रिलायंस कैपिटल की बिक्री प्रक्रिया फिर से अटक सकती है। दरअसल, कर्ज में डूबी कंपनी रिलायंस कैपिटल को कर्ज देने वाले संस्थानों की समिति (सीओसी) बोलीदाताओं से मिली सभी बाध्यकारी बोलियों के पक्ष में नहीं हैं। सूत्रों के मुताबिक, रिलायंस कैपिटल के कर्जदाताओं का मानना है कि बोलीकर्ताओं की तरफ से लगाई गई बोली का मूल्य काफी कम है। ऐसी स्थिति में सीओसी बोलीकर्ताओं से संशोधित बोली लगाने को कह सकते हैं।
दिवाला प्रक्रिया में भेजने की मांग संभव
हालांकि संशोधित बोली के भी उम्मीद के अनुरूप नहीं रहने पर कर्जदाता रिलायंस कैपिटल को दिवाला प्रक्रिया के लिए भेजने की मांग कर सकते हैं। इसके लिए सीओसी ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) में हाल ही में जोड़ी गई धारा छह(ए) का सहारा ले सकते हैं जिसके जरिये किसी कंपनी के अलग-अलग कारोबार को अलग-अलग बेचा जा सकता है। रिलायंस कैपिटल लिमिटेड के लिए बोली लगाने की अवधि 28 नवंबर को खत्म हुई है। इस कंपनी के आठ कारोबारों के लिए बोलियां आमंत्रित की गई थीं।
समाधान प्रक्रिया को विस्तार दिया गया
हाल ही में राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने रिलायंस कैपिटल की कर्ज समाधान प्रक्रिया के लिए समयसीमा 31 जनवरी, 2023 तक बढ़ा दी थी। पहले इसकी समयसीमा एक नवंबर, 2022 तक थी। इसके पहले भी दो बार समयसीमा बढ़ाई जा चुकी थी। ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) के नियमों के मुताबिक, प्रशासक को रिलायंस कैपिटल लिमिटेड (आरसीएल) के समाधान की प्रक्रिया मूल रूप से 180 दिनों के भीतर यानी तीन जून, 2022 तक पूरी कर लेनी थी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाने से समयसीमा बढ़ाई जाती रही। इससे पहले रिलायंस कैपिटल के ऋणदाताओं ने 75 करोड़ रुपये की अग्रिम जमा राशि (ईएमडी) के साथ बाध्यकारी बोलियां जमा करने के लिए बोलीदाताओं को 31 अक्टूबर तक का समय दिया था। इस बार समयसीमा में 30 दिनों का विस्तार किया गया था लेकिन बोलीदाता इससे खुश नहीं थे। उनमें से अधिकांश ने दो-चार महीने के विस्तार की मांग की थी। रिलायंस कैपिटल को अपने कई व्यवसायों के लिए 14 गैर-बाध्यकारी बोलियां मिली थीं।