जो सरकारी कर्मचारी मोदी सरकार की प्राइवेटाइजेशन (Privatisation) को बढ़ावा देने वाली पॉलिसीज से खौफ खा रहे थे, उनके लिये राहत भरी खबर है। भारत सरकार 200 से अधिक सरकारी कंपनियों की स्थिति सुधारने की योजना बना रही है, ताकि उन्हें अधिक लाभदायक बनाया जा सके। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एग्रेसिव प्राइवेटाइजेशन प्रोग्राम से अलग एक नये रुख का संकेत मिलता है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने अपनी एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है।
साल 2021 में भारत के 600 बिलियन डॉलर के विशाल सरकारी क्षेत्र के एक बड़े हिस्से के निजीकरण कार्यक्रम की घोषणा हुई थी। लेकिन आम चुनाव से पहले यह प्रोग्राम धीमा हो गया था और अब गठबंधन की सरकार आने के बाद प्राइवेटाइजेशन प्रोग्राम को और अधिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
सरकारी कंपनियों के लिये बनेंगे लॉन्ग टर्म टार्गेट्स
23 जुलाई को पेश होने वाले बजट में नई योजना आ सकती है। इसमें इन कंपनियों के स्वामित्व वाली वह जमीन जिसका उपयोग नहीं के बराबर हो रहा है उसे बेचना और दूसरे एसेट्स का मोनेटाइजेशन शामिल है। रिपोर्ट में पॉलिसी की जानकारी रखने वाले 2 अधिकारियों ने यह बात कही। सरकार का इससे उद्देश्य इस वित्त वर्ष में 24 अरब डॉलर जुटाना है और उस पैसे को इन कंपनियों में री-इनवेस्ट करना है। साथ ही शॉर्ट टर्म टार्गेट्स की बजाय हर कंपनी के लिये 5 साल के परफॉर्मेंस और प्रोडक्शन टार्गेट्स तय किये जाएंगे। सरकारी कंपनियों की स्थिति सुधारने के बारे में इससे पहले बात नहीं हुई थी।
2,30,000 मैनेजर्स को किया जाएगा प्रशिक्षित
रिपोर्ट में नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, "सरकारी संपत्तियों की अंधाधुंध बिक्री के बजाय अब सरकारी कंपनियों के आंतरिक मूल्य को बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है।" अन्य योजनाओं के अलावा, सरकार अधिकांश सरकारी कंपनियों में succession planning करने का इरादा रखती है। साथ ही 2,30,000 मैनेजर्स को कंपनियों में वरिष्ठ भूमिकाओं के लिए प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव भी रखा है। वर्तमान में सरकारी कंपनियों में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति सरकार ही करती है।
(रॉयटर्स के इनपुट के साथ)