्च को पूंजी बाजार में फिर से दस्तक देगी। इसके साथ ही रुचि सोया दिवालिया प्रक्रिया से गुजरने के बाद बाजार में दोबारा सूचीबद्ध होने वाली पहली कंपनी बन जाएगी। रुचि सोया (Ruchi Soya) के चेयरमैन आचार्य बालकृष्ण और गैर-कार्यकारी चेयरमैन बाबा रामदेव की अगुआई वाले प्रबंधन ने सोमवार को घोषणा की कि एफपीओ के लिए मूल्य दायरा 615-650 रुपये प्रति शेयर तय किया गया है।
रुचि सोया में फिलहाल 98.9 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाली पतंजलि शेयरों की ऊपरी दायरे पर खरीद होने पर करीब 19 प्रतिशत हिस्सेदारी बेच देगी जबकि निचले दायरे पर यह बिक्री करीब 18 प्रतिशत की होगी। कंपनी ने कहा कि 25 प्रतिशत हिस्सेदारी सार्वजनिक करने की सेबी की शर्त को पूरा करने के लिए उसके बाकी 6-7 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री दिसंबर, 2022 के पहले कर दी जाएगी। रामदेव ने कहा कि रुचि सोया इस हिस्सेदारी बिक्री से जुटाई जाने वाली राशि में से 3,300 करोड़ रुपये का इस्तेमाल कर्ज चुकाने और शेष का अन्य कंपनी कामकाज के लिए करेगी।
रुचि सोया के अधिग्रहण के बाद से ही पतंजलि ने इसे जिंसों के कारोबार से जुड़ी कंपनी की जगह ब्रांडेड कंपनी के तौर पर पेश किया है। इसके अलावा यह अपने सभी खाद्य उत्पादों एवं गैर-खाद्य उत्पादों को अलग श्रेणियों में उतारने की प्रक्रिया में है। रामदेव ने कहा कि रुचि और पतंजलि दोनों को वैश्विक स्तर का खाद्य ब्रांड बनाने का लक्ष्य रखा गया है। रुचि सोया देश की अग्रणी खाद्य तेल कंपनी है। इसके अलावा सोया उत्पादों की पेशकश में भी वह एक बड़ा नाम है।
बता दें कि, पतंजलि ने दिवालिया हो चुकी रुचि सोया के लिए बोली दिसंबर, 2018 में जीती थी। इस सौदे के तहत पतंजलि को रुचि सोया पर बकाया 4,350 करोड़ रुपये के कर्ज का निपटान करना था। इसके लिए उसे 1,100 करोड़ रुपये की इक्विटी और कर्ज के जरिये 3,250 करोड़ रुपये लगाने थे। दिसंबर, 2017 में रुचि सोया के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू की गई थी। उस पर एसबीआई और अन्य बैंकों के कुल 9,345 करोड़ रुपये बकाया थे। लेकिन कर्ज समाधान प्रक्रिया के तहत बैंकों को 60 प्रतिशत से अधिक का नुकसान (हेयरकट) उठाना पड़ा था।