8 दिसंबर को आए हिमाचल प्रदेश इलेक्शन के रिजल्ट में कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिला है। वह जल्द ही सरकार का गठन करेगी। चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी ने सत्ता में लौटने पर पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की बात कही थी। पहले से घाटे में चल रही हिमाचल सरकार के लिए ऐसा करना कितना नुकसानदायी होगा? ये आंकड़े बता रहे हैं। आइए इन आंकड़ों की माध्यम से ये समझने की कोशिश करते हैं कि सरकार के उपर कितना का कर्ज है?
इन राज्यों पर सबसे अधिक कर्ज
भारत में अगर किसी राज्य पर सबसे अधिक कर्ज है तो वो है पंजाब। यहां की सरकार के पास 53% का राजकोषीय घाटा है। वहीं राजस्थान का 40% है। ऐसा ही हाल हिमाचल प्रदेश का भी है। ऋण-जीएसडीपी वित्त वर्ष 22 में 43% होने का अनुमान लगाया गया था।
पिछले कई सालों से खर्च कम करने पर फोकस कर रही सरकार
हाल के वर्षों में हिमालयी राज्य के खर्च (वेतन, पेंशन और ब्याज) के बोझ को कम करके अपने खर्चों को पुनर्गठित और विचारशील बनाने के प्रयासों ने हिमाचल के खर्च को वित्त वर्ष 2013 में कुल राजस्व व्यय के 80% से घटाकर वित्त वर्ष 2022-23 में 61% कर दिया था। हालांकि, यह अभी भी बाकि राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है।
पेंशन नियामक नियुक्त कॉर्पस प्रबंधित फंड मैनेजरों को पीएफआरडीए के मुताबिक, एनपीएस के तहत मूल वेतन और डीए के 10% का मासिक योगदान कर्मचारी द्वारा भुगतान किया जाना था और नियोक्ता द्वारा मिलान किया जाना था (केंद्र और अधिकांश राज्यों ने तब से अपने योगदान को 14% तक बढ़ा दिया है)
कर्ज के जाल में फंसने की आशंका
ओपीएस में वापस लौटने से राज्य सरकार को कुछ अस्थायी राहत मिल सकती है क्योंकि इससे एनपीएस में मासिक योगदान बंद हो जाएगा, लेकिन वेतन/मजदूरी, अनफंडेड पेंशन और ब्याज भुगतान के बढ़ते घटक आने वाले वर्षों में राज्य के लिए कर्ज के जाल में फंस सकते हैं। 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह ने पिछले हफ्ते कहा था कि नई पेंशन योजना से पीछे हटना और पुरानी पेंशन योजना को अपनाना राज्यों के लिए वित्तीय संकट होगा।