World in Recession: पिछले साल आईएमएफ ने कहा था कि पूरी दुनिया मंदी की चपेट में आने जा रही है, जिसका असर साल 2023 की शुरुआत से दिखना शुरु हो जाएगा। ऐसा हो भी रहा है। दुनियाभर में मंदी के डर से प्राइवेट कंपनियां अपने यहां से कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, एसएपी, आईबीएम, डिज़नी और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनियां अब तक हजारों लोगों को जॉब से बाहर कर चुकी है। एक समय ये कहा जाता था कि इन कंपनियों में काम मिल जाने पर लाइफ सेट हो जाती है, क्योंकि यहां से कभी किसी की नौकरी नहीं जाती, लेकिन मंदी की आशंका ने सारा खेल बिगाड़ कर रख दिया। बता दें, इन सबके बीच भारत के अलावा दुनिया के एक और देश से अच्छी खबर आई है। जहां कि विकास दर ने मंदी को पीछे छोड़ दिया है। स्टेटिस्टिक्स नीदरलैंड्स (सीबीएस) द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, 2022 की चौथी तिमाही में डच अर्थव्यवस्था 0.6 प्रतिशत बढ़ी है, जो पिछले साल के अंतिम महीनों में मंदी की आशंका से बाल-बाल बची है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, चौथी तिमाही में वृद्धि व्यापक-आधारित थी, जिसमें व्यापार संतुलन और घरेलू खपत का सबसे बड़ा योगदान था। 2022 की तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था 0.2 प्रतिशत सिकुड़ गई थी और इस बात की आशंका थी कि देश एक और तिमाही के साथ मंदी से बाहर आ जाएगा।
भारत के लिए कितनी है खतरे की घंटी?
सीबीएस ने कहा कि नीदरलैंड में 0.6 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि पड़ोसी यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक थी। फ्रांस और बेल्जियम में इसी अवधि में आर्थिक विकास 0.1 प्रतिशत था, जबकि जर्मनी में यूरोपीय संघ (ईयू) में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में 0.2 प्रतिशत की कमी आई। प्रारंभिक आंकड़ों का हवाला देते हुए, सीबीएस ने कहा कि 2022 के लिए देश की वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत थी, जो मुख्य रूप से उच्च घरेलू खपत और व्यापार संतुलन में सुधार के कारण है। बता दें, वैश्विक स्तर पर मंदी के बीच भारत चालू वित्त वर्ष में 6.6 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर के साथ एशिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहेगा। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने अपनी ताजा आर्थिक परिदृश्य के रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक मांग में गिरावट और महंगाई को काबू में करने के लिए आक्रामक मौद्रिक नीति के बावजूद भारत 2022-23 में सऊदी अरब से एक स्थान पीछे जी20 देशों में दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है।
इन देशों की तुलना में तेज विकास
निर्यात और घरेलू मांग में वृद्धि के नरम होने के कारण वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि धीमी होकर 5.7 प्रतिशत रह जाएगी। हालांकि, यह तब भी चीन और सऊदी अरब समेत कई अन्य जी20 अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2022-23 में 6.6 प्रतिशत की दर से बढ़ने के बाद अर्थव्यवस्था आने वाली तिमाहियों में धीमी हो जायेगी और 2023-24 में यह 5.7 प्रतिशत तथा 2024-25 में सात प्रतिशत पर पहुंचेगी। ओईसीडी ने कहा है कि 2023 में आर्थिक वृद्धि एशिया के प्रमुख उभरते बाजारों पर दृढ़ता से निर्भर है। इनका अगले साल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में करीब तीन-चौथाई हिस्सा होगा जबकि यूरोप और अमेरिका का योगदान घटेगा। ओईसीडी का अनुमान है कि यदि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी से बचती है, तो इसमें एशिया की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत का बहुत बड़ा हाथ होगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस वर्ष 3.1 प्रतिशत और 2023 में केवल 2.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।