Reliance Capital news : समय जब करवट लेता है, तो बड़े-बड़े सूरमा जमीन पर आ जाते हैं या कहें कि लोग अर्श से फर्श पर आ जाते हैं। जाने-माने अरबपति मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी के साथ भी ऐसा ही हुआ है। उनकी दिवालिया कंपनी रिलायंस कैपिटल के बिकने का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। हिंदुजा समूह (Hinduja Group) की कंपनी इंडसइंड इंटरनेशनल होल्डिंग्स लिमिटेड (IIHL) 9,650 करोड़ रुपये में रिलायंस कैपिटल को खरीद रही है। यह अधिग्रहण इरडा की मंजूरी नहीं मिलने के चलते अटका हुआ था। 10 मई को इरडा से भी अधिग्रहण के लिए मंजूरी मिल गई।
शेयर बाजार की शान हुआ करती थी रिलायंस कैपिटल
एक समय ऐसा भी था, जब रिलायंस कैपिटल शेयर बाजार की शान हुआ करती थी। यह अनिल अंबानी को सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाली कंपनी थी। कंपनी अपने ग्राहकों को फाइनेंस से जुड़ी करीब 20 सर्विसेस देती थी। यह लाइफ इंश्योरेंस, जनरल इंश्योरेंस और हेल्थ इंश्योरेंस से जु़ड़ी सर्विसेस भी देती थी। इसके अलावा यह होम लोन, कमर्शियल लोन, इक्विटी और कमोडिटी ब्रोकिंग जैसे सेक्टर में भी सर्विसेस देती थी। साल 2008 में रिलायंस कैपिटल का शेयर 2700 रुपये का था। अब तो इस शेयर की ट्रेडिंग भी बंद हो चुकी है। आखिरी ट्रेडिंग-डे पर इस शेयर की कीमत 11.90 रुपये थी, जो साल 2008 की कीमत से 99 फीसदी कम है।
कर्ज ने कर दी हालत खराब
भारी-भरकम कर्ज ने रिलायंस कैपिटल की हालत खराब कर दी। इस पर करीब 40,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था। आरबीआई ने 2011 में कंपनी के बोर्ड को भंग कर दिया था। कंपनी के पेमेटं डिफॉल्ट करने और खराब गवर्नेंस के चलते ऐसा किया गया था। तब से ही कंपनी के रिजोल्यूशन प्लान पर काम चल रहा था।
दुनिया के छठे सबसे अमीर आदमी थे अनिल अंबानी
अनिल अंबानी एक समय दुनिया के छठे सबसे धनवान व्यक्ति थे। यह साल 2008 का वक्त था। अनिल अंबानी ने अमेरिका के व्हार्टन स्कूल से एमबीए की है। वे चर्चित उद्योगपति धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) के छोटे पुत्र हैं। उन्होंने बॉलीवुड अभिनेत्री टीना मुनीम से शादी की और दो साल तक राज्यसभा सदस्य रहे थे।
भाइयों के बीच हुआ था विवाद
धीरूभाई अंबानी को साल 1986 में दौरा पड़ने के बाद अनिल ने अपने पिता की देखरेख में रिलायंस के वित्तीय मामलों को संभाला था। अपने पिता की 2002 में मृत्यु के बाद उन्होंने और उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ने रिलायंस कंपनियों को संयुक्त रूप से संभाला। लेकिन जल्द ही उनके बीच नियंत्रण को लेकर विवाद शुरू हो गया। परिणामस्वरूप कारोबार का विभाजन हो गया। मुकेश को कंपनी का प्रमुख कारोबार तेल और पेट्रो रसायन की जिम्मेदारी मिली जबकि अनिल ने 2005 के विभाजन के जरिये दूरसंचार, बिजली उत्पादन और वित्तीय सेवाओं जैसे नये कारोबार का नियंत्रण हासिल किया।