पिछले दिनों कई ऐसी वीडियोज वायरल हुई थीं, जिनमें आसमान में एक लाइन से तारे जैसी चीज चलती हुई नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे तारों की कोई रेल हो। असल में ये सैटेलाइट थे। एनलमस्क की स्टारलिंक के सैटेलाइट। स्टारलिंक इन सैटेलाइट के जरिए इंटरनेट सर्विस मुहैया कराती है। जल्द ही रिलायंस जियो (Reliance Jio) भी ऐसी ही सर्विस भारत में ला सकती है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, रिलायंस जियो को इसी महीने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) से लैंडिंग राइट्स और मार्केट एक्सेस की मंजूरी मिल सकती है। इस मंजूरी के बाद मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली टेलीकॉम कंपनी भारत में अपनी सैटेलाइट-आधारित गीगाबिट फाइबर सेवाओं को लॉन्च कर पाएगी।
मंजूरी मिलने का इंतजार
जियो ने स्पेस इंडस्ट्री रेगुलेटर IN-SPACe को सभी आवश्यक दस्तावेज जमा करा दिये हैं। कंपनी को जल्द ही मंजूरी मिलने की उम्मीद है। भारत में ग्लोबल सैटेलाइट बैंडविड्थ कैपेसिटी डिप्लॉय करने के लिए ये मंजूरी अनिवार्य है। IN-SPACe की मंजूरी प्रक्रिया जटिल होती है। इसमें कई मंत्रालयों की अप्रूवल और सुरक्षा मंजूरी शामिल होती है। IN-SPACe के पास अप्रूवल के लिए कई कंपनियों के आवेदन आए हुए हैं।
Jio-SES का जॉइंट वेंचर देगा यह सर्विस
पिछले साल जियो प्लेटफॉर्म्स और लक्ज़मबर्ग बेस्ड सैटेलाइट्स कंपनी SES ने 51:49 में हिस्सेदारी के साथ जॉइंट वेंचर का गठन किया था, ताकि सैटेलाइट के माध्यम से ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी प्रदान की जा सके। इस सेक्टर में यूटेल्सैट वनवेब, एलन मस्क की स्टारलिंक, अमेजन और टाटा पहले से ही एंट्री कर चुके हैं। जियो की सैटेलाइट शाखा को दूरसंचार विभाग द्वारा GMPCS लाइसेंस जारी किया जा चुका है। लेकिन IN-SPACe से अभी अप्रूवल नहीं मिली है। भारती समर्थित Eutelsat OneWeb एकमात्र ग्लोबल सैटेलाइट तारामंडल ऑपरेटर है, जिसे IN-SPACe से आवश्यक अनुमोदन प्राप्त हुए हैं।
भारत में उभर रहा सैटेलाइट मार्केट
भारत में अभी उभर रहे सैटेलाइट्स बाजार में Jio-SES कॉम्बिनेशन और Eutelsat OneWeb दोनों ही Starlink, Amazon और टाटा जैसी कंपनियों से आगे निकलने का प्रयास कर रहे हैं। Jio के अध्यक्ष मैथ्यू ओमन ने हाल ही में कहा था कि स्पेक्ट्रम आवंटन के कुछ हफ्तों बाद Jio की सैटेलाइट सेवा यूनिट JioSpaceFiber सेवाओं को शुरू कर सकती है।
2033 तक 44 अरब डॉलर तक जा सकती है स्पेस इकॉनमी
IN-SPACe ने हाल ही में अनुमान लगाया है कि भारत की स्पेस इकॉनमी 2033 तक 44 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है। वहीं, वैश्विक हिस्सेदारी वर्तमान के 2% से बढ़कर 8% हो सकती है। भारत में उपग्रहों के माध्यम से ब्रॉडबैंड सेवाएं मुख्य रूप से उन क्षेत्रों को टार्गेट करेंगी, जो अभी पारंपरिक स्थलीय ब्रॉडबैंड सॉल्यूशंस द्वारा कम सेवा प्राप्त करते हैं। इनमें ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्र शामिल हैं, जहां हाई-स्पीड इंटरनेट तक सीमित या कोई पहुंच नहीं है।