पश्चिमी देशों ने सोमवार को रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लागू कर दी और साथ ही कुछ अन्य प्रतिबंध भी लगाने शुरू कर दिए। यूक्रेन को लेकर मास्को पर दबाव बनाने के लिए ये नए कदम उठाए जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, अमेरिका और 27 देशों के यूरोपीय संघ ने शुक्रवार को रूसी तेल के लिए 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा तय की थी। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इस फैसले का भारतीय बाजार में पेट्रोल-डीजल के दाम पर क्या असर देखने को मिलेगा। एनर्जी विशेषज्ञों का कहना है सितंबर 2022 तक रूस कच्चे तेल को ब्रेंट क्रूड के मुकाबले 20 डॉलर प्रति बैरल सस्ता बेच रहा था। इसके अनुसार भारत अभी भी रूस से मौजूदा समय में 60 डॉलर प्रति बैरल की दर से ही रूस से तेल खरीद रहा है। यानी इस फैसले का तुरंत कोई असर नहीं होगा। अगर भविष्य में कीमत बढ़ेगी तो असर हो सकता है।
कीमत और कम करने की मांग की थी
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के कार्यालय ने पश्चिमी देशों द्वारा रूसी तेल की कीमत और कम करने की मांग की, जबकि रूसी अधिकारियों ने 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा को मुक्त और स्थिर बाजार के लिए हानिकारक बताया है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इन प्रतिबंधों से रूसी तेल की पहुंच वैश्विक बाजार से कितनी दूर हो सकती है। सोमवार को अमेरिकी मानक कच्चा तेल 90 सेंट बढ़कर 80.88 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था। चीन में कोविड-19 के प्रकोप को रोकने के लिए लागू किए गए प्रतिबंधों सहित अन्य कारणों से कच्चे तेल की मांग और कीमतें प्रभावित हुई हैं।
कच्चे तेल की कीमतें काफी नीचे
कच्चे तेल की कीमतें युद्ध के दौरान अपने उच्चतम स्तर से काफी नीचे हैं। रूसी उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने मूल्य सीमा लागू होने से कुछ दिन पहले टेलीविजन पर कहा, ''हम केवल उन देशों को तेल और तेल उत्पाद बेचेंगे, जो बाजार की शर्तों पर हमारे साथ काम करेंगे, भले ही हमें कुछ हद तक उत्पादन कम करना पड़े।