Highlights
- बीते 100 दिनों से पेट्रोल डीजल के दाम स्थिर हैं, यह एक रिकॉर्ड है।
- उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आने हैं
- तेल के भाव अप्रैल से पहल ही 105 रुपये के पार पहुंच सकते हैं
पेट्रोल डीजल के दाम भारत में यूं तो हर दिन तय होते हैं। लेकिन बीते 100 दिनों से पेट्रोल डीजल के दाम स्थिर हैं। यह एक रिकॉर्ड है। पिछली बार चुनाव के चलते ही 82 दिनों तक तेल के दाम स्थिर रहे थे। 4 नवंबर को दिवाली के दिन केंद्र और भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा एक्साइज और वैट दरों में कटौती के बाद 10 से 17 रुपये तक की गिरावट आई थी। तब से दामों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आने हैं। उसके बाद आप पर महंगाई का बड़ा प्रहार हो सकता है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कच्चा तेल अब सेंचुरी के करीब है। इस समय कच्चे तेल के दाम 91 डॉलर प्रतिबैरल है, जो कि पिछले हफ्ते 94 डॉलर के पार था। नवंबर में जब पेट्रोल की कीमतें स्थिर हुई थीं तब कच्चा तेल 85 डॉलर था। ऐसे में नतीजे कुछ भी हों, आपकी जेब कटनी तय है।
यूपी के कानपुर में 4 नवंबर के बाद से 95.23 रुपये में पेट्रोल व 86.49 रुपये में डीजल मिल रहा है। वहीं मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में पेट्रोल की कीमत 107.23 रुपये और डीजल की कीमत 90.87 रुपये प्रति लीटर है।
105 से 110 पहुंच सकती हैं कीमतें
बाजार के विशेषज्ञों के अनुसार कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर की बढ़ोत्तर के देश में पेट्रोल की कीमत में करीब 55 से 60 पैसे की बढ़ोत्तरी होती है। ऐसे में यदि कच्चा तेल मार्च तक 95 डॉलर प्रति बैरल तक भी ठहरता है तो देश में पेट्रोल 10 रुपये और महंगा हो सकता है। ऐसे में यदि 10 फरवरी के बाद कीमतें दोबारा बढ़ती हैं तो तेल के भाव अप्रैल से पहल ही 105 रुपये के पार पहुंच सकते हैं।
तेल कंपनियां तय करती हैं कीमतें?
कागजी तौर पर देखा जाए तो पेट्रोल डीजल की कीमतें तय करने का अधिकार सरकारी तेल कंपनियों पर है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में देश में राज्यों के चुनावों के बीच तेल की कीमतों पर ब्रेक लग जाता है। कच्चे तेल का भाव इस समय 91 डॉलर के पार है, बावजूद इसके आने वाले समय में इनके दामों में बढ़ोत्तरी का कोई इरादा नहीं है।
क्रूड की कीमतों में बढ़ोत्तरी
नवंबर से देखा जाए तो क्रूड की कीमतें गिरावट के बाद एक बार फिर चढ़ने लगी हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 11 नवंबर को क्रूड ऑयल का भाव 85 डॉलर प्रति बैरल था। एक दिसंबर को घटकर यह 69 डॉलर पर आ गया था। तब से लेकर अब तक इसमें करीबन 22 डॉलर की बढ़ोत्तरी हुई है। दिसंबर में जहां क्रूड की कीमत में कटौती का फायदा जहां ग्राहकों को नहीं मिला, वहीं तेल कंपनियों ने 22 से 25 डॉलर के उछाल से भी आम जनता को दूर रखा। दिसंबर के बाद से कीमतें फिर उफान पर हैं। फिलहाल क्रूड 91 डॉलर पर है, जिसके 100 डॉलर तक जाने की संभावना है। ऐसे में चुनावों के बाद तगड़ा झटका लगना तय है।
सरकार के इंपोर्ट बिल पर असर
कच्चे तेल की कीमतोें का सीधा असर भारत के इंपोर्ट बिल पर पड़ता है। साथ ही यह महंगाई और रुपए की कीमत के लिए भी हानिकारक है। कोरोना की दस्तक के बावजूद देश में परिवहन गतिविधियां जारी हैं। जिससे तेल के उपयोग में कोई कमी नहीं है। क्रूड महंगा होने के बावजूद कीमतें न बढ़ाना सरकारी खजाने की सेहत के लिए फायदेमंद कतई नहीं है।