आईआईएफएल फाइनेंस (IIFL Finance) और जेएम फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स लिमिटेड (JM Financial) को नियामकीय उल्लंघन के मामले में एक विशेष ऑडिट का सामना करना पड़ेगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने ऑडिटर की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की है। रिजर्व बैंक ने इन दोनों गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के विशेष ऑडिट के लिए ऑडिटर की नियुक्ति के लिए दो अलग-अलग निविदाएं जारी की हैं। फॉरेंसिक ऑडिट के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा सूचीबद्ध ऑडिट फर्म निविदा प्रक्रिया में भाग ले सकती हैं।
बोली जमा करने की अंतिम तिथि आठ अप्रैल
निविदा दस्तावेज के अनुसार बोली जमा करने की अंतिम तिथि आठ अप्रैल है। बोली दस्तावेजों के अनुसार, चयनित कंपनियों को 12 अप्रैल, 2024 को काम सौंपा जाएगा। इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय बैंक ने नियामकीय दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं करने पर इन दोनों इकाइयों पर अंकुश लगाया था। केंद्रीय बैंक ने आईआईएफएल फाइनेंस को उसके स्वर्ण ऋण पोर्टफोलियो में कुछ पर्यवेक्षी चिंताओं के बाद स्वर्ण ऋण स्वीकृत करने या वितरित करने से रोक दिया था। रिजर्व बैंक ने कहा था कि 31 मार्च, 2023 तक आईआईएफएल की वित्तीय स्थिति के संदर्भ में कंपनी का निरीक्षण किया गया था। एक दिन बाद, रिजर्व बैंक ने जेएम फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स लिमिटेड पर अंकुश लगा दिया था।
हेरफेरी में शामिल होने का मामला
जांच में यह तथ्य आया था कि कंपनी विभिन्न प्रकार की हेरफेरी में शामिल थी। जिसमें उधार दिए गए धन का उपयोग करके अपने स्वयं के ग्राहकों के एक समूह को विभिन्न आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के लिए बोली लगाने में बार-बार मदद करना भी शामिल था। केंद्रीय बैंक ने जमा नहीं लेने वाली एनबीएफसी पर शेयर और डिबेंचर के एवज में किसी तरह का वित्तपोषण उपलब्ध कराने की रोक लगाई थी।
IL&FS ने एनसीएलएटी का रुख किया
आईएलएंडएफएस समूह ने शेयरधारकों की मंजूरी के बिना कुछ कटौती (हेयरकट) के साथ अपनी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने के लिए एनसीएलएटी का रुख किया है। इन दिवालिया कंपनियों को गैर-टिकाऊ ऋण के साथ समाधान ढांचे की श्रेणी-2 के तहत रखा गया है। श्रेणी-2 के तहत आने वाली समूह की कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने के लिए आईएलएंडएफएस के अंतरिम आवेदन पर इस सप्ताह की शुरुआत में अंतिम सुनवाई हुई। इस दौरान सरकार ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) से जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा। इन कंपनियों के लिए मिली अधिकतम बोली उनके कर्ज से कम है। ऐसे में ऋणदाताओं के साथ ही शेयरधारकों को भी अपने संबंधित ऋण और इक्विटी में कटौती करनी होगी।