PM Modi govt 8 years: देश में जाति के आधार पर आरक्षण की लंबी फेहरिस्त है। आजादी से पहले से ही नौकरियों और शिक्षा में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण देने की शुरुआत कर दी गई थी। हालांकि, किसी भी सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का साहस नहीं किया था। इस परिपाटी को बदलते हुए मोदी सरकार ने आर्थिक आधर पर सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर न सिर्फ राजनीति की दिशा बदली, बल्कि नए भारत की नींव भी रखी। चुनावी पंडितो ने मोदी सरकार के इस कदम दुधारी तलवार पर पैर रखना बताया लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी परवाह नहीं करते हुए एक नई लकीर खींच दी। उन्होंने सभी चुनावी पंडितों की भविष्यवाणी को धता बताते हुए दोबारा प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की। वहीं, कुछ जानकारों ने इस फैसले को सामाजिक न्याय की दिशा में 'क्रांतिकारी एवं ऐतिहासिक' कदम करार देते हुए कहा कि मोदी सरकार ने इस बहु प्रतिक्षित मांग को पूरा करके दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दिया है।
मास्टरस्ट्रोक व गेम चेंजर साबित हुआ फैसला
जानकारों का कहना है कि आर्थिक आधर पर सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला गेम चेंजर साबित हुआ है। इस फैसले से न सिर्फ सवर्ण गरीबों को उनका उचित हक मिला है बल्कि कई राज्यों में आरक्षण को लेकर उठ रहे स्वर बंद हो गए हैं। बहरहाल, राजनीतिक रूप से सरकार को यह सफल कदम माना जाएगा। पिछले काफी समय से एससी एसटी आरक्षण को लेकर उठे विवाद और कुछ स्थानों पर अगड़ी जातियों में उग्रता को थामने के लिहाज से यह बड़ा फैसला था।
अभी भी उलझा है आरक्षण का गणित
नौकरी मामले के एक जानकार ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि मोदी सरकार की ओर से सवर्ण आरक्षण दिए जाने के बाद भी आरक्षण का गणित उलझा हुआ है। नौकरी की तैयारी कर रहे गरीब सवर्ण को इसका पूरा फायदा नहीं मिल रहा है। इसकी वजह कई पुराने कानून है। इसके चलते कई दफा गरीब सवर्ण को इस आरक्षण का फायदा नहीं मिल पा रहा है। हालांकि, इसके बावजूद यह कानून एक बेहतरीन काम है जिसकी जरूरत काफी पहले से महससू की जा रही थी।